सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार
आदरनीय सौरभ जी ....अभी शशी पुरवार जी की रचना पर आपकी समीक्षा पढी ..ग़ज़ल की बारीकियों को जाने इया इतना अच्छा अवसर पहली बार मिला ..अभी ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें के माध्यम से तिलक जी और वीनस जी से से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ..अभी ३६ महोत्सव में मेरी ग़ज़ल पर आपने कुछ और कसावट की बात की ..मैं चाहता हूँ जैसे आपने शशी जी की रचना समीक्षा की है मुझे भी बारीकियों से परिचित कराएं..मैं दिल से ग़ज़ल सीखना चाहता हूँ और आपकी ये मदद मैं कभी नहीं भूलोंगा ..और क्या भैविस्य में भी मैं आपसे इस तरह की बात करने या पूछने की गुस्ताखी कर सकता हूँ की नहीं ...
aaderneey saurabh jee ..aap jaisee sakhsiyat se mitrata ka avsar paakar main dhny manta hoon swam ko ..aapka margdarshan mujhe mila ..main prayas kar raha hoon kee kuchh theek likhoon .barshon se likh raha tha par jaane kya likh raha tha ..itne niyam hote hain kabhee pata hee na tha ..ab mujhe lag raha hai mere prayas ko ek disha milegee ..saadar pranam ke sath
आपकी प्रतिक्रयाये मार्ग दर्शी ही होती है i आपके परिहास ने भी मुस्कराने पर मजबूर किया i अन्वेषण को यदि मैं ग़ज़ल मानता तो शायद वह बिना मतले की ग़ज़ल होती i मैं हिंदी का विद्यार्थी हूँ i मेरे शिक्षण काल में हिंदी में गज़लों का इतना प्रचार प्रसार नहीं था i परन्तु अब तो लोग बस गजल ही लिखते है i मेरी रूचि छंदों में है i कुछ गज़ले भी समय के प्रवाह के साथ शायद आपको देखने को मिले i
कौन पूंछता इन फूलो को सौरभ अगर नहीं होता i
देव तरसते रहते लेकिन पूजन स्यात नहीं होता ii सद्मरचित
आपकी विचक्षण योग्यता से अभिज्ञ हूँ i नत मस्तक भी हूँ i दोहे की रचना के सम्बन्ध में आपसे क्या कह सकता हूँ i मेरे मतानुसार दोहे के जितने भेद व् उपभेद वर्तमान काव्य शास्त्रियों ने खोज लिए है शायद पहले न रहे हो i इस समाय शायद २२ या 23 भेद सामने आ चुके है i माँ सरस्वती के स्मरण में दोहे की रचना के समय मेरे सामने दो लक्ष्य थे i प्रथम जो संकेत आपने छंदोत्सव के रचना काल में श्री अखिलेश जी को दिये थे i उसमे आपने दोहे के आदि चरण के संयोजन के दो विकल्प दिए थे ३,३,2,३,2 या फिर ४,४,३,2 इसी प्रकार सम चरण के लिए आपने दो विकल्प दिए थे ४,४,३ और ३,३,३,2, मैंने इनमे ४,४,३,2 और ४.४.३ का चुनाव् किया
दूसरा आश्रय मैने कबीर जी के निम्नांकित दोहे का लिया
माली आवत देख कर, कलियन करी पुकार i
४ ४ ३ 2 ४ ४ ३
फूली फूली चुनि लई, काल्हि हमारी बार ii
४ ४ ३ 2 ४ ४ ३
आदरणीय बस मैंने इतना ही निर्वाह किया है i इसमें जो भी त्रुटि हो कृपया मार्ग दर्शन करने की कृपा करे i मै गुनीजनो से यावज्जीवन सीखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ i मुझसे उक्त कथन में यदि कोई चूक हुयी ही तो कृपया आदरणीय छमा करेंगे i आपका शत शत आभार जो आपने इतना अनुग्रह किया और रचना में रूचि ली i सादर i
जन्मदिन की हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपका सहयोग मुझे और अन्य नव रचनाकारों को सदैव मिलता रहे.इश्वर आपके जीवन को सदैव उल्लासमय रखे और हमें बार बार आपको शुभकामना देने का अवसर प्रदान करे.सादर.
