"तू ही वो वज़ह है (लघुकथा):
"हैलो, अस्सलामुअलैकुम। ई़द मुबारक़। कैसी रही ई़द?" बड़े ने छोटे भाई से फोन पर कहा।
"वाअलैकुमअस्सलाम भाईसाहब । कैसी रहती? जैसी होनी थी हो गई मेरी भी…"
"गोष्ठी का आग़ाज़ बेहतरीन मार्मिक लघुकथा से करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब। बढ़ती गयी...बढ़ती गयी पाठक की जिज्ञासा शीर्षक से लेकर रचना के पड़ाव -दर-पड़ाव और सरप्राइज…"
"ध्वनि लोग उसे पूजते।चढ़ावे लाते।वह बस आशीष देता।चढ़ावे स्पर्श कर इशारे करता।जींस,असबाब दीन -दुखियों में बांट देने की उसकी मंशा उसके आसपास खड़े शागिर्द लोग इंगित करते।कारवां यूं ही बढ़ता…"