भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस? ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास.. * अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज. लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज.. * पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल. मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल.. * कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु. लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु.. * रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात. मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात.. * पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन. मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन.. * हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष. जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष.. * मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब. लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब.. * कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच? सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच.. ***********************************
सब जानल पहचानल भुईया धांगल ह बचकानी मे अब काहे अबूझ अनजानी लागे देखी जवानी मे ................. कातना लुका छुप्पी खेलनी बूझत बूझ पलानी मे माई के तावा के रोटी लुटत भाग चुहानी मे..................... अल्लहड़ पन के छुवा छूवौवल डुबकी मारी के पानी मे सोचत सिहरन उठे देह मन भटकल कथा कहानी मे......................... सब कुछ बदलल बदलल लागे घर दुआर बगवानी मे भागे दूर देखी सब लरिका का अइहे अगवानी मे..................... देखनी धानी चुनरी ओढ़े सजनी ठाढ़ दलानी मे का बृज कही न फूटे बानी बरसे नयन नादानी मे......................
भोजपुरी गजल
मनब कि ना मनब, बेशी अगरइब?
आइल बुढ़ापा,अब गरहा में जइब।
खोज तार फूल अब कहाँ लेकेे जइब?
नजर धुंधला गइल,सुँघब कि सटइब?
बेरी-बेरी हो छेदी,काहे तू तुड़ात बाड़?
अब कवना देवी के फूल तू चढ़इब?
बेदी-बेदी घूम अइल,का भइल कह ना?
अब कवन बेदी जाके फेर अझुरइब?
सुन मान बात,छोड़ द लगावल पायेंत,
नयकिन के नजर पड़ी,खूब धसोरइब।
कॉपी@मनन
आदरणीय मनन कुमार जी, आप अपनी रचना सामान्य टिप्पणी बॉक्स में पोस्ट कर दिए हैं जबकि आपको अपनी रचना ऊपर में +Add a Discussion विकल्प को क्लिक कर पोस्ट करनी चाहिए, वहां आपको एडिट ऑप्शन भी मिलेगा. एक बात और ध्यान रखें कि रचना के नीचे "मौलिक एवं अप्रकाशित" अवश्य लिखें. सादर.
वोटर के उद्गार
भउजी कहली समझावल जाई,
चलीं फेर वोट गिरावल जाई।
बात बनउअल भइल बहुत अब
एकनी के आज बतावल जाई।
बहुते नाच नचवलख इ सब
एकनी के आज नचावल जाई।
बे पगहा के बैल बनल सब
पगहा आज लगावल जाई।
बेच बेच केतना खैलन सन
चलीं आज बतावल जाई।
बाँट देलख सब घर-समाज इ
एकनी के धूल चटावल जाई।
भइया-भउजी भइल बहुत
अब बढ़नी पीठ बजावल जाई
बिना किये कुछ काम अइलन सब
एकनी के दूर भगावल जाई।
घूम रहल बेलज मुँहझौंसा सब
अब दाढ़ी में आग लगावल जाई।
@मनन
वोटर के उद्गार
भउजी कहली समझावल जाई,
चलीं फेर वोट गिरावल जाई।
बात बनउअल भइल बहुत अब
एकनी के आज बतावल जाई।
बहुते नाच नचवलख इ सब
एकनी के आज नचावल जाई।
बे पगहा के बैल बनल सब
पगहा आज लगावल जाई।
बेच बेच केतना खैलन सन
चलीं आज बतावल जाई।
बाँट देलख सब घर-समाज इ
एकनी के धूल चटावल जाई।
भइया-भउजी भइल बहुत
अब बढ़नी पीठ बजावल जाई
बिना किये कुछ काम अइलन सब
एकनी के दूर भगावल जाई।
घूम रहल बेलज मुँहझौंसा सब
अब दाढ़ी में आग लगावल जाई।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
देवDevकान्तKant पाण्डेयPandey
अपने माटी के महक जहां रही उहवां त हम रहबे करब ।
Jan 17, 2011
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
Jan 17, 2011
sanjiv verma 'salil'
संजीव 'सलिल'
भइल किनारे जिन्दगी, अब के से का आस?
ढलते सूरज बर 'सलिल', कोउ न आवत पास..
*
अबला जीवन पड़ गइल, केतना फीका आज.
लाज-सरम के बेंच के, मटक रहल बिन काज..
*
पुड़िया मीठी ज़हर की, जाल भीतरै जाल.
मरद नचावत अउरतें, झूमैं दै-दै ताल..
*
कवि-पाठक के बीच में, कविता बड़का सेतु.
लिखे-पढ़े आनंद बा, सब्भई जोड़े-हेतु..
*
रउआ लिखले सत्य बा, कहले दूनो बात.
मारब आ रोवन न दे, अजब-गजब हालात..
*
पथ ताकत पथरा गइल, आँख- न दरसन दीन.
मत पाकर मतलब सधत, नेता भयल विलीन..
*
हाथ करेजा पे धइल, खोजे आपन दोष.
जे नर ओकरा सदा ही, मिलल 'सलिल' संतोष..
*
मढ़ि के रउआ कपारे, आपन झूठ-फरेब.
लुच्चा बाबा बन गयल, 'सलिल' न छूटल एब..
*
कवि कहsतानी जवन ऊ, साँच कहाँ तक जाँच?
सार-सार के गह 'सलिल', झूठ-लबार न बाँच..
***********************************
May 13, 2011
sujeet kumar yadav
आँख से लोर ढरकावाल जीन करा,
दिल के बात बतावल जीन करा|
लोग मुट्ठी मे नून लेके घूमेलन,
आपन जखम देखावल जीन करा|
Sep 3, 2011
मनोज कुमार सिंह 'मयंक'
भोजपुरी में होत बा, हाटे हॉट प्रयोग|
लड़िकाई में लगत हौ, इशक,विशक क रोग|
इशक,विशक क रोग,नीम पर चढल करैला|
बुढवा हौ मदमस्त की बिगडल जात गदेला|
कईसे मरद कहावत बाट, पहिन ल चूड़ी|
कहें मनोज कुमार श्लील अब ना भोजपुरी||
Mar 14, 2012
Sanjay Rajendraprasad Yadav
अपनी माटी के महक जब ह्रदय में एहसास करावेला त ई मन भाव से भर जाला ,भोजपुरी प्यार दुलार त जनम-जनम का नाता बाय जे कभी ना टूट सकी।।।।।।।।।।।।
Nov 28, 2012
mrs manjari pandey
दू गो इ पंक्ति भोजपुरी के सुखद समाचार पर।
कहवाँ से आइल किरिनिया हो हियरा हुलसाईल
चनवा क जइसे चननिया हो अँगना अन्जोराइल।
Dec 15, 2012
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, इ दू लाईन हियरा के ख़ुशी के पूरा बयान कर देत बा, बधाई रउआ के |
Dec 15, 2012
mrs manjari pandey
भोजपुरी माई के समर्पित एगो गीत -
रहिया मोती बिछाइल बटोर ना .
चलली धीरे धीरे एक -एक डगरिया
लोगवा से गउवा आइ गइली नगरिया
समुन्दर हम होई गइली आइ के रजधानिया
हिलोर ना
भरल रतन हियरवा हिलोर ना
रहिया .......
घरवा में रहि के कुछु नाही कईली
देस विदेस जाई के नउवा कमईलीं
बिरह के घाव अब ई कईसों पुरवली
दिदोर ना घाऊ वा बाटे दिदोर ना
रहिया .........
जेइ सपनवा के ओढ़ी हम सुतलीं
एकरा अलावे कुछु बूझत न रहलीं
सपनवा संजवत जिनगिया बितवली
झिंझोर ना
अन्हिया से इ सपनवा झिंझोर ना
रहिया ............