आपका मार्ग दर्शन समय समय पर मिलता रहे i इस कामना के साथ निवेदन ही कि युयुत्सु से मेरा तात्पर्य केवल युद्ध के लिए उद्दत से ही है पर आपने मेरी जानकारी और् बढ़ा दी i
आदरणीय सौरभ भाई जी हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया । अपनी कवितायेँ पोस्ट करने के बाद दम साधे आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता हूँ , जिस से अपने को जानने का मौका मिलता है ।
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार - मेरे द्वारा प्रेषित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर सच कहूँ तो मुझे रदीफ़, काफिया और बह्र तो समझ आते हैं लेकिन मात्राओं का ज्ञान ग़ज़ल में समझ में नहीं आया हालांकि हिंदी में मात्राओं को मैं समझता हूँ। इसके दीर्घ और लघु स्वरों की गिनती हिंदी से कुछ अलग लगती है। अपने भावों को रदीफ़ और काफिये के नियम के साथ मेल करके ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है। मुझे ज्ञान तभी मिलेगा जब मैं जो जानता हूँ उसे उसी रूप में मंच पर प्रस्तुत करूं ताकि आप जैसे गुणी जनों की जब नज़र-ए-करम हो तो भावों को वो ज़मीन मिल सके जिसपर मैं भावों की महक के पुष्प खिला सकूं। इतनी बात मैं अपने ब्लॉग में नहीं लिख सकता था इसलिए क्षमा सहित आपके पृष्ठ पर लिख रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
मेरी ओर से होली के पावन पर्व पर सपरिवार आप को होली की शुभकामनाएं। उस परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वो सदा आपके आँगन में खुशियों के रंग बिखेरता रहे।
आदरणीय सौरभ जी हमेशा की तरह हौसला बढ़ाया है मेरा. बहुत बहुत धन्यवाद। मै इन दिनों आस्ट्रेलिया में हूँ नाती दिन भर तो कुछ करने ही नहीं दे सकता. अतः जैसे तैसे सहभागिता बस हुई है।
प्रिय पाण्डेय जी मुक्तको के प्रति आपके समालोचनात्मक चिंतन के प्रति साधुबाद। फिर कई सूत्र नई धुन के रुई निकले है के प्रति मेरा यह कहना है की रुई सूत्रो का राशि पिंड है जिसमे रुई एकवचन है और सूत्र बहुवचनांत ;जैसे सूर्य किरणो का राशि पिंड है सूर्य एकवचन और किरणे बहुवचनान्त। सूर्य में अनेको किरणे समाहित है इसी प्रकार रुई में अनेको सूत्र समाहित है। स्त्री लिंग रुई के रेशे को कात कर जो सूत्र बनता है वह पुल्लिंग हो जाता है।
महनीया सीमा जी के हिन्दी नवगीत पर मेरी टिप्पणी के निहितार्थ भी होंगे इस सम्भावना पर मैंने शायद उस समय विचार नहीं किया I जो बात मन में आयी वैसे ही कह दी I इससे सीमा जी को भी आघात लगा होगा i मै आपसे और सीमा जी दोनों से क्षमा प्रार्थी हूँ I मेरा अनुरोध है कि -'' सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय i''
आदरणीय एक उलझन है ! क्या गीत में अन्तरे की पुरक पंक्ति जिसका तुकान्त टेक के तुकान्त के समान होता है! क्या हम उस पंक्ति को न लिख कर अन्तरे के अन्त में केवल टेक ही लगा सकते है या नहीं ! क्यूं कि मैने कुछ गीतो में ऐसा देखा है! पता नहीं वे गीत ही है या कोई अोर विधा ! क्रपया बताने का कष्ट करें! सन्रम!
आदरणीय सौरभ जी बहुत बहुत आभार आपका ! मेरा मनोबल बढाने के लिए !
गीत की एक छोटी सी कोशिश आपको दिखाना चाहता हुँ! जो Facebook के एक ग्रुप में प्रकाशित हो चुकी है! सादर!
इसमें (गुनाह) में ह की मात्रा जादा हो गयी है !
मुखडा मापनी-२२२२१२२ २२२२१२२
अन्तरा मापनी-२२२२१२२ २२१२२२२
-------------------------------------------------
ना उसका कुछ गुनाह है, ना दिल की ही खता है!
ना इसमें ये जहाँ है,ये सब मेरा किया है!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी गलतियाँ है!!
मुझको भी लाश होना,इक रोज वो भी सोना!
जीवन है एक खिलौना,बेबात का है रोना!
फिर क्यूं मेरे ये आँसू, थामे नहीं ये थमते!
ये गम की सर्दियों में, भी क्यूं नहीं है जमते!
रब माने था जिसे दिल, अब तक भी पूजता है!
इक है वो साँप यारों,बस विष ही थूकता है!!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी................
इक पल को भी ना हटना,हर वक्त उसको तकना!
बिल्कुल भी जी न भरना,बस देखतें ही रहना!
हर शय पे हर जगह पे,बस नाम उसका लिखना!
मेजों पे दिल बनाना,फिर टीचरों पे पिटना!
बीता मेरा हुआ कल,मुझको कुरेदता है!!
नाकामी,आशिकी की 'राहुल' ये दासताँ है!!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी................
आ. भाई सौरभ जी,सादर अभिवादन । नगर से बाहर होने के कारण परिसंवाद में उपस्थित न हो पाने व आपसे रूबरू न हो पाने का मलाल रहेगा । पहले उम्मीद थी कि सुबह तक वापसी सभ्भव हो जाएगी । किंतु किसी कारणवश नहीं पहुच सका । इस कारण अपनी उपस्थिति सम्भव नहीं हो पायी । क्षमा प्रार्थी हूँ ।
आदरणीय सौरभ सर, वाल पर आपकी उपस्थिति ने श्रम को सार्थक कर दिया. वाल के कलेवर पर मिली पहली प्रतिक्रिया है. आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभारी हूँ . नमन
आदरणीय सौरभ जी नमस्कार --- सर आपके द्वारा इस दोहे को "मेघ मिलें जब मेघ से, शोर करें घनघोर,प्रेम गीत बजने लगें, सृष्टि में चहूँ और" वैधानिक रूप से सही नहीं माना। द्वितीय पंक्ति के सम चरण में 'चहूँ' को यदि 'चहुं ' से सही कर दिया जाए तो मात्रिक ह्रास नहीं होगा और त्रुटि सही हो जाएगी। क्या यही वैधानिक त्रुटि है या कोई ओर ?कृपया मेरी जिज्ञासा को शांत करें ताकि भविष्य में इस तरह की त्रुटि से बचा जा सके। सादर …
पूजनीय सौरभ पाण्डेय सर मैं आपके द्वारा दिए गए सुझावों एवम् मार्गदर्शन के लिए कृतार्थ हूँ।"चुप्पी" इस मञ्च पर मेरी प्रथम प्रस्तुति है।आप सब सुधिजनों के सानिध्य में आया एक नव विद्यार्थी हूँ।आपके मार्गदर्शन का सदैव आकांक्षी रहूँगा।मेरी रचना के अवलोकन एवम् समीक्षा के लिए हार्दिक आभार।
आप को सादर प्रणाम, मैं पहली बार कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। मैंने भुजंगप्रयात छंद के आधार पर कुछ लिखने का प्रयास किया है। भाव, सौंदर्य, मात्राओं आदि की त्रुटियां बताकर मेरा मार्गदर्शन करें। मैं आपका आभारी रहूँगा..................
जहाँ ये दिलों की दगा का अखाड़ा,
किसी ने मिलाया किसी ने पछाड़ा;
यहाँ प्यार है बेसहारा बगीचा,
किसी ने बसाया किसी ने उजाड़ा;
sanju shabdita
respected sir,,
sadar pranam
aapki sakaratmak pratikriya ke liye aapka bahut-bahut aabhar..aapse nivedan hai ki aap yun hi sneh dristi evm aashirvad banaye rakhiyega..aabharie rahungi.
May 26, 2013
Dr Ashutosh Vajpeyee
सौरभ जी बहुत बहुत आभार.....किन्तु शिल्प के सन्दर्भ में मै आपसे कुछ स्पष्ट करना चाहता हूँ आप जिसे मनहरण घनाक्षरी कह रहे हैं वस्तुतः वह मनहरण घनाक्षरी न होकर आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द है जो मेरे द्वारा किया गया घनाक्षरी में नूतन प्रयोग है और जिसे काव्याचार्य अशोक पाण्डे 'अशोक' जी ने 'आशुतोष गणात्मक घनाक्षरी छन्द' नाम से व्यवहृत किया है जिसका शिल्प इस प्रकार है 'रगण जगण' की ५ आवृत्तियों के बाद एक गुरु......अतः आपसे पुनः निवेदन है की इस शिल्प की कसौटी पर इसे कस कर तब निर्णय कीजिये.......पुनः पुनः धन्यवाद और आभार
Jun 3, 2013
कल्पना रामानी
आदरणीय, आपका स्नेह बना रहे...हार्दिक धन्यवाद आपका...
Jun 6, 2013
Dr Ashutosh Mishra
आदरनीय सौरभ जी ....अभी शशी पुरवार जी की रचना पर आपकी समीक्षा पढी ..ग़ज़ल की बारीकियों को जाने इया इतना अच्छा अवसर पहली बार मिला ..अभी ग़ज़ल की कक्षा और ग़ज़ल की बातें के माध्यम से तिलक जी और वीनस जी से से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ..अभी ३६ महोत्सव में मेरी ग़ज़ल पर आपने कुछ और कसावट की बात की ..मैं चाहता हूँ जैसे आपने शशी जी की रचना समीक्षा की है मुझे भी बारीकियों से परिचित कराएं..मैं दिल से ग़ज़ल सीखना चाहता हूँ और आपकी ये मदद मैं कभी नहीं भूलोंगा ..और क्या भैविस्य में भी मैं आपसे इस तरह की बात करने या पूछने की गुस्ताखी कर सकता हूँ की नहीं ...
मेरी ग़ज़ल नीचे है
छुपी निगाह से जलवे कमल के देखते हैं
लगे न हाथ कहीं हम संभल के देखते हैं
ग़जल लिखी हमे ही हम महल मे देखते हैं
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
हया ने रोक दिया है कदम बढ़ाने से पर
जरा मगर मेरे हमदम पिघल के देखते हैं
कहीं किसी ने बुलाया हताश हो हमको
सभी हैं सोये जरा हम निकल के देखते हैं
तमाम जद मे घिरी है ये जिन्दगी अपनी
जरा अभी गुड़ियों सा मचल के देखते हैं
हमें बताने लगा जग जवान हो तुम अब
अभी ढलान से पर हम फिसल के देखते हैं
कभी नहीं मुझे भाया हसीन हो रुसवा
खिला गुलाब शराबी मसल के देखते हैं
अभी दिमाग मे बचपन मचल रहा अपने
किसी खिलोने से हम भी बहल के देखते हैं
हयात जब से मशीनी हुई लगे डर पर
चलो ए आशु जरा हम बदल के देखते हैं
Jul 2, 2013
Dr Ashutosh Mishra
aaderneey saurabh jee ..aap jaisee sakhsiyat se mitrata ka avsar paakar main dhny manta hoon swam ko ..aapka margdarshan mujhe mila ..main prayas kar raha hoon kee kuchh theek likhoon .barshon se likh raha tha par jaane kya likh raha tha ..itne niyam hote hain kabhee pata hee na tha ..ab mujhe lag raha hai mere prayas ko ek disha milegee ..saadar pranam ke sath
Jul 26, 2013
mrs manjari pandey
आदरणीय सौरभ जी बडे अनुभव की बात आपने कही ! मेरा आशय भी यही था ! धन्यवाद !
Aug 11, 2013
Vinay Kull
मेरे व्यंगचित्र आपको पसंद आये, आभार !
Aug 18, 2013
arvind ambar
WAAAAAAAAAAAAAAAAAAH
Aug 18, 2013
Dr Dilip Mittal
मेरे छोटे से प्रयास को मान देने के लिए सादर आभार
बहुत दिनों बाद समय निकल पाया हूँ क्षमा करें
Oct 21, 2013
S. C. Brahmachari
Oct 28, 2013
Poonam Priya
Oct 29, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आप जैसे सहित मर्मज्ञ की अनुकूल प्रतिक्रिया ही हमारी कविता के उत्स है
सादर अभिनन्दन
Nov 13, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
सौरभ जी
आपकी प्रतिक्रयाये मार्ग दर्शी ही होती है i आपके परिहास ने भी मुस्कराने पर मजबूर किया i अन्वेषण को यदि मैं ग़ज़ल मानता तो शायद वह बिना मतले की ग़ज़ल होती i मैं हिंदी का विद्यार्थी हूँ i मेरे शिक्षण काल में हिंदी में गज़लों का इतना प्रचार प्रसार नहीं था i परन्तु अब तो लोग बस गजल ही लिखते है i मेरी रूचि छंदों में है i कुछ गज़ले भी समय के प्रवाह के साथ शायद आपको देखने को मिले i
कौन पूंछता इन फूलो को सौरभ अगर नहीं होता i
देव तरसते रहते लेकिन पूजन स्यात नहीं होता ii सद्मरचित
Nov 17, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय सौरभ जी
आपकी विचक्षण योग्यता से अभिज्ञ हूँ i नत मस्तक भी हूँ i दोहे की रचना के सम्बन्ध में आपसे क्या कह सकता हूँ i मेरे मतानुसार दोहे के जितने भेद व् उपभेद वर्तमान काव्य शास्त्रियों ने खोज लिए है शायद पहले न रहे हो i इस समाय शायद २२ या 23 भेद सामने आ चुके है i माँ सरस्वती के स्मरण में दोहे की रचना के समय मेरे सामने दो लक्ष्य थे i प्रथम जो संकेत आपने छंदोत्सव के रचना काल में श्री अखिलेश जी को दिये थे i उसमे आपने दोहे के आदि चरण के संयोजन के दो विकल्प दिए थे ३,३,2,३,2 या फिर ४,४,३,2 इसी प्रकार सम चरण के लिए आपने दो विकल्प दिए थे ४,४,३ और ३,३,३,2, मैंने इनमे ४,४,३,2 और ४.४.३ का चुनाव् किया
दूसरा आश्रय मैने कबीर जी के निम्नांकित दोहे का लिया
माली आवत देख कर, कलियन करी पुकार i
४ ४ ३ 2 ४ ४ ३
फूली फूली चुनि लई, काल्हि हमारी बार ii
४ ४ ३ 2 ४ ४ ३
आदरणीय बस मैंने इतना ही निर्वाह किया है i इसमें जो भी त्रुटि हो कृपया मार्ग दर्शन करने की कृपा करे i मै गुनीजनो से यावज्जीवन सीखने के लिए प्रतिबद्ध हूँ i मुझसे उक्त कथन में यदि कोई चूक हुयी ही तो कृपया आदरणीय छमा करेंगे i आपका शत शत आभार जो आपने इतना अनुग्रह किया और रचना में रूचि ली i सादर i
Dec 1, 2013
जितेन्द्र पस्टारिया
" जन्मदिन की आपको हृदय से शुभकामनाये आदरणीय सौरभ जी"
Dec 3, 2013
CHANDRA SHEKHAR PANDEY
सादर नमन
Dec 3, 2013
Ashok Kumar Raktale
आदरणीय सौरभ जी सादर,
जन्मदिन की हार्दिक बधाई स्वीकारें. आपका सहयोग मुझे और अन्य नव रचनाकारों को सदैव मिलता रहे.इश्वर आपके जीवन को सदैव उल्लासमय रखे और हमें बार बार आपको शुभकामना देने का अवसर प्रदान करे.सादर.
Dec 3, 2013
बृजेश नीरज
आदरणीया सौरभ जी,
जन्म दिन की हार्दिक शुभकामनायें! ओबीओ सदस्यों को आपका मार्गदर्शन सदा मिलता रहे, ये साहित्य की धारा अनवरत बहती रहे, यही ईश्वर से प्रार्थना है!
Dec 3, 2013
सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh
जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय सौरभ जी.
Dec 3, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय
सौरभ जी दूं आपको , भावों का उपहार i
जीवन में आये सदा , यह दिन बारम्बार ii
Dec 3, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय
मै तो इसे आप जैसे अनुभावों की कृपा मात्र समझता हूँ i
मै तो महज एक स्टूडेंट हूँ i
आपके मार्ग दर्शन पर चलू तो यही मेरी सफलता है i
सादर i
Dec 5, 2013
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय सौरभ जी
आपका मार्ग दर्शन समय समय पर मिलता रहे i इस कामना के साथ निवेदन ही कि युयुत्सु से मेरा तात्पर्य केवल युद्ध के लिए उद्दत से ही है पर आपने मेरी जानकारी और् बढ़ा दी i
सादर आभार i
Dec 6, 2013
Sushil Sarna
Resp.Sir, kripya maargdarshan krain ki main apnee prvishti motsav ke liye khaan aur kaise post kroon, kripya maargadarshan krain...filhaal main aapko apnee prvishti preshit kr rhaa hoon...kripya use ytha sthan pr shaamil kr anugrahit krