"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपके नजर परक दोहे पठनीय हैं. आपने दृष्टि (नजर) को आधार बना कर अच्छे दोहे प्रस्तुत किये हैं.
इस प्रयास हेतु हार्दिक बधाई. एक बात मैं आपसे अकसर साझा करता…"
दोहा दशम्. . . . गुरुशिक्षक शिल्पी आज को, देता नव आकार । नव युग के हर स्वप्न को, करता वह साकार ।।बिना स्वार्थ के बाँटता, शिक्षक अपना ज्ञान । गढ़े ज्ञान से वह सदा, एक सभ्य इंसान ।।गुरुवर अपने ज्ञान…See More
२१२२ २१२२ २१२२ औपचारिकता न खा जाये सरलता********************************ये अँधेरा, फैलता जो जा रहा हैरोशनी का अर्थ भी समझा रहा है चढ़ चुका है इक शिकारी घोसले तकक्या परिंदों को समझ कुछ…See More
"आदरणीय सौरभ भाई , ' गाली ' जैसी कठिन रदीफ़ को आपने जिस खूबसूरती से निभाया है , काबिले तारीफ़ है , सभी शेर सामयिक और सार्थक लगे , ख़ास कर ये दो शेर ,
कुछ नहीं कर सका बुरा…"