भारतीय छंद विधान

इस समूह में भारतीय छंद शास्त्रों पर चर्चा की जा सकती है | जो भी सदस्य इस ग्रुप में चर्चा करने के इच्छुक हों वह सबसे पहले इस ग्रुप को कृपया ज्वाइन कर लें !

  • विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी

    एक सशक्त,सराहनीय और सार्थक प्रयास;साधुवाद।
  • Arun Sri

    अब कुछ ठीक है ! आभार !

  • पीयूष द्विवेदी भारत

    आज का काव्य छंद के अन्य नियमों को तो छोडिए, सामान्य रूप से मात्रात्मक नियम तक से दूर हो गया है, ऐसे में हमारे पारंपरिक छंदों के  ज्ञान के प्रचार-प्रसार की अत्यावश्यकता है, इस कार्य में यह समूह एक अच्छी भूमिका निभाए, यही इश्वर से कामना है!

  • वीनस केसरी

    सौरभ जी,
    अतिव्यस्त होने के कारण आपके द्वारा साझा की जा रहे सुन्दर जानकारीपूर्ण लेख को नहीं पढ़ पा रहा हूँ जल्द ही सभी को पढ कर कमेन्ट करूँगा 
    जल्दीबाजी में पढ़ने से बच रहा हूँ जल्द ही "फ्री" हो कर आऊंगा

    सादर


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    वीनस केसरी  मैं समझ रहा हूँ. अति व्यस्तता वाकई कभी-कभी मनचाही प्रक्रियाओं से व्यक्ति को विलग कर देती है. लेकिन इस लेखमाला पर अवश्य ध्यान चाहूँगा.  सवैया छंद के जितने प्रारूपों की  सवैया  लेख में चर्चा हो चुकी है,  उनके विधान समयानुसार अपलोड करना शुरु कर चुका हूँ.

    इन सबके अलावे उन सवैया प्रारूपों को भी यथासंभव लेखमाला में शामिल करने का प्रयास करूँगा जो अभी तक  सवैया  वाले लेख की सूची में सम्मिलित होने से रह गये हैं. बाद में उन सभी को इस सूची में शामिल कर लूँगा.  अन्यान्य मिश्रित या सामान्य प्रारूपों की विशेष चर्चा मुझे आवश्यक प्रतीत नहीं होती. 

  • SANDEEP KUMAR PATEL

    गुरुदेव आपके कहे को पढ़ रहा हूँ मन लगा के और मुग्ध हो रहा हूँ कुछ भ्रम दूर हो रहे हैं आपका सदैव आभारी हूँ गुरुदेव जय हो 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आप जहाँ देखें कि आलेखों की संप्रेषणीयता दुर्बल  है.. या वाक्य स्पष्ट नहीं हो रहे हैं.. या नियमों की विवेचना में कुछ त्रुटि है तो अवश्य सूचित कीजियेगा, संदीपभाईजी.

    हम समवेत सीखते हैं.

  • Aditya Kumar

    कृपया हिंदी साहित्य के लिए सुरुआति दिशा निर्देश दे। ।
    जैसे। …. कविता की परिभाषा ???
    छंदों के प्रकार ??? मात्राओं का गिनना।।।। साहित्य का इतिहास आदि। खास कर भारतीय सहित्य का। … आभारी रहूँगा। । धन्यवाद्

  • डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव

         छंदों  पर चर्चा  श्लाघनीय  है  I  नए युवा जो अतुकांत को कविता का सहज सोपान समझते हैं उन्हें सरल वर्णिक छंद जैसे घनाक्षरी जिसमे आठ पंक्तियाँ होती हैं  और हर पंक्ति में १६ वर्ण होते हैं  या फिर कवित्त  कि रचना में प्रेरित करने की  आवश्यकता प्रतीत होती है इसमें भी आठ पंक्तिया होती है पर १,३.५.७  पंक्ति में १६ तथ२,४,६,८ पंक्ति में १५ वर्ण  होते है  I  वर्णों कि गणना विधि ब्रिजेश नीरज जी चोका में बता ही चुके हैं I युवा कवियो का छंद  रचना  हेतु आह्वान  करता हूँ I इस फोरम को कोटि कोटि बधाई I