मनवा के ताना बाना बीनत रहलीं
कतना त ताना मेहना सहत रहलीं
हार बाकि कबहूँ न रजको हं मनली
बिटोर ना
तनकी मिलल अंजोरिया बिटोर ना
रहिया ..............
Dec 18, 2012
Admin
आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी आपकी रचना कमेंट बॉक्स में हो गई है , कृपया यह रचना कमेंट बॉक्स के ऊपर बने +Add Discussion बटन को क्लिक कर पोस्ट करें ।
Dec 18, 2012
एम. के. पाण्डेय "निल्को"
बहुत नीमन लागता, पहली बार ऐजा आइल बानी ........ अद्भुत ........ बधाई आ शुभकामना बा ओपेन बुक्स ऑनलाइन के की उ अइसन मंच बनावलस ।
Jan 18, 2013
Brij kishor Chaubey
सब जानल पहचानल भुईया
धांगल ह बचकानी मे
अब काहे अबूझ अनजानी
लागे देखी जवानी मे .................
कातना लुका छुप्पी खेलनी
बूझत बूझ पलानी मे
माई के तावा के रोटी
लुटत भाग चुहानी मे.....................
अल्लहड़ पन के छुवा छूवौवल
डुबकी मारी के पानी मे
सोचत सिहरन उठे देह
मन भटकल कथा कहानी मे.........................
सब कुछ बदलल बदलल लागे
घर दुआर बगवानी मे
भागे दूर देखी सब लरिका
का अइहे अगवानी मे.....................
देखनी धानी चुनरी ओढ़े
सजनी ठाढ़ दलानी मे
का बृज कही न फूटे बानी
बरसे नयन नादानी मे......................
Feb 23, 2013
Shyam Narain Verma
May 7, 2013
PRAMOD SRIVASTAVA
गीत
दिनवा ओराये लागल
रतिया हेराए लागल
बुते लागल असरा क. बरल. तु दियना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
का ओही देसवा मा-
बाटे, जे बिलमि गइल.
मइया क. बूढउती क.
बने तु अलमि गइल..
दूजि क. चाँद भइल. ,आंखी मोर सावना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
खेल कूद, लिखा पढ़ी
सबकर गवाही बा
इहवें क. धुरिया तोहरे
पोर-पोर समाइल बा
कइसे से उखरल बाबा दुलरवा क. सियना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
आम बउरे, मेघा चुये
माटी सोंधियाइल फेरू
कोयलिया क. कुहूक से
गूँजल अमराई फेरू
जोहे चउपाल, टोला, राह, साथी, संगना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
घरे घरे लट्टू,टीवी
डहर. कोलतारी
गाँव मनरेगा,चलल
विकास क. बयारी
गवई शहराए लागल, जाइ बाँच. सुगना
कि आइ हिये लाग. ना
कह. अइब. कबले, लागे मोर जिय ना
प्रमोद श्रीवास्तव, लखनऊ
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
May 15, 2014
Shyam Narain Verma
May 15, 2014
PRAMOD SRIVASTAVA
dhanyavaad Shyam Narayan Verma ji.
May 29, 2014
Manan Kumar singh
मनब कि ना मनब, बेशी अगरइब?
आइल बुढ़ापा,अब गरहा में जइब।
खोज तार फूल अब कहाँ लेकेे जइब?
नजर धुंधला गइल,सुँघब कि सटइब?
बेरी-बेरी हो छेदी,काहे तू तुड़ात बाड़?
अब कवना देवी के फूल तू चढ़इब?
बेदी-बेदी घूम अइल,का भइल कह ना?
अब कवन बेदी जाके फेर अझुरइब?
सुन मान बात,छोड़ द लगावल पायेंत,
नयकिन के नजर पड़ी,खूब धसोरइब।
कॉपी@मनन
Apr 10, 2015
Manan Kumar singh
Apr 14, 2015
मुख्य प्रबंधक
Er. Ganesh Jee "Bagi"
आदरणीय मनन कुमार जी, आप अपनी रचना सामान्य टिप्पणी बॉक्स में पोस्ट कर दिए हैं जबकि आपको अपनी रचना ऊपर में +Add a Discussion विकल्प को क्लिक कर पोस्ट करनी चाहिए, वहां आपको एडिट ऑप्शन भी मिलेगा. एक बात और ध्यान रखें कि रचना के नीचे "मौलिक एवं अप्रकाशित" अवश्य लिखें. सादर.
Apr 14, 2015
Manan Kumar singh
Apr 14, 2015
shwetank gupta
Apr 30, 2015
Jitendra Upadhyay
bahute nik ba e pagwa ta
May 5, 2015
Pankaj Kumar Mishra "Vatsyayan"
पन्ना पन्ना निहारल, अख़बार भईल बा।।
केहू कुल्टा कहेला, केहू ताना सुनावे।
कउनो रहिया चलत के, गन्दा गाना सुनावे।
अब त बेहया जवानी, दुशवार भईल बा।
पन्ना पन्ना निहारल, अख़बार भईल बा।।1।।
पियवा गइलें परदेश, ना लवटलें ये देस।
जियरा पीरा से भरल, तेज लागल बा ठेस।
घर क खर्चा सम्हारल, एक पहार भइल बा।
पन्ना पन्ना निहारल, अख़बार भईल बा।।2।।
जूठ बरतन औ पोंछा, इनके ओनके घरे।
रुपिया कम परि गइल बा, पेटवा कइसे भरे।
दूध छोटका क साहिब, जुठार भइल बा।
पन्ना पन्ना निहारल, अख़बार भईल बा।।3।।
कुछ न कहेला न पूछे, बस मनवै में खीसे।
बंद कोठरी क पल्ला, देखि देखि दांत पीसे।।
बड़का बाबू लजाला, होशियार भईल बा।।
पन्ना पन्ना निहारल, अख़बार भईल बा।।4।।
ओके कइसे बताईं, आँख कइसे मिलाईं।
मजबूरी क ई पन्ना, कहा कइसे पढ़ाईं।
बिटिया बिहये क लायक, तइयार भईल बा।
पन्ना पन्ना निहारल अख़बार भईल बा।।5।।
मौलिक अप्रकाशित
Sep 19, 2015
Manan Kumar singh
भउजी कहली समझावल जाई,
चलीं फेर वोट गिरावल जाई।
बात बनउअल भइल बहुत अब
एकनी के आज बतावल जाई।
बहुते नाच नचवलख इ सब
एकनी के आज नचावल जाई।
बे पगहा के बैल बनल सब
पगहा आज लगावल जाई।
बेच बेच केतना खैलन सन
चलीं आज बतावल जाई।
बाँट देलख सब घर-समाज इ
एकनी के धूल चटावल जाई।
भइया-भउजी भइल बहुत
अब बढ़नी पीठ बजावल जाई
बिना किये कुछ काम अइलन सब
एकनी के दूर भगावल जाई।
घूम रहल बेलज मुँहझौंसा सब
अब दाढ़ी में आग लगावल जाई।
@मनन
Oct 10, 2015
Manan Kumar singh
भउजी कहली समझावल जाई,
चलीं फेर वोट गिरावल जाई।
बात बनउअल भइल बहुत अब
एकनी के आज बतावल जाई।
बहुते नाच नचवलख इ सब
एकनी के आज नचावल जाई।
बे पगहा के बैल बनल सब
पगहा आज लगावल जाई।
बेच बेच केतना खैलन सन
चलीं आज बतावल जाई।
बाँट देलख सब घर-समाज इ
एकनी के धूल चटावल जाई।
भइया-भउजी भइल बहुत
अब बढ़नी पीठ बजावल जाई
बिना किये कुछ काम अइलन सब
एकनी के दूर भगावल जाई।
घूम रहल बेलज मुँहझौंसा सब
अब दाढ़ी में आग लगावल जाई।
मौलिक व अप्रकाशित@मनन
Oct 10, 2015