तुझे पाना ही बस मेरी चाह नहीं,बदन मिल जाना ही इश्क़ की राह नहीं।जिस्म का क्या है, मिट्टी में मिल जाएगा,हाँ, मगर रूह को कोई परवाह नहीं।लबों ने लबों को तो बाद में छुआ,पहले तू रूह से हमारा हुआ।अब जिस्मों के मिलने की किसको है पड़ी,अब ये रिश्ता भी हमारा रूमानी हुआ।मिट जाएँगे हम, नाम भी मिट जाएगा,पर…
सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के बिन उद्घाटन। शिक्षा, संस्कृति, अर्थ, मूल्य पर भी हो चिंतन।। बिना ज्ञान-विज्ञान, न वर्णन है प्रासंगिक। विषय सृजन की रहें, विषमताएँ सामाजिक।।1।।सुनिए सबकी बात पर, रहे सहज अभिव्यक्ति। तथ्यपरक हो दृष्टि भी,…
एक ही सत्य है, "मैं"एक ही सत्य है, "मैं"श्वेत हूँ मैं ,और श्याम भी मैंं ।मैं ही क्रोध हूँ,और काम भी मैं।उस ईश्वर का मैं रूप नहीं,स्वयं ईश्वर हूँ, मैं दूत नहीं।एक ही सत्य है, "मैं"कर्म भी मैं हूँ,और फल भी मैं,धर्म भी मैं, और अधर्म भी मैं।कर्ता भी मैं, और कांड भी मैं,विपत्ति भी मैं, और समाधान भी…
२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म मुझ्को ख़ुद को कितना बता सभालूँ मैं (२)तू मुझे क़ैद करके मानेगा क्यों न पिंजरे में ख़ुद को डालूँ मैं (३)ज़िंदगी दूर है बहुत मुझसे ज़ह्र है पास क्यों न खा लूँ मैं (४)ज़िन्दगी लिफ्ट माँगती ही नहीं मौत माँगे तो…
212 212 212 212 इस तमस में सँभलना है हर हाल में दीप के भाव जलना है हर हाल में हर अँधेरा निपट कालिमा ही नहीं एक विश्वास पलना है हर हाल में एकपक्षीय प्रेमिल विचारों भरे इन चरागों को जलना है हर हाल में निर्निमेषी नयन का निवेदन लिये मन से मन तक टहलना है हर हाल में देह को देह की भी न…
बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में रहाछुपा सके न कभी बेवकूफ़ थे इतनेहमारा इश्क़ मुहब्बत की हर ख़बर में रहाबड़ी अजीब मुहब्बत की है उलटबाँसीबहादुरी में कहाँ था मज़ा जो डर में रहानदी वो हुस्न की मुझको डुबो गई लेकिन बहुत है ये भी की मैं देर तक…
दोहा पंचक. . . . करवाचौथचली सुहागन चाँद का, करने को दीदार ।खैर सजन की चाँद से, माँगे बारम्बार ।।सधवा ढूँढे चाँद को, विभावरी में आज ।नहीं प्रतीक्षा का उसे, भाता यह अंदाज ।।पावन करवा चौथ का, आया है त्योहार ।सधवा देखे चाँद को, कर सोलह शृंगार ।।अद्भुत करवा चौथ का, होता है त्योहार ।निर्जल रह कर माँगती,…
मुझ को मेरी मंज़िल से मिला क्यूँ नहीं देते आख़िर मुझे तुम अपना पता क्यूँ नहीं देतेजज़्बात के शोलों को हवा क्यूँ नहीं देते तुम आग मुहब्बत की लगा क्यूँ नहीं देतेजब आप को बे इंतिहा मुझ से है मुहब्बत फिर हाथ मेरी सम्त बढ़ा क्यूँ नहीं देतेजो बन के सितारे हैं रवां आँख से आँसू ये ज़ीस्त की ज़ुल्मत को मिटा क्यूँ…
"इस रात की खामोशी में, मुझे चीखने दो,फिर एक बार, मैं ठहर जाऊंगा ....चरागों का धुआं कुछ कह गया,जैसे लाचार मौसम की थम-सी गई सांसें,बहकी हुई हवाओं में खुद को खो रही हैं ...रात ने बादलों की रजाई ओढ़ ली है,जब सुबह का सूरज छत से उतर कर आंगन में बिखर जाएगा,गेंदे जल उठेंगे,लेकिन रातरानी की चमक मंद पड़…
२२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २पतझड़ के जैसा आलम है विरह की सी पुरवाई हैये कैसा मौसम आया है जिसका रंग ज़ुदाई हैघूमते रहते हैं कई साये दिल के अँधेरे कमरे मेंकाट रही है पल पल मन को ग़म की रात कसाई हैजंगल जंगल घूम रहा हूँ लेकर अपनी बेचैनीख़ामोशी में शोर बपा है ये कैसी तन्हाई हैना जाने क्या सोच रही है मन ही मन…