  • Rahul Dangi Panchal

    आदरणीय से निवेदन है ! मै join करने परभी आपके छन्द समबन्धी लेख नहीं पढ़ पा रहा हुँ! क्रपया बताने का कष्ट करें कि मै कैसे पढुँ
  • Rahul Dangi Panchal

    मुझे यहाँ बहुत सिखने को मिलने वाला है!यहाँ तो भंडार है! मेरा सौभाग्य है !
  • kanta roy

    इस कक्षा में शुरूआत (अ आ ) से शुरू करने के लिये सबसे पहले कौन सी चीज़ को पढना शुरू करूं आदरणीय सौरभ पाण्डेय सर जी .....यहाँ तो छंद विधान की बेहद वृहद समावेश है । मुझे तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे मै किसी बहुत बडे राजप्रासाद में आ खड़ी हुई हूँ जहाँ बहुत सारे कमरे है । मै कौन से दरवाजे में जाऊँ । कहाँ से मेरी यात्रा शुरू होगी ....जरा मार्गदर्शन करें सर जी ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    सर्वप्रथम, आप शब्दों की मात्रिकता को समझने का प्रयास करें, आदरणीया
    इसी समूह में वीनस केसरी के दो आलेख हैं जिनसे छन्दों की प्रारम्भिक जानकारी प्राप्त हो सकती है, और मात्रा गणना भी समझ में आती है.

  • kanta roy

    नमन सर जी , मै अब शुरूआत से ही छंद विधान के समस्त नियमों को समझने की कोशिश करूँगी । अगर कहीं कुछ समझने में असमर्थ हुई तो आपके मार्गदर्शन के लिए आपके द्वार के सांकल फिर खडकाऊँगी । आभार
  • kanta roy

    आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,छंद विधान के सीखते हुए मात्रिकता और तुकान्तता को समझने के बाद क्रमानुसार सीखने को आगे बढते हुए कौन से चरण में जाना चाहिए ? विनम्र निवेदन है जरा मार्गदर्शन करें ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    रचनाकर्म के क्रम में कदम बढ़ें. आप दोहा छन्द के विधान को समझ कर रचनाएँ लिखना आरम्भ करें.
  • kanta roy

    हृदयतल से आभार अापको मार्गदर्शन के लिए ।
  • Manan Kumar singh

    मैं इस का सदस्य बनना चाहता हूँ
  • babita choubey shakti

    आ जी सादर नमन मैने कुछ आल्हा लिखे है व् गाये भी है किन्तु यह मंच उनमे हुई त्रुटियों को दूर करने हेतु सार्थक होगा यदि अनुमति हो तो में पोस्ट करु।सादर नमन

  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    आप अपने छंद में ब्लॉग में पोस्ट कर सकती हैं आ० बबिता चौबे जी I 

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    श्रद्धेय प्रभाकर जी, सुप्रभात। आदरणीय मै छन्द में मात्रामात्राओं की गिनती के बारे में जानने का इच्छुक हूं। कृपया मार्गदर्शन करें ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय सुरेश कल्याण जी, इसी छन्द विधान के इसी समूह में यदि आप देखें तो भाई वीनस जी के दो आलेख मिलेंगे,

    हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद - (भाग १)

    एवं

    हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद - (भाग २)

    आप इनका बारी-बारी अध्ययन करें. आप उपर्युक्त दोनों ’हाइपरलिंक्ड शीर्षकों’ को क्लिक कर भी उन आलेखों तक पहुँच सकते हैं.

    इस क्रम में फिर आगे संवाद तो बना ही रहेगा.

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    आदरणीय श्री सौरभ पांडे जी मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार।
  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    कास प्रभु कीजै तोरि सेव
    21 11 22 21 21 =15 मात्रा

    क्या यह मात्रा गणना सही है?
    मैं कुछ उलझन में पड गया हूँ। कृपया मार्गदर्शन करें ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आपने दी गयी पंक्ति के शब्दों की मात्रा सही लिखी है। शब्द भी संयुक्ताक्षर के नहीं हैं, फिर, उलझन या भ्रम क्यों है ? 

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    आदरणीय श्री सौरभ पांडे जी आदरणीय वीनस केसरी जी द्वारा लिखित 'हिन्दी छन्द परिचय, गण, मात्रा गणना, छन्द भेद तथा उपभेद-(भाग2)' में इस पंक्ति की 14 मात्रा बताई गई हैं।इसके कारण ही मैं उलझन में हूँ।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय सुरेश कल्याण जी, आप यदि इसी पोस्ट पर पहले की टिप्पणियाँ देखें तो आप देखेंगे कि इस आशय के प्रश्न पहले भी उठाये गये हैं। लेकिन वीनस भाई की ओर से कोई विन्दुवत स्पष्टीकरण नहीं आया है।

    मेरी समझ यही बनी है कि उक्त पंक्ति में टंकण त्रुटि है। जिसका निराकरण भाई वीनस जी ही कर सकते हैं।

    लेकिन मुख्य आशय तो शब्दों की मात्रा को गिनना समझने से है। इस विन्दु पर आप सहज होते दिख रहे हैं। ऐसा न होता तो आप भ्रम की स्थिति में ही नहीं आते।

    सादर 

  • Kalipad Prasad Mandal

    आदरणीय सौरभ जी , आज मैं आदरणीय वीनस जी  के हिन्दी छन्द परिचय भाग एक पढ़कर दो शब्दों की मात्र गणना में उलझा हूँ , कृपया मेरी उलझन दूर करे |

    'क्षितिज' शब्द की मात्र ग़ज़ल में १२ गिना जाता है

    छन्द में  १२ होगा या १११ होगा ? 

    दूसरा :  तंत्र = तन -त्र  २२ या २१ (छंद में )

    सादर 

  • रामबली गुप्ता

    आद० कालीपद मण्डल जी
    क्षितिज को ग़ज़ल में 12 छंद में 111 गिना जायेगा।

    इसी प्रकार तंत्र में ग़ज़ल और छंद दोनों में 21 गिना जायेगा।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    भाई रामबली जी ने जो कुछ कहा है वह शत-प्रतिशत सही है, आदरणीय कालीपदजी. 

    क्षितिज वस्तुतः छन्दों के अनुसार तीन लघु (१११ लघु-लघु-लघु) का समुच्चय ही है. 

    लेकिन ग़ज़ल चूँकि वाचिक परम्परा का निर्वहन करती हैं, अतः उच्चारण के अनुसार ’क्षितिज’ का उच्चारण ’क्षि+तिज’ हुआ करता है. यही ’तिज’ एक साथ उच्चारित होने के कारण एक ’गुरु’ (ग़ाफ़) की तरह व्यवहृत होता है. 

    छन्द शास्त्र के ऐडवांस पाठों में भी इस विधि को शब्दकल के अंतर्गत मान्य किया गया है,  लेकिन छन्दों पर आजकल काम करने वाले या नये अभ्यासी लोग उस स्तर तक अकसर नहीं पहुँच पाते या जाना नहीं चाहते.  और, मात्र लघु-गुरु की गणनाओं के आधार पर, या मात्रिक या वर्णिक सूत्रों के आधार पर ही रचनाकर्म  करते रहने के आग्रही हो जाते हैं.  यही कारण है, कि शब्दकलों का निर्वहन हो ही नहीं पाता और उनकी रचनाएँ लय सम्बन्धित दोषों से भरी होती हैं. जबकि लय या गेयता छान्दसिक रचनाओं का अभिन्न अंग है.

    आदरणीय कालीपद जी, लय से या गेयता से संगीत या गाने की क्षमता से मत लीजियेगा. बल्कि, इसे वाचन-प्रवाह समझियेगा. जिसके कारण किसी रचना को पढ़ने में स्पष्टता और सहजता हुआ करती है, और पंक्तियों को पढ़ने के क्रम में कहीं स्वर-सुर नहीं टूटता. इसी कारण ’कमल’ जैसे शब्द को मात्र तीन लघु का समुच्चय नहीं समझ कर ’क+मल’ के उच्चरण के अनुरूप व्यवहृत करना चाहिए. कमल जैस शब तीन गुरु का समुच्चय तो है ही. लेकिन उसके आगे उच्चारण की महत्ता भी समझी जानी चाहिए. इस समझ की आवश्यकता दोहा जैसे मात्रिक छन्दों में हुआ करती है.

     

  • रामबली गुप्ता

    बिल्कुल सत्य विचार आद० सौरभ जी, साधु!
    पठनीय गेयता को संगीत संदर्भित गायन तो कभी समझना ही नही चाहिए। पठनीय गेयता का सम्बन्ध मानव मुख से उच्चरित वर्णों की ध्वनि और उसमे लगने वाले समय से है जबकि गायन का संबंध कंठगत सुर एवं उनके संयोजन से है। क्या जिस प्रकार हम दुर्मिल को पढ़ते हैं उसी प्रकार महाभुजंगप्रयात को भी पढ़ते हैं या जिस प्रकार हम दोहे को पढ़ते हैं उसी प्रकार रोले को भी, नही न? हर छंद की अपनी एकल पठनीय गेयता होती है जबकि एक ही छंद को विविध रागों में स्वरबद्ध किया जा सकता है। किसी दुर्मिल को यदि राग भीमपलासी में स्वरबद्ध किया जा सकता है तो उसे ही भैरवी और वागश्री में भी गाया जा सकता है। अतः पठनीय गेयता और संगीत-गायन की समता स्थापित करना भारी भूल ही होगी।

    मानव मुख-जिह्वा आदि से उच्चारण की ऐसी प्राकृतिक व्यवस्था है कि वह द्विमात्रिकता(गुरु) की ओर अधिक उन्मुख होती है। तातपर्य यह है कि यदि हम पनघट को पढ़ें तो प न घ ट का अलग-अलग उच्चारण नही होता और न ही 'पनघट' इकट्ठा पढ़ते हैं बल्कि दो-दो वर्णों के युग्म में पढ़ते है जैसे-'पन' 'घट' और इन दोनों के बीच बहुत ही हल्का सा पॉज प्रतीत होता है। इसी प्रकार कमल अचल पटल जैसे शब्दों को पढ़ते समय क्रमशः क अ प तथा मल चल टल दो भागों में बांट कर पढ़ते हैं और इनके बीच हल्का सा पॉज होता है। इस प्रकार हम देखें तो कमल का प्रथम एक वर्ण एक लघु और अंतिम दो वर्ण मिलकर एक गुरु का भान देते हैं। यही कारण है कि दोहे के प्रथम एवं तृतीय चरणान्त में कोई लघु गुरु वाला शब्द या तीन लघु वाला शब्द रखने पर सहज प्रवाह होता है बशर्ते इनके पूर्व गुरु वर्ण या दो लघु वर्ण हों। सादर

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    मेरे कहे हुए के मर्म और उसके आशय को स्पष्टता और उदाहरण के साथ प्रस्तुत करने केलिए हार्दिक धन्यवाद. भाई रामबली जी. 

    मैं कोई विन्दु यों ही नहीं उकेरता. वस्तुतः इसी मंच ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव के मात्र एक दो अंक पूर्व एक नये किन्तु अत्यधिक मुखर सदस्य ने उनकी एक पंक्ति में लय-भंगता का इशारा किये जाने पर ऐसा कहा था, कि पंक्तियों की लय तो अवश्य बिगड़ेगी, क्यों कि उनको संगीत का ज्ञान नहीं है और साहित्य और संगीत दो क्षेत्र हैं इसलिए इन विन्दुओं पर वे अधिक ध्यान नहीं देते. यह साफ था कि उनको छन्द और छान्दसिक पंक्तियों में लय की महत्ता का अर्थ ही नहीं मालूम था.लेकिन छन्दों को लेकर उनका मुखर व्यवहार इतना आग्रही था कि उनकी समझ पर आश्चर्य भी हो रहा था.  

    आदरणीय कालीपद जी के शंका निवारण के क्रम में मुझे उसी बात का ध्यान हो आया. अतः आवश्यक विन्दु सोच कर यहाँ भी इशारा दे दिया कि आ० कालीपद जी अभी छन्दबद्ध रचनाओं को सीखने की पहल कर रहे हैं और अभी प्रारम्भिक दौर में हैं. 

    शुभ-शुभ