सुझाव एवं शिकायत

Open Books से सम्बंधित किसी प्रकार का सुझाव या शिकायत यहाँ लिख सकते है , आप के सुझाव और शिकायत पर Team Admin जरूर विचार करेगी .....

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  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    पुनः,  अभी तक सम्पन्न सभी भोजपुरी आयोजनों के सभी पन्ने /रचनाएँ/ टिप्पणियाँ किसने-किसने देखी/ पढ़ी है.?  आयोजन में भोजपुरी का कौन सा स्वरूप अपनाया गया है इस पर कौन बोलेगा ?

    मेरे उपरोक्त प्रश्न अभी तक अनुत्तरित हैं.

    इसके दो अर्थ हैं, या तो इस प्रश्न का अभीष्ट ही स्पष्ट नहीं है, या, अभी तक सम्पन्न दोनों आयोजन-सह-प्रतियोगिताओं को इस चर्चा से जुड़े किसी पाठक ने निकट से नहीं देखा है. क्योंकि उक्त आयोजन-सह-प्रतियोगिता भोजपुरी में है.

    अब ऐडमिन से अनुरोध है कि तथ्य-समृद्ध बातें हों जिसकी शुरुआत आदरणीया प्राचीजी ने की है.

    सादर

  • बृजेश नीरज

    मैं यह स्वीकार करता हूं कि सभी आयोजनों की प्रविष्टियों को मैंने नहीं देखा। उसके पीछे कारण शायद यही था कि प्रतियोगिता भोजपुरी में थी और भोजपुरी मुझे आती नहीं।


  • सदस्य कार्यकारिणी

    अरुण कुमार निगम

    आदरणीय सौरभ भाई जी, सुझाव देने के प्रति आशय मात्र इतना है कि

    1.अपने अंचल की भाषा/बोली से सबको प्यार होता है. कौन भला इसे क्षेत्र की सीमाओं से परे नहीं ले जाना चाहेगा ?

    2. माटी चाहे उत्तर की हो या दक्षिण की, पूरब की हो या पश्चिम की, इस पर जब बरखा की बूँदें पडती हैं तो सोंधी खुश्बू एक जैसी ही होती है.

    3. अन्य अंचल की बोली/ भाषा सीखने का प्रयास सहज ही होगा.

    4. ठेठ शब्दों के शब्दार्थ अवश्य ही दिये जाने चाहिये. अन्य भाषा/बोली का 90 प्रतिशत अक्सर समझ में आ जाता है.यथा..."

    भोजपुरी साहित्य प्रेमी लोगन के सादर प्रणाम,

    जइसन कि रउआ लोगन के खूब मालूम बा, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार अपना सुरुआते से साहित्य-समर्थन आ साहित्य-लेखन के प्रोत्साहित कर रहल बा ।

    एही कड़ी में भोजपुरी साहित्य-लेखन विशेष क के काव्य-लेखन के प्रोत्साहित करे के उद्येश्य से रउआ सभ के सोझा एगो अनूठा आ अंतरजाल प भोजपुरी-साहित्य के क्षेत्र में अपना तरहा के एकलउता लाइव कार्यक्रम ले के आ रहल बा जवना के नाम बा "ओबीओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता"

    तीन दिन चले वाली ई ऑनलाइन प्रतियोगिता तिमाही होले, जवना खातिर एगो विषय भा शीर्षक दिहल जाला । एही आधार प भोजपुरी भाषा में पद्य-रचना करे के बा । एह काव्य प्रतियोगिता में रउआ सभे अंतरजाल के माध्यम से ऑनलाइन भाग ले सकत बानी अउर आपन भोजपुरी पद्य-रचना के लाइव प्रस्तुत क सकत बानी । साथहीं, प्रतिभागियन के रचना पर आपन मंतव्य दे सकत बानीं भा निकहा सार्थक टिप्पणी क सकत बानी |" इस पैरा में रउआ शब्द के अलावा सब कुछ समझ में आ रहा है. यदि रउआ मात्र का अर्थ पता चल जाए तो शत प्रतिशत समझ में आ जाएगा.

    5.आदरेया प्राची जी का विकल्प भी स्वागतेय है, आभार.

    6. आंचलिक पर कलम अपेक्षाकृत बहुत ही कम चल पाती है, इस बहाने उस पर भी रचनायें लिखने की आदत डल जाएगी.

    7.सभी भाषा/बोली का संगम रहेगा तो हम हर अंचल की भाषा/बोली के काफी नजदीक आ पायेंगे.

    8.भाई बृजेश नीरज जी की तरह भोजपुरी नहीं आने के कारण मैंने भी इस आयोजन को नहीं देखा.

    9.//अभी तक सम्पन्न सभी भोजपुरी आयोजनों के सभी पन्ने /रचनाएँ/ टिप्पणियाँ किसने-किसने देखी/ पढ़ी है.?  आयोजन में भोजपुरी का कौन सा स्वरूप अपनाया गया है इस पर कौन बोलेगा ? //

    यदि अन्य भाषा/ बोली भी यहाँ हो तो सभी को पढ़ने के प्रति अपने आप ही रुचि जागेगी क्योंकि अन्य भाषा/ बोली की रचनाओं पर प्रतिक्रिया भी तो लिखनी पड़ेंगी.

    सादर....

  • बृजेश नीरज

    आदरणीय अरूण जी जैसे हम हिन्दी में ‘सभी लोग’ कहते हैं संभवतः उसी को भोजपुरी में ‘रउआ’ कहते हैं।

    आदरणीय सौरभ जी एमा रिसियाय वाली बात न बा। कउनो हम सबे भोजपुरी क विरोध थौरो करत बानी।

    एक संभावना दिखती है यहां। इस आशा से निवेदन किया गया कि यहां बात सुनी जाती है। जो आयोजन है अति उत्तम है। आगे प्रयास होगा कि इसमें सम्मिलित हों। इस आयोजन को भी देखें, समझें।

    निवेदन को मैं विस्तार देना चाहता हूं। सर्वप्रथम मैं यह आग्रह करना चाहूंगा कि जैसे अन्य समूह हैं वैसे ही आंचलिक भाषाओं का भी समूह हो। उसमें लोग अपनी आंचलिक भाषा की रचनायें पोस्ट करें और अन्य आंचलिक भाषाओं की रचनाओं पर भी टिप्पणी करें।

    आगे पूर्व में प्रस्तुत निवेदन उस रूप में स्वीकार्य योग्य है जैसा आदरणीय प्राची जी का सुझाव है।

    सादर!


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    आदरणीय अरुण भाईजी, आपने सही ही विन्दुवत बातें की हैं.

    लेकिन मेरा साग्रह अनुरोध है कि आप अबतक सम्पन्न दोनों आयोजन-सह-प्रतियोगिताओं के पृष्ठ एक बारी एक-एक कर पढ़ जायें.  आदरणीय अशोक रक्ताले साहब, आदरणीया राजेश कुमारीजी, डॉ. प्राची आदि ने उन रचनाओं का आनन्द लिया है, जबकि इनमें से किसी को भोजपुरी का आदि ज्ञान भी नहीं है. रचनाएँ शब्दार्थ के साथ पोस्ट हुई हैं..

    खैर सारी बातें बाद में.  इससे पहले कि ऐडमिन का कोई यथोचित जवाब आये आप उन दोनों आयोजनों के पृष्ठ देख जायँ, आपको सहज मालूम होगा कि मेरा निेवेदन निरर्थक नहीं है.

    सादर

    पीएस:  रउआ भोजपुरी में एक आदर सूचक सम्बोधन है जो हिन्दी के आप के समकक्ष है.


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    //एमा रिसियाय वाली बात न बा। कउनो हम सबे भोजपुरी क विरोध थौरो करत बानी।//

    हमरा मालूम बा ए भाई, जे रउआ सभे भोजपुरी के बिरोध ना आयोजन के बिस्तार चाहत बानी. .. :-)))

    //इस आशा से निवेदन किया गया कि यहां बात सुनी जाती है। जो आयोजन है अति उत्तम है। आगे प्रयास होगा कि इसमें सम्मिलित हों। इस आयोजन को भी देखें, समझें।//

    आप प्रारम्भ भी देखिये न कि कैसे और किस नींव पर हुआ है. आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी, जिनकी रचना पुरस्कृत श्रेणी में सम्मिलित है उसकी भोजपुरी का कौन सा रूप है. ! भोजपुरी भाषा के किस स्वरूप को मान्यता मिली है. इसी का निवेदन मैं बार बार कर रहा हूँ

    //जैसे अन्य समूह हैं वैसे ही आंचलिक भाषाओं का भी समूह हो। उसमें लोग अपनी आंचलिक भाषा की रचनायें पोस्ट करें और अन्य आंचलिक भाषाओं की रचनाओं पर भी टिप्पणी करें।//

    देव ! .. .हाथ में कन्गना त आरसी के कवन खोइया ?..  दीपक तरे अन्हरिया ???? 

    हे होता,  आप समूह टैब को कभी क्लिक कर भी देखें.. .  आह्याऽऽहि.... :-((((

    हुज़ूर.. !!.

  • बृजेश नीरज

    क्षमा सहित अपना प्रार्थना पत्र वापस ले रहा हूं। आंचलिक भाषाओं का समूह मौजूद है।

    ओबीओ पर आने के बाद से मैं धीरे धीरे एक एक समूह से जुड़ रहा हूं। इसमें कोई एक्टिविटी न होने से इस ओर ध्यान नहीं गया। इसमें केवल तीन पोस्ट हैं। जो अन्य समूहों की स्थिति है उससे बदतर हालत में यह समूह है। समूहों में सदस्यों की सक्रियता पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है। सामाजिक सरोकार में मेरे लेख को आज तक कोई टिप्पणी नहीं मिल सकी। समूहों में सदस्यों की सक्रियता के लिए मनरेगा जैसी कोई योजना लागू करनी होगी।


    बहरहाल, यहां विषयांतर करना उचित नहीं। चर्चा को आदरणीय अरूण जी के निवेदन पर ही रखना उचित होगा।


    यह सही है कि हम सब अपनी माटी की महक को अपने अंदर महसूस करते हैं। वही माटी का मोह है जिसके कारण भोजपुरी साहित्य को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसको और विस्तार देने में कोई नुकसान तो नहीं।

    आदरणीया प्राची जी द्वारा सुझाया गया विकल्प अपनाया जा सकता है। बहुत सुंदर विकल्प है। रोज की आपाधापी में जिस खुशबू और संस्कृति को हम भूलते जा रहे हैं उसे यदि कलम के सहारे ही जिंदा रख सकें तो इससे सुंदर बात क्या होगी। निवेदन यही है कि आयोजन को विस्तार दिया जाए और अन्य आंचलिक भाषाओं पर भी आयोजन हों। स्वरूप कैसा हो यह एडमिन महोदय द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।

  • Ashok Kumar Raktale

    सादर, आदरणीय सौरभ जी,आदरणीय अरुण निगम जी, आदरणीय बृजेश जी और आदरेया डॉ. प्राची जी के विचार जानने के बाद मुझे यह कहने में तनिक भी हिचकिचाहट नहीं है की सीढ़ी के सबसे निचले पायदान से सबसे ऊपर के पायदान पर सीधे पहुँचने की निरर्थक कामना कर रहे थे.मुझे आशा है की हम सीढ़ी दर सीढ़ी आगे बढ़ते गए तो उस सबसे ऊँची वाली पायदान पर भी अवश्य ही पहुंचेंगे. फिलवक्त हम भोजपुरी रचनाओं के आयोजन का मन पूर्वक स्वागत करें ताकि आदरणीय सौरभ जी के रखे कुछ प्रश्नों का हल जो हमारे बस में है उसको पा सकें.अन्य आंचलिक भाषाओं की पैरवी मात्र  रचनाओं  और उस पर अन्य सदस्यों की रूचि के  माध्यम से ही करना उचित होगा. सादर.

  • Admin

    भाग १ ...

    साथियो,

     

    आदरणीय अरुण निगम जी द्वारा निम्नलिखित दो सुझाव प्राप्त हुए है ...

    १.   ओबीओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता को "ओबीओ भोजपुरी एवं आंचलिक काव्य प्रतियोगिता" कर देने से अन्य अंचल के रचनाकार और पाठक भी लाभान्वित होंगे तथा प्रतियोगिता अखिल भारतीय स्तर की हो जाएगी

    २.   पुरस्कार प्रमाणपत्र के रूप में प्रदान किए जाने चाहिए

    क्रमश : .....

  • Admin

    भाग २ ....

    इन सुझावों पर अन्य सदस्यों द्वारा व्यापक चर्चा हुई है । प्रबंधन से जुड़े सदस्यगण द्वारा भी कुछ तथ्यों को स्पष्टता से या फिर इंगितों में प्रस्तुत किया गया है जिससे कई प्रश्नों का उत्तर स्वतः स्पष्ट हो गया दिखता है । 

    सर्वप्रथम यह जानना आवश्यक है कि सदस्यों की मांग पर ही "भोजपुरी साहित्य" समूह ३ वर्ष पूर्व निर्मित हुआ था और सदस्यों की सक्रियता तथा उस समूह में प्रेषित रचनाओं को देखने के पश्चात् ही "भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता" को आयोजित करने का निर्णय लिया गया । 

    ओ बी ओ सभी भाषाओँ को समान दृष्टि से देखता है। परिणाम स्वरुप कई भाषायी समूह प्रकाश में आये । आंचलिक साहित्य समूह के नाम से एक समूह पहले से ही उपलब्ध है, जिसमें कहना न होगा कि सक्रियता नगण्य है । यदि किसी आंचलिक भाषा में साहित्यिक एवं रचनाकर्म सम्बन्धी गतिविधियाँ बढ़ती हैं तो उस आंचलिक भाषा हेतु अलग से समूह भी तैयार किया जा सकता है और उस समूह के मनोनित प्रबंधक को उस भाषा से सम्बन्धित कोई आयोजन कराने की अनुमति भी दी जा सकती है । 

    क्रमश :....

  • Admin

    भाग ३ ....

    रही बात भोजपुरी प्रतियोगिता के साथ अन्य आंचलिक भाषाओँ को जोड़ने की तो सबसे पहले आवश्यक है कि इससे संबन्धित अन्य व्यवहारिक पक्ष को समझा और जाना जाय । अन्य आंचलिक भाषाएँ भी आंचलिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण हैं और वे भी बहुत व्यापक हैं ।

    भारत सरकार के एक अध्ययन के अनुसार भारत में मुख्य बाइस भाषाओं के अलावे कई प्रमुख आंचलिक भाषायें हैं, जिनमें से एक भोजपुरी भी है ।  


    उदाहरणार्थ : आरिया, आदि, अण्डमानी क्रेओल हिन्दी, अंध भाषा, अराकनीज, अवधी, भद्रवाही, भट्टियाली, बिलासपुरी, छत्तिसगढ़ी, बिहोर, ब्रज भाषा, चौरा, दक्कनी, देवरी, ढोंढ़िया, दिमासा, गद्दी भाषा, गढ़वाली, गारो, खासी, गोडवारी, गुर्जरी, गुरुंग, हरियाणवी, होलिया, जड़, जरवा, कन्नौजी, कोर्लायी क्रेओल (पुर्तगीज), कमाऊँनी, लेप्चा, लद्दाखी, लोधी, राजबन्शी, सामवेदी, सौराष्ट्री, शेखावती, शेरपा, सिक्कमी, तमंग, उराली, नागपुरी, वरहदी-नागपुरी, वासवी, वागडी, आदि-आदि

    उपरोक्त आंचलिक भाषाओं की सूची को गहरायी से देखने से यह बात आसानी से मालूम हो जाती है कि इनमें से कई भाषाओं को बोलने वाले अपने ओ बी ओ मंच के सक्रिय सदस्य हैं । जबकि इन कई भाषाओं में नज़दीकी तारतम्यता करीब-करीब नहीं के बराबर है । राजस्थान के परिक्षेत्र से जुड़ी आंचलिक भाषाओं का स्वरूप मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग या छत्तीसगढ़ी के भाग की आंचलिक भाषाओं से एकदम भिन्न है । यही स्थिति उत्तर भारत के पहाड़ी अंचलों की भाषाओं का है जो मैदानी भाग की भाषाओं से स्वरूप में बहुत अलग हैं । बिहार राज्य में ही तीन अति मुख्य आंचलिक भाषाएँ हैं जो स्वरूप में एक-दूसरे से एकदम से अलग हैं । उनमें कोई तारत्म्य ही नहीं है । इसी लिए बिहारी नाम की कोई भाषा होती ही नहीं है जैसा कि हरिय़ाणवी, राजस्थानी, गुजराती, माराठी आदि भाषाएँ होती हैं । यही हाल पूर्वी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी उत्तर प्रदेश की भाषाओं का है ।

    क्रमश: ....

  • Admin

    भाग ४ ....

    उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए अब प्रश्न उठता है कि यदि भोजपुरी के साथ अन्य भाषाओँ को प्रतियोगिता में शामिल कर भी लिया भी जाय तो उसे सभी सदस्य आपस में समझेंगे कैसे ? और कितना लाभ आनन्द ले पायेंगे ? हम ओ बी ओ के प्रबन्धन से जुड़े सदस्य अभी व्यावहारक रूप ओ बी ओ को ऐसी दशा नहीं दे पायें हैं कि बहुभाषी समिति गठित की जा सके । यह आयोजन एक प्रतियोगिता है, हम ऐसा निर्णायक मंडल कहाँ से तैयार करें जो सभी भाषाओं का प्रतिनिधित्व करे !  यही नहीं, किसी लापरवाह सदस्य ने यदि कहीं कुछ आपत्तिजनक या असंवैधानिक लिख ही दिया तो उस दशा में क्या होगा ? 
    कहने की आवश्यकता नहीं की सुझाव संख्या-१ भावनात्मक रूप से भले ही कितना भी प्रभावी लगे किन्तु प्रबन्धन की वर्तमान सीमाओं के कारण उसे व्यवहारिक रूप देना या उसे लागू करना संभव नहीं है । 

    एक महत्त्वपूर्ण बात और जो कि आप सभी माननीय सदस्यों से साझा किया जाना अत्यंत आवश्यक है, और वो ये है कि भोजपुरी किसी एक फ़ॉर्मेट की भाषा नहीं है । इसके तीन मुख्य स्वरूप हैं, काशिका, बज्जिका और भोजपुरी । इन तीनों से प्रभावित और संबद्ध कई और आंचलिक भाषाएँ प्रचलित हैं जो मूल या प्रचलित हो गयी भोजपुरी भाषा से अलग दिखने के बावज़ूद भोजपुरी के दायरे में ही उन्हें शामिल माना जाता हैं । 
    आयोजन समिति ने भोजपुरी के उन सभी स्वरूपों को इस प्रतियोगिता में स्थान दिया है । यही कारण है कि प्रतापगढ़ी, जो कि अवधी और काशिका दोनों से प्रभावित है, को भोजपुरी आयोजन में स्थान मिला है और इस भाषा की एक रचना को पुरस्कृत भी किया गया है ।
    क्रमश : ....
  • Admin

    भाग ५ .....

    उपरोक्त आशय की जानकारी अबतक सम्पन्न हुई आयोजन-सह-प्रतियोगिता में आदरणीय सौरभ पाण्डेय ने समुचित ढंग से दी है ।  
     
    सुझाव-२ : भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता में पुरस्कार राशि और प्रमाण पत्र देने की व्यवस्था है । 
    यदि कोई पुरस्कृत सदस्य पुरस्कार राशि न लेना चाहे तो उसकी पुरस्कार राशि को ओ बी ओ परिचालन कोष में जमा कर दिया जायेगा । ताकि उस राशि से ओ बी ओ परिचालन सम्बंधित अन्य कार्य सम्पन्न किये जा सकें ।
    सादर |
    एडमिन
    ओपन बुक्स ऑनलाइन
  • MAHIMA SHREE

    आदरणीय एडमिन महोदय ,

    मेरा चैट बॉक्स काम नहीं कर रहा है / मैं किसी को भी रिप्लाई नहीं कर पा रही हूँ और चैट भी नहीं शुरू कर पा रही हूँ / मेरी समस्या का समाधान करें /

    धन्यवाद


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीया महिमा जी, ओ बी ओ की तरफ से ऐसी कोई समस्या नहीं है, आपके सिस्टम से कुछ समस्या हो सकती है | संभावित उपचार निम्न है ...

    आप सबसे पहले ब्राउज़िंग हिस्टरी, कुकीज आदि हटा दें, समाधान हो जाना चाहिए, ऐसा करने में दिक्कत हो तो अप अपने ब्राउज़र का नाम  बता दें,मैं स्टेप लिख दूंगा । 

  • MAHIMA SHREE

    आदरणीय बागी जी ..

    आपके बताये गए सुझाव के अनुरूप मैंने अपने ब्राउज़र के सेटिंग्स में जाकर  ब्राउज़िंग हिस्टरी, कुकीज आदि हटा दिया  जिसके पश्चात मेरा चैट बॉक्स से सम्बंधित सभी  समस्याएं समाप्त हो गयी और पहले की तरह काम करने लग गयी / आपका अनेकानेक धन्यवाद / साभार

  • राजेश 'मृदु'

    आदरणीय एडमिन महोदय,

    मेरी रचना 'शब्‍द' को पुरस्‍कार मिला था परंतु मुझे अबतक कुछ भी प्राप्‍त नहीं हो पाया है, कृपया मार्गदर्शन करने की कृपा करें, सादर


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीय राजेश कुमार झा जी, अपरिहार्य कारणवश पुरस्कार राशि व प्रमाण पत्र भेजने में विलम्ब हो रहा है, शीघ्र ही प्रमाण पत्र और पुरस्कार राशि उपलब्ध करा दिया जाएगा . 

  • राजेश 'मृदु'

    आपका हार्दिक आभार आदरणीय गणेजश जी, सादर

  • बृजेश नीरज

    ओबीओ से ई मेल नोटिफिकेशन्स नहीं प्राप्त हो रहे हैं जिससे काफी दिक्कत हो रही है। मैंने संटिंग्स देख लीं। वो सही हैं।
    कोई सहायता कर सकता है कि क्या कारण हो सकता है इसका? इसे सही कैसे किया जा सकता है?


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    //मैं मात्र एक सदस्य हूँ ,एडमिन या कार्याकारिणी का सदस्य नहीं हूँ .न ही प्रबंधन समिति का .
    फिर भी ओ बी ओ से दिल से जुड़ा हूँ इसका हित चाहता हूँ .//

    आदरणीय सच में मैं आपकी बातों को नहीं समझ सका, आखिर आप कहना क्या चाहते हैं  ? उक्त लिखे से लग रहा है जैसे ओ बी ओ से दिल से केवल एडमिन, कार्याकारिणी के सदस्य और प्रबंधन समिति के सदस्य ही जुड़ सकते हैं एक सदस्य नहीं जो आप दिल से जुड़ विशेष कार्य किये हैं, ऐसा है क्या ? खैर…………

    जैसा कि इस समूह का नाम है कृपया यह बताये कि "सुझाव और शिकायत" के सन्दर्भ में क्या कहना चाहते हैं ?   


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    //मेरा सुझाभ बस इतना ही है कि समूहों की चर्चा में लेखकों को शून्य कमेंट पाना बुरा न लगे . 
    मेरा सुझाब आपको बुरा तो लगेगा ,पर एक सदस्य के नाते , अपरिपक्व लेखक के निरुत्साहित होने की बात बतलाना अपना कर्तव्य समझता हूँ .//

    जिंदल साहब प्रबंधन को आप क्या सुझाव देना चाह रहे हैं यह समझ से परे हैं, पुनः अनुरोध है की बगैर कोई प्रस्तावना के सीधे सीधे बताएं कि आप कहना क्या चाहते हैं ? 
    आपका सुझाव बुरा क्यों लगेगा, बुरा लगने की बात होती तो सुझाव शिकायत समूह बनाया ही क्यों जाता !


  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    आद० राजकुमार जिंदल जी,

    आप जिस रचना पर टिप्पणियाँ न मिलने की बात कर रहे हैं वह है क्या ? कविता है ? छंद है ? आखिर क्या है ? आपने किया क्या मैं बताता हूँ, आपने विकिपीडिया पर डॉ मोक्षगुंडम का सफा खोल और जो जानकारी वहां दी गयी थी तकरीबन पूरी की पूरी एक तुकबंदी के माध्यम से यहाँ चस्पां कर दी. आपके आलेख में जिस पाकिस्तानी नगर "सकूर" का जिक्र है विकिपीडिया पर उसे "सुक्कुर" लिखा है जबकि वास्तव में पाकिस्तानी के सिंध प्रांत में स्थित उस शहर का सही नाम है "सक्खर". जानकारी कहीं से भी लेना सही है, मगर बिना सोचे समझे और उस पर मेहनत किये काव्य विधा में उसको ढलने के लिए कलात्मक सोच होनी निहायत ज़रूरी है जोकि आपकी तुकबंदी में मुझे तो कहीं नज़र नहीं आती. तीन दर्जन के आसपास लोगों ने इस रचना को देखा/पढ़ा, लेकिन टिप्पणी क्यों नहीं की ? यह भी सोचा आपने ? ऊपर से तुर्रह यह कि आप शरदेन्दु मुखर्जी जी की रचना का गैर-ज़रूरी ज़िक्र भी कर रहे हैं. मुखर्जी साहिब का ओबॆओ में क्या क़द बुत है शायद आप इस बात से वाकिफ नहीं हैं. बेहतर है कि इस मामले में आप खुद की रचना तक ही सीमित रहें. यदि आप चाहते हैं कि लोग बाग आपकी रचना पर भी टिप्पणी करें तो पहले कविता कहना सीखें. कुछ भी आल-फाल लिख कर अगर आप पाठक ढूँढेंगे तो मुश्किल होगी.   


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    //शून्य कमेंट से लेखक को ऐसा न लगे कि उसे नहीं लिखना चाहीय था ,रोकने के लिय एडमिन या प्रभंधन समिति /कार्यकारिणी सदस्यों को यह कार्य दिया जा सकता है कि समूह का कोइ भी पोस्ट अगले दिन तक बिना एक भी आलोचना /कमेंट /सुझाभ /राय के ना रह जाए//

    आदरणीय अब यह मत सुझाव दे दीजियेगा क़ि ओ बी ओ को कुछ पेशेवर कमेन्ट करने वालों की नियुक्ति कर देनी चाहिए । 

    //कई बार कार्यकारिणी सदस्य भी मुझ से हुई चैट पर अपनी रचनाओं को पढने को कहते है//

    यह तो निहायत व्यक्तिगत बात हो गई, इसमें प्रबंधन क्या कर सकता है, आप भी पढने को कहिये कहाँ कोई मना कर रहा है ! 


  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    आद० राजकुमार जिंदल जी, आपने  जिस स्तर की भाषा इस्तेमाल की है, उस से वाकई यह साबित होता है कि आप बहुत बड़े बुद्धिमान हैं. 


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीय जिंदल जी की सदस्यता निलंबित की जाती है । 


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीय जिंदल साहब, अनुरोध है कि शीघ्र आप अपनी रचनाओं को सुरक्षित रख लें, २ दिनों के बाद आपकी रचनाएँ और सदस्यता ओ बी ओ से समाप्त कर दी जाएगी । 

    धन्यवाद । 

  • बृजेश नीरज

    ई-मेल नोटिफिकेशन्स की समस्या का समाधान हो गया है. 

  • रमेश कुमार चौहान

    एक निवेदन-

    इस मंच पर छत्तीसगढी साहित्य को भी स्थान दिया जाना चाहिये । छत्तीसगढी हिन्दी  की छोटी बहन है । 


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    छत्तीसगढी साहित्य आंचलिक साहित्य मे पोस्ट कर सकते हैं, जब छत्तीसगढी साहित्य लिखने वालों की संख्या अधिक होगी तो अलग समूह भी बनाया जा सकता है |

     

  • Admin

    अवधी साहित्य आंचलिक साहित्य मे पोस्ट कर सकते हैं, जब अवधी साहित्य लिखने वालों की संख्या अधिक होगी तो अलग समूह भी बनाया जा सकता है |

     

  • अनिल कुमार 'अलीन'

    आदरणीय संपादक महोदय!

                                                  श्रीमान  दिनांक १६/०२/२०१४ को  'अजीब दुनिया है ये'  नाम से  एक कविता पोस्ट की थी, जो अभी तक आपके वेब साईट पर ऑनलाइन नहीं हुई. कृपया  रचना ऑनलाइन न होने के  कारणों से अवगत कराएँ ताकि भविष्य में मुझ द्वारा  इसकी  पुनरावृति न हो.

    हार्दिक आभार!


  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    भाई अनिल कुमार अलीन जी, आपके प्रश्न का उत्तर आपके इनबॉक्स में भेज दिया गया है, सादर।

  • Rahul Dangi Panchal

    आदरणीय एडमिन जी व सभी सदस्यो से एक प्रार्थना अथवा सुझाव है कि गजल को पोस्ट करने से पहले उसके साथ यदि उसकी बहर भी लिख दे तो हम जैसे नये रचनाकारो को गजल को समझने मे बहुत सहायता मिलेगी! सनम्र ! क्रपया विचार करें!

  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    बहुत ही उत्तम सुझाव है, आशा करता हूँ कि रचनाकार इसको संज्ञान में लेंगे।

  • Rahul Dangi Panchal

    आदरणीय योगराज जी रचना के साथ उसकी बहर लिखना obo अगर अनिवार्य कर दे तो बहुत अच्छा होता! सादर विनम्र !

  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    इस बारे में विचार अवश्य किया जायेगा भाई राहुल जी।

  • Rahul Dangi Panchal

    सादर धन्यवाद! आदरणीय

  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    राहुल जी, अनिवार्य करने में व्यवहारिक कठिनाई है, कोई भी पहली बार में ही बहर नहीं जान जाता, वैसे नवांकुर जो अभी काफ़िया रदीफ़ सीखकर ग़ज़ल कहने का प्रयास कर रहे हैं वो बहर कैसे लिख पाएंगे, हां हम लोग पूर्व में भी ग़ज़ल के जानकार सदस्यों से अनुरोध करते रहे हैं कि वो ग़ज़ल के साथ बहर/वजन का उल्लेख अवश्य करें।

  • Rahul Dangi Panchal

    आदरणीय बागी जी मै भी बहर को अभी नही समझ पाया हुँ ! इसलिए ही ऐसा क्हा था! आदरणीय क्या मै भी अपनी गजल पोस्ट कर सकता हुँ ! अगर गजल की बहर मे कमी होगी तो क्या मेरा मार्गदर्शन होगा! मैने इसी डर से अब तक कोई गजल पोस्ट नहीं की!

  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    अवश्य राहुल जी, आप अपनी रचनाएँ निर्भय होकर पोस्ट करें, यदि आपकी रचना न्यूनतम स्तर को मेन्टेन करती है तो ओ बी ओ पर अवश्य प्रकाशित होगी, इस मंच की अवधारणा ही है "सीखना और सिखाना" हम सभी एक दूसरे से सीखते हैं।


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीया अर्चना जी, आप द्वारा उल्लेखित सुविधाएँ ओ बी ओ पर पूर्व से ही उपलब्ध है अर्थात सदस्यगण विधा के अनुसार अपनी रचनाओं को TAG कर सकते हैं, मुझ सहित कई सदस्य ऐसा करते भी हैं जिससे आप विधानुसार रचनाएँ पढ़ सकती हैं . जब आप ब्लॉग टैब क्लिक करती हैं तो वहां मध्य में एक कॉलम मिलता है जहाँ रचनाएँ विधानुसार टैग होती हैं . देखें : 

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    आप ओ बी ओ नियमों के अधीन एक से अधिक रचनाएँ पोस्ट कर सकती हैं, दो रचनाओं के मध्य कोई अंतराल सम्बंधित बाध्यता नहीं है . सादर .

  • somesh kumar

    कृपया बाल-साहित्य के लिए भी समय-समय पर आयोजन किए जाएँ 


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    बाल साहित्य लेखन हेतु अलग से एक समूह ही है उसमे रचनाएँ पोस्ट नहीं होती या होती भी हैं तो उनकी संख्या नगण्य है, अर्थात बाल साहित्य लेखक का अभाव इस मंच पर है, फिर आयोजन किसके लिए ?

  • Nidhi Agrawal

    तरही मिसरा दिया गया है 

    मुझ को वो मेरे नाम से पहचान तो गया

    और बह्र 

    221 2121 1221 212

    मफ़ऊलु फाइलातु मुफ़ाईलु फाइलुन

    (बह्र: मुजारे मुसम्मन् अखरब मक्फूफ महजूफ)

    मुझ जैसे नौसिखिये हर्फ़ गिराना नहीं समझते .. बहुत ख़ुशी होगी अगर पूरे मिसरे को अरकान में तोड़ कर प्रस्तुत किया जाए. बहुत जगह जहाँ "१" मात्रा है वहां "२" मात्रा वाला हर्फ़ आ रहा है .. इसलिए गलती हो रही है 


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    मुझ=2 को=2 वो=1(गिराकर) / मे=2 रे= 1(गिराकर) ना=2 म=1 / से=1(गिराकर) पह=2 चा=2 न=1 / तो=2 ग=1 या=2 

    221 2121 1221 212


  • मुख्य प्रबंधक

    Er. Ganesh Jee "Bagi"

    आदरणीया निधि जी, यह समूह इस प्रश्न हेतु उचित नहीं था, मुशायरे के सम्बन्ध में प्रश्न हेतु लिंक उसी पोस्ट में दी गयी है, फिर भी मैंने उत्तर देने का प्रयास किया है. 


  • सदस्य टीम प्रबंधन

    Saurabh Pandey

    भाई गणेशजी, आदरणीया निधि जी से आग्रह है कि वे ओबीओ मंच पर ग़ज़ल से सम्बन्धित अपलोड हुए सभी पाठों को एकबारग़ी पूरा पढ़ जायँ. अन्यथा ऐसी स्थितियों से बार-बार दो-चार होना होगा.


  • सदस्य कार्यकारिणी

    अरुण कुमार निगम

    क्या यह मेरा भ्रम है ?

    व्यक्तिगत जीवन की व्यस्तताओं व विवशताओं के कारण पूर्व की भाँति न तो लिख पा रहा हूँ और न ही प्रतिक्रिया ही प्रकट कर पा रहा हूँ किन्तु ओबीओ पर पोस्ट रचनायें प्रतिदिन नियमित तौर पर पढ़ रहा हूँ. हाँ ! मासिक आयोजनों में सक्रिय रहने की यथा शक्ति कोशिश अवश्य कर रहा हूँ.

    पहले हर सदस्य हर विधा पर प्रयासरत दिखता था.इन्हीं विविध विधाओं के कारण जहाँ यह मंच बहुरंगी छटा बिखेरता था वहीं मुझ जैसे रचनाकार ने भी कविता, गीत, छन्द, गज़ल, बाल गीत, आंचलिक गीत, लघु कथा जैसी विभिन्न विधाओं पर रचना कर पाने का गौरव प्राप्त किया.

    इन रचनाओं की शुरुवात हुई सहज त्रुटियों के साथ फिर मंच के परस्पर सीखने-सिखाने के विशिष्ट तत्व के कारण वे परिमार्जित होती गईं."बहुत अच्छा" का गर्व तो नहीं किन्तु "कुछ अच्छा"  के आत्म विश्वास ने मुझे  अपने अंचल में भी पहचान दिलाई.

    आज इस मंच पर न जाने क्यों मुझे एकरसता नजर आ रही है. जो जिस  विधा में लिख रहा है, वह उस विधा में ही रमा हुआ नजर आ रहा है. पहले सा बहुरंगी वातावरण न जाने क्यों मुझे नहीं दिखाई दे रहा है.

    हो सकता है मेरा भ्रम हो. "सुझाव व शिकायत" के माध्यम से आप सुधि पाठकों से अनुरोध कर रहा हूँ कि अपने विचार प्रकट कर मेरे भ्रम का निवारण करने में मेरी सहायता करेंगे.


  • प्रधान संपादक

    योगराज प्रभाकर

    दुखती हुई रग पर हाथ रख दिया आपने आ० अरुण निगम भाई जी। क्योंकि यह मात्र भ्रम नही सच्चाई है। दरअसल कुछेक सदस्यों को छोड़कर सभी लोग अपने अपने हुजरों में कैद हो कर रह गए हैं। बहुत से ऐसे रचनकार हैं जो वैसे तो मंच पर सक्रिय हैं, खूब वाहवाही भी बटोरते हैं किन्तु आयोजनों में कभी भी दिखाई नहीं देते। इसके इलावा बहुत से ऐसे भी हैं जो केवल आयोजन के दौरान ही पाये जाते हैं - यह प्रवृत्ति और  गलत है। माना कि हर बन्दा हर विधा में प्रवीण नहीं होता, किन्तु साथियों का हौसला तो बढ़ाया ही जा सकता है न ? बहरहाल, हम सब को मिलकर दोबारा उस मोरपंखी माहौल को दोबारा इस मंच पर लाना होगा।  मंच के वरिष्ठ सदस्य इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। कम से कम प्रबंधन टीम एवं कार्यकारिणी सदस्यों की उपस्थिति तो हरेक आयोजन में सुनिश्चित होनी ही चाहिए।