"आ. सौरभ सर,होठों को शहद, रस, जाम आदि तो कई बार देखा सुना था लेकिन पहली बार होंठ पे गमले देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..आगे होठों पे क्यारी, बौलेवार्ड और खेत भी देखने जल्द ही मिलेंगे.. बस आप काठमांडू…"
"क्या खूब कहा आदरणीय निलेश भाई सादर बधाई,
“जो गुज़रेगा इस रचना से ‘नक्की’ पगला जाएगा
दिल बोला औरों को छोड़ कि तू भी पगला जाएगा”
आपके और सौरभ सर के बीच की चर्चा,…"
"हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई.
//व्यावहारिक रूप में तो चाँद तारे तोडना, आसमान झुका देना, ममोले को शाहबाज़ से लड़ा देना भी असहज है लेकिन शाइरी के रूपक शाइर को लम्बी…"
"आ. अजय जी इस बहर में लय में अटकाव (चाहे वो शब्दों के संयोजन के कारण हो) खल जाता है.जब टूट चुका है दिल मेरा रख अपनी नसीहत अपने तक नुक़सान उठाकर मैं ख़ुश हूँ , क्या और किसी का जाता है..संतोष की…"
"आ. सौरभ सर .ग़ज़ल तक आने और उत्साहवर्धन करने का आभार ...//जैसे, समुन्दर को लेकर छोटी-मोटी जगह कहना आपकी आँखों की विशालता को स्थापित करता दिखता है. लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह असहज तथ्य ही माना…"