ग़ज़ल की कक्षा

इस समूह मे ग़ज़ल की कक्षा आदरणीय श्री तिलक राज कपूर द्वारा आयोजित की जाएगी, जो सदस्य सीखने के इच्‍छुक है वो यह ग्रुप ज्वाइन कर लें |

धन्यवाद |

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  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    //कवि सम्मेलन या मुशायरे में पढ़ते समय सही उच्चारण क्या हो किसी शब्द का ये मूल प्रश्न है मेरा.//

    यह नितान्त अलग विषय है.

    इस संदर्भ एक बात जाननी और रोचक है कि हम तथाकथित हिन्दी प्रदेश के लोग (उत्तर भारत, पुराना मप्र, उप्र और पुराना बिहार) वस्तुतः हिन्दी भाषी हैं ही नहीं. करीब सभी आंचलिक भाषा से ही अपना बोलना प्रारम्भ करते हैं और हिन्दी भाषा एक काल खण्ड के बाद उनकी बोलचाल में आती है. तबतक आंचलिक भाषा में प्रयुक्त हो चुके या अपना लिये गये शब्दों के उच्चारण की आदत इतनी अधिक प्रभावी हो चुकी होती है कि हिन्दी बोलते समय भी वही उच्चारण प्रभावी होते हैं. शुद्ध उच्चारणके लिए विशेष प्रयास करना पड़ता है.
    यही कारण है कि आंचलिक भाषा (अवधी, भोजपुरी, काशिका, बज्जिका आदि) के उच्चारणों के आदी लोग स्मित, स्त्री, स्नान, स्कूल आदि-आदि जैसे शब्दों का उच्चारण कर ही नहीं पाते और रचनाओं में उनकी मात्रा तक से खिलवाड़ करते हैं. यदि वे तथाकथित ’नाम-धाम’ वाले रचनाकार हो गये तो फिर कहना ही क्या ! जबकि तनिक अभ्यास से सही जानकारों के निर्देशन में इन शब्दों का शुद्ध उच्चारण अवश्य किया जा सकता है.

    लेकिन यह सारा कुछ एकदम से अलग विषय का संदर्भ है.


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    मेरे पास मुहम्मद मुस्तफ़ा ख़ान मद्दाह की लुगत ’उर्दू-हिन्दी शब्दकोश’ है. यह एक प्रामाणिक लुगत है. मद्दाह साहब ने खिलौना शब्द का शुमार किया ही नहीं है.
    :-))

    (समझे?)

  • Nilesh Shevgaonkar

    हा हा हा 

  • Nilesh Shevgaonkar

    और हम यहाँ ऐसे ही माथा फोड़ रहे हैं..हा हा हा 

  • Nilesh Shevgaonkar

    अब चेन्नई एक्सप्रेस की दीपिका वाला सवाल नहीं पूछूँगा ..हा हा हा 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आपको अचानक प्राप्त हो गये ’बुद्धत्व’ का तनिक हमें भी लाभ मिले, आदरणीय.

    :-)

    जिसने चेन्नै एक्प्रेस देखा न हो, वो दीपिका के प्रश्न पर क्या समझे ?

  • Nilesh Shevgaonkar

    वो यूँ कि -"कहाँ से ख़रीदी ऐसी बोकवास डिक्शनरी" 
    माज़रत के साथ 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    हा हा हा ..

    तब तो आपका बुद्धत्व वाकई सादर प्रणम्य है.. हीरे को कंकर ही समझता है. :-))

    आपकी जिज्ञासा -- कस्तूरी कुण्डलि बसै, मृग ढूँढे बन माँहि..
    :-)))

  • मनोज अहसास

    आप सभी को प्रणाम करता हूँ
    ग़ज़ल सीखना चाहता हूँ
    कृपिया साथ और आशीर्वाद दोनों से हौसला दे
  • Manan Kumar singh

    आदरणीय तिलक सर, 

    मापनी पर कुछ जानकारी जरूर लगती है, मैं नहीं समझ पाता हूँ;सादर, मनन 

  • मनोज अहसास

    आप सभी को प्रणाम करता हु
    उपस्थित सभी ज्ञानी जनों कुछ क्रियात्मक ज्ञान आप सभी से प्राप्त करने की इच्छा है
    ग़ज़ल कैसे कही जाती है ये मेरा प्रश्न है


    ग़ज़ल के आधार भुत कुछ तत्वों से काफी पहले से मेरा परिचय रहा है
    जैसे मिसरा शेर काफ़िया रदीफ़ आदि
    अब बहर मेरे सर का दर्द बन गयी है
    बहर के बारे में इतनी जानकारी मुझे है क़ि ग़ज़ल एक लय पर कही जाती है और बहुत सारी लय पहले से ही निश्चित है
    इसमें मात्राओ की गणना होती है पूरी ग़ज़ल एक ही निश्चित मात्र क्रम पर आधारित होती है जिसके बिगड़ जाने पर ग़ज़ल खारिज हो जाती है
    इतनी थोड़ी बहुत जानकारी मुझे है


    अब
    मै ग़ज़ल कैसे कहता हु ये बता रहा हु
    मैं जब कभी भाव अवस्था में होता हु और अनायास कोई पंक्ति मुह ऐ निकल जाती है या दिमाग में गूंजती रहती है तो उसे लिख लेता हु उसके उपरांत उसे गाकर एक ऎसे क्रम में लगा लेता हु की उसके अंतिम शब्द अर्थात काफ़िया और रदीफ waywasthit हो जाये
    अर्थात काफ़िया ऐसा हो जिसके तुकांत या सामान उच्चारण वाले कई शब्द मुझे ज्ञात हो
    फिर दूसरा मिसरा उनमे से एक एक काफिये से बनना शुरू होता है और पहला मिसरा दूसरे मिसरे के जुड़ाव बनता जाता है उसी भाव में जो मन में है इस प्रकार शेर बनते जाते है




    अब सवाल ये है क़ि इस प्रकिर्या में बहर कहाँ आती है
    दूसरी बात क्या मात्राएँ गिन गिन कर शब्दों का चुनाव होता है
    या गाने पर ले न बनने पर मात्रा गिनी जाती है



    सभी बातों को कहदिया है पर सवाल बहुत से है

    कृपिया। जवाब साधारण शब्दों में सवालो के अंतर्गत ही दे
    अगर एक ग़ज़ल की निर्माण प्रक्रिया उद्धरण स्वरुप बता दे
    के ऐसा होता है क़ि......
    तो बड़ी कृपा होगी


    बहुत बेचैनी से प्रतीक्षा है
    सादर

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    भाई मनोज जी,
    आप उसी समूह में अपने प्रश्न और जिज्ञासाएँ निवेदित कर रहे हैं जिस समूह में ग़ज़ल सम्बन्धित पाठों के क्रमवार लिंक दिये गये हैं.
    फिर, ओबीओ के हर पेज के फ़ूटर में उपर्युक्त पाठों के अलावे ग़ज़ल सम्बन्धी अन्य पाठों के लिंक हुआ करते हैं.
    आप इन सभी पाठों का मनोयोग पूर्वक अध्ययन किया करें. आपकी अधिकांश जिज्ञासाएँ संतुष्ट हो सकेंगीं.

    इसके बाद हर रचना प्रस्तुति पर आवश्यक चर्चा होती है. इस पर आपका भी ध्यान गया होगा. आप इन चर्चाओं से भी लाभ प्राप्त कर सकते हैं.
    शुभेच्छाएँ.

  • मनोज अहसास

    धन्यवाद सर
    आपकी बात का पालन मै ज़रूर करूँगा
    पर आपसे पुनः निवेदन है कि मेरा प्रश्न एक बार फिर से पढ़े
    मैंने ग़ज़ल कहने की जिस प्रक्रिया पर प्रश्न किया है उसे आप बता देगे तो
    बहुत लाभ होगा
    कृपिया पहले की तरह ही सरल भाषा में समझा दे
    सादर

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    भाई मनोजजी, आप पहले पाठक बनें..  आपको स्वयं कई प्रश्नों के समाधान मिल जायेंगे. आपका प्रश्न हम देख चुके हैं ..

    शुभेच्छाएँ.

  • amod shrivastav (bindouri)

    बन्दना माँ सरस्वती के चरणों की और ग्रुप के सभी गुरु और गुनीजनो की मै इस परिवार का नया सदस्य हु। और गजल विधा में भी जानकारी नही है । यहाँ आने के बाद कुछ अपना पन महसूस हुआ लगा आज फिर मै कक्षा में बैठा हूँ । वही बचपना ले कुछ सीखना चाहता हूँ ।
    आप सभी गुरु जन आशीर्वाद दे मुझे
  • amod shrivastav (bindouri)

    जिंदगी में तुम्हारी कमी रह गई
    प्यार की सब किताबे धरी रह गई

    रोज मिलते रहे दर्दों गम हर गली
    जिंदगी बस कड़ी की कड़ी रह गई

    खामोश आँगन मेरा सुगबुगाता रहा
    आँखों में बारिश की झड़ी रह गई

    खुशियाँ रूठी तो बाहर निकली इस कदर
    दरवाजे की कड़ी लगी रह गई

    कलम उछली खुद को नचनियां समझ
    प्रे म पत्रों की तबियत बिगड़ी रह गई

    जस्न मनाये तो बिंदोरी मनाये किस तरह
    रोशनी बस घडी दो घडी रह गई

    सर ये गजल मैंने अभी हल में लिखी है । बहर की जानकारी नही है ।
  • sunil azad

    Nmste sir sir mujhe gajal sunna kahna bhut pasnd h par paresani h sir main gajal me kuch nhi janta nivedan karta hun sir mujhe bhi kuch sikhaya jaye
  • arun kumawat

    नमस्कार आदरणीय जी
    मै गजल की मापनी - बहर की जानकारी चाहता हु
    यह कितने प्रकार के होती है
    ओर शब्दो का वज्न केसे ज्ञात किया जाताा है
  • Amit Tripathi Azaad

    नमस्कार आदरणीय मै ग़ज़ल क़ी बारीकियां सीखना चाहताहूँ
  • Abha saxena Doonwi

    मैं  भी  ग़ज़ल लिखना  सीखना  चाहती हूँ बताइए कैसे सीख सकती हूँ ...शुक्रिया ....आभा 

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    आदरणीय गजल की बह्र के बारे में कुछ जानने का इच्छुक हूं । कृपया मार्गदर्शन करें ।

  • सदस्य कार्यकारिणी

    गिरिराज भंडारी

    आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण भाई , गज़ल से सम्बन्धित जानकारी के लिये यहाँ दो  जगहें हैं -
    1- गज़ल की कक्षा और 2- ग़ज़ल की बातें -- दोनो अपने आप मे  पूर्ण हैं , लेकिन मेरा अनुभव  है कि अध्ययन की शुरुवात आप गज़ल की बातों से करें , एक दो बार पढ़्ने के बाद अगर कुछ कठिनाई आये तो मंच मे बहुत से जानकार हैं , जो कठिनाई हल कर सकते हैं -- लिंक नीचे दे रहा हूँ - क्लिक करिये , वहीं पहुँच जायेंगे -

    http://www.openbooksonline.com/group/gazal_ki_bateyn

  • सुरेश कुमार 'कल्याण'

    श्रद्धेय गिरिराज भंडारी जी मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
  • sunil azad

    नमस्ते आदरनिय श्री मैं भी इच्छुक हूं गजल के बारे में बह्र के बारे में कुछ सीखने का मैं आदरनिय जी से गुजारिश करता हूँ मुझे भी कक्षा में दाखिला दें और आशीर्वाद से नवाजे धन्यवाद जी
  • Pankaj sagar

    महोदय मई भी ग़ज़ल सिखाने की चाहत रखता हु ।कृपया हमें भी अपनी कक्षा में शामिल कर ले धन्यवाद
  • Manisha Joban Desai

    नज़रमें तुम्हें बसा लेंगे यूं आओ तो सही,
    दिल के कमरे में हमें छूपाओ तो सही।

    छा रही है चुपकी सी इन हवाओ में कहीं,
    बात प्यारी सी कभी आकर सुनाओ तो सही।

    वो पल कहीं रुक से ही तो गये है राहमें,
    आप पलको में छूपाकर फिर लाओ तो सही।

    आसमाँ पर तूटकर भी मीलते तारे कहीं,
    बिखरी सी ये किस्मते मिलाओ तो सही।

    जी रहे है आपकी यादें संभाले दिलमें,
    और ये बातें तुम समज जाओ तो सही।

    -मनिषा जोबन देसाई

    अभी नया सीख रहे है -आप अभीप्राय दीजिये

  • KALPANA BHATT ('रौनक़')

    सर यही और कभी की तुकांता हो पायेगी क्या ।
  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. Manisha Joban Desai जी,
    ग़ज़ल में रदीफ़, काफ़िये के साथ बहर यानी मीटर यानी लय भी महत्वपूर्ण है ...
    कक्षा में  उपलब्ध आलेखों को पढकर अपने मिसरों की तक्तीअ कीजिये.
    क्या आप अपने सभी मिसरे एक लय में कह पा रही हैं ?
    ग़ज़ल की दुनिया में स्वागत है.  

  • Nilesh Shevgaonkar

    आ. KALPANA BHATT जी,

    यहीं कहीं वाले यहीं से कभी का तुक नहीं  है ....
    ये ही (यही) तो मैं कह रहा हूँ वाले से है. इस में काफ़िया  मात्रा का है ...
    सभी नयी अभी रुकी चली उगी आदि 
    .
    सादर 

  • KALPANA BHATT ('रौनक़')

    Sadar dhanyawad aadarniya Nilesh ji .
  • indravidyavachaspatitiwari

    मैने नया ज्वाइन किया है । आशा करता हूं कि गजल की विधा के बारे मंे काफी प्रगति होगी और कामयाबी के पास पहुंच जाऊंगा।

  • Sushil Kumar Verma

    मैं गजल की कक्षा हाल में ही ज्वाइन किया!! आशा है कि आप सभी गुरुजनों का मुझ पर आर्शीवाद बना रहेगा!!
  • प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'

    क्या हमराज़ और मुहताज को मतले में काफिया बाँधा जा सकता है, और फिर आज आवाज़, साज जैसे हर्फ़-ए-कवाफी लेकर आगे के शेर लिखे जा सकते हैं ‌? उस्ताद लोग इस विषय पर मेरी मदद करने की कृपा करें। दरअसल एक ग़ज़ल लिखना चाहता हूं परंतु किसी का हर्फ़े आखिर जीम है तो किसी का हर्फ़े आखिर ज़ाल है, इसलिए शक हो रहा है कि काफ़िया को लेकर गज़ल ख़ारिज़ न हो जाए।

  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय प्रदीप जी, आप यदि उर्दू लिपि में ग़ज़लग़ोई कर रहे हो तो आपके प्रश्न उपयुक्त है। अन्यथा, हिंदी भाषा, जिसकी लिपि देवनागरी है, के लिए ऐसे प्रश्न ग़ैर ज़रूरी हैं। 

    ओबीओ के पटल पर हिंदी भाषा का सर्वसमाही स्वरूप ही स्वीकार्य है। 

  • प्रदीप कुमार पाण्डेय 'दीप'

    आपकी प्रतिक्रिया पाकर प्रसन्नता हुई, मुझे भी ऐसा ही लग रहा रहा था। अपने संदेह को दूर करने के लिए इस पटल की सहयता लेना आवश्यक समझा। मैं देवनागरी में ही ग़ज़ल लिख रहा हूँ, अतः मुझे इस ग़ज़ल को पूरा करना चाहिए।
    शीघ्र ही एक ग़ज़ल लिखकर आप सभी के मध्य समीक्षार्थ प्रस्तुत करता हूँ।

  • सदस्य कार्यकारिणी

    rajesh kumari

    आद० प्रदीप कुमार पाण्डेय जी ,आपका प्रश्न ऐसा है जो हर नवहस्ताक्षर के जेहन में उठता है आद . सौरभ पाण्डेय जी ने इसका बेहतरीन जबाब दिया है ओबीओ पटल पर देवनागरी कि ग़ज़लों में या गीतिका में ऐसे शब्द स्वीकार्य हैं | किन्तु मैं अपना एक उदाहरण भी प्रस्तुत करना चाहूंगी मैंने एक ऐसी ही ग़ज़ल लिखी थी जिसमे सभी नुक्ते वाले बिना नुक्ते वाले शब्दों को काफिये में ले लिया था .बाद में वो ग़ज़ल कुछ उस्ताद  ग़ज़ल गो को दिखाई तो सुझाव यही मिला कि कोशिश यही करो कि जीम और ज़ाल वाले काफिये अलग करो , इस तरह फिर मैंने कोशिश करके उनको अलग किया और मेरी दो गज़लें तैयार हो गई .आद० जनाब समर कबीर जी का मशविरा भी यही था .जब ग़ज़ल में मेहनत कर ही रहे हैं तो कोई भी कमी क्यूँ छोड़ें मेरी तो अब अपनी ये निजी राय है वो दोनों गज़लें यहाँ पोस्ट कर रही हूँ आपके अवलोकनार्थ ...

    एक ही रदीफ़ पर दो गज़लें 
    (१)
    ये जो इंसान आज वाले हैं 
    कुछ अलग ही मिजाज वाले हैं 

    रास्तों पर अलग अलग चलते 
    एक ही ये समाज वाले हैं 

    दस्तख़त से बनें मिटें रिश्ते 
    कागजी ये रिवाज वाले हैं 

    रावणों की मदद करें गुपचुप 
    लोग ये रामराज वाले हैं 

    रोज खबरों में हो रहे उरियाँ
    ये बड़े लोकलाज वाले हैं 

    मुंह छुपाते विदेश में जाकर 
    जो बड़े कामकाज वाले हैं 

    भूख होती है क्या वो क्या जानें 
    वो जो मोटे अनाज वाले हैं 

    (२ )

    काम तो चालबाज़ वाले हैं 
    नाम उनके फ़राज़ वाले हैं 

    आज फलफूलते वही रस्ते 
    वो भले एतराज़ वाले हैं 

    अब परस्तार भी बटे देखो 
    ये भजन ये नमाज़ वाले हैं 

    कश्तियों को न रास्ता देते 
    ये जो चौड़े जहाज़ वाले हैं

    कारनामे छपें सदा जिनके 
    वो कहें हम लिहाज़ वाले हैं 

    देश भर में अलापते फिरते 
    खोखले वो जो साज़ वाले हैं 

    काम यकदम करें भला कैसे 
    उनके ओहदे तो नाज़ वाले हैं 
    राजेश कुमारी 'राज'


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Rana Pratap Singh

    प्रिय प्रदीप जी

    आपका जवाब आपके प्रश्न में ही है| आपने स्वयं ही दोनों काफियों को नुक्ता व बिना नुक्ते के लिखा है और मुझे पूर्ण विश्वास है कि आपको नुक्ते का उच्चारण में क्या योगदान होता है यह भी पता होगा| चूँकि काफिया मूलतः ध्वनि आधारित होता है तो आपके द्वारा लिए गए काफिये गलत होंगे| यदि आप अगर और अग़र में अंतर कर ले रहे हैं तो आदरणीया राजेश कुमारी जी की बात पर ध्यान दें अन्यथा आदरणीय सौरभ जी ने भी कुछ ग़लत नहीं कहा है|


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    उर्दू की लिपि से अनजान अभ्यासी क्या उर्दू लिपि आधारित सलाहों को कैसे ले ? ओबीओ के पटल पर व्यक्तिगत आग्रह कब से प्रभावी होने लगे ? या, ग़ज़ल को लेकर यह मान लिया गया है कि इस विधा पर अभ्यास करना है तो पहले उर्दू सीखनी या जाननी होगी ? क्या ऐसे में हम ग़ज़ल की सर्वमान्यता को बलात संकुचित नहीं कर रहे ?

    मैंने आ० प्रदीप जी को दिये अपने उत्तर में स्पष्ट कहा है कि देवनागरी लिपि की विशेषताओं को अवश्य ही ध्यान में रखा जाय। यदि कोई ग़ज़ल अभ्यासी उर्दू वर्णों को भी ध्यान में रख कर व्यवहार करता है तो यह उसकी व्यक्तिगत कोशिश ही मानी जाय। न कि इस कोशिश को मानक बनाया जाय। क्योंकि उर्दू और देवनागरी दोनों लिपियों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं तो अपनी सीमाएँ भी हैं। हमें दोनों लिपियों की विशेषताओं और सीमाओं का सम्मान करना है। हमारे सुझाव और सलाह सर्वसमाही  चाहिए।

  • Kishorekant

    संयुक्ताक्षर के आगेवाला शब्द गुरू हो जाता है,  कृपया ईसके अपवाद बतायें ।

  • Samar kabeer

    सोचा,

    "अब आये हैं तो ये भी जहाँ देखते चलें"

    जनाब तिलकराज कपूर साहिब आदाब अर्ज़ करता हूँ ।

  • V.M.''vrishty''

    मौत की उम्मीद पर जीने की आदत हो गयी
    जिंदगी सूखे हुए पत्ते की सूरत हो गयी
    ठंड ओलों की सही सूरज के अंगारे सहे
    पीढ़ियों को पाल कर जर्जर इमारत हो गयी
    चेहरा पैमाना बना है खूबियों का आज-कल
    रंग गोरा है मगर गुमनाम सीरत हो गयी
    धूल दिए हैं धूल बारिश ने मकानों के मगर
    टूटी फूटी झोंपड़ी वालों की शामत हो गयी
    मैं! मेरा उत्कृष्ट सबसे! बाकी सब बेकार है
    बस यही समझाने में अब हर जुबाँ रत हो गयी


    मैं आप सभी से जानना चाहती हूँ कि ग़ज़ल के नज़रिए से इस रचना में बह्र के अलावा और क्या क्या गलतियाँ हैं????
  • Samar kabeer

    मुहतरमा "वृष्टि" जी,आपकी ग़ज़ल अच्छी है,बधाई आपको ।

    धूल दिए हैं धूल बारिश ने मकानों के मगर

    सिर्फ़ ये मिसरा बह्र में नहीं है,इसे यूँ किया जा सकता है :-

    'धो दिया है तेज़ बारिश ने मकानों को मगर'

  • V.M.''vrishty''

    आदरणीय समर कबीर जी, सादर अभिनंदन! मैं अल्फ़ाज़ों में बयाँ नहीं कर सकती कि आपके इस टिप्पड़ी से मुझे कितना सुकून महसूस हो रहा है। मुझे ये लगने लगा था कि ग़ज़ल मेरे बस की बात नही,और मेरा प्रयास निरर्थक है।
    आपने मेरे मृतप्राय उत्साह में जान डाल दी है।
    बहुत बहुत धन्यवाद!
  • Samar kabeer

    प्रयासरत रहें,शुभेच्छाएँ ।

  • V.M.''vrishty''

    आदरणीय समर कबीर जी, प्रणाम! शुभ प्रभात!

    इस रचना पर आपकी टिप्पड़ी चाहती हूं--

    शिकायत क्या करें कि आपको मोहलत नहीं मिलती
    मुझे मेरे लिए ही आजकल फुरसत नहीं मिलती

    न यूँ बर्बाद अपना वक़्त कर तू मुफ्त में ऐसे
    किसी को घर मे यूँ ही बैठ कर शोहरत नहीं मिलती

    अगर ख्वाहिश हो दिल मे प्यार की तो प्यार से रहना
    किसी की छीन कर इज़्ज़त कभी इज़्ज़त नही मिलती

    खुदा ने लिख दिया है जिनकी किस्मत में ग़में-गुरबत
    करें वो लाख कोशिश पर उन्हें दौलत नहीं मिलती

    न जाने क्या हुआ मुझको मिला हमराज ना कोई
    न जाने क्यों हरएक से मेरी तबीयत नही मिलती

    लगी ठोकर हमें जिस रोज़, यारों हमने भी माना
    सही कहते हैं हर इंसां को मोहब्बत नहीं मिलती
    मौलिक व अप्रकाशित
  • Samar kabeer

    मुहतरना "वृष्टि" जी आदाब,ये ग़ज़ल आपको ब्लॉग पर पोस्ट करना चाहिए थी, ख़ैर ।

    मतले में शुतरगुर्बा दोष है,इसे यों कर लें :-

    'शिकायत क्या करूँ कि आपको मुहलत नहीं मिलती

    मुझे अपने लिये ही आजकल फ़ुर्सत नहीं मिलती'

    दूसरे शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,यों कर लें:-

    'यहाँ गर नाम पाना है तो भाई कुछ मशक़्क़त कर

    किसी को घर में बैठे बैठे तो शुहरत नहीं मिलती'

    4थे शैर के ऊला में ' ग़में-गुरबत' को "ग़म-ए-ग़ुरबत" कर लें ।

    5वें शैर में "तबीअत" क़ाफ़िया काम नहीं करेगा ।

    आख़री शैर के ऊला में 'यारों' को "यारो"लिखें,सानी मिसरा बह्र में नहीं,यों कर लें:-

    'कभी दुनिया में हर इंसान को चाहत नहीं मिलती'

  • V.M.''vrishty''

    आदरणीय समर कबीर जी,, मैंने पहले ब्लॉग पोस्ट की ही कोशिश की, पर admin ने अप्रूव नही किया। अतः आपकी राय जानने के लिए मुझे यहाँ बात करनी पड़ी। आपके सानिध्य में मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा और उम्मीद करती हूँ ये स्नेह बना रहे। बहुत बहुत शुक्रिया!!

    तबियत वाले मिसरे को गर यूँ कहें--
    ((खुदा जाने हरएक से क्यो मेरी आदत नही मिलती))
    तो क्या ये ठीक है??

  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    आ० वृष्टि जी, आपकी रचनाएँ एप्रूव होने का कारण यह है कि आप एक ही दिन में कई-कई रचनाएँ पोस्ट कर देती हैं। कृपया एक दिन में एक ही रचना पोस्ट किया करें वह भी कुछ दिन के अंतराल के पश्चात, हर रोज़ नहीं।      

  • V.M.''vrishty''

    आदरणीय योगराज प्रभाकर सर, प्रणाम! जी मैं इस बाध्यता से पूर्णतः अन्जान थी। आगे से ख्याल रखूँगी। धन्यवाद !
  • Samar kabeer

    'न जाने क्या हुआ मुझको मिला हमराज ना कोई
    न जाने क्यों हरएक से मेरी तबीयत नही मिलती'

    इस शैर को यों किया जा सकता है:-

    'ये दुनिया है, यहाँ हर आदमी की अपनी फ़ितरत है

    किसी की भी किसी से दोस्तो आदत नहीं मिलती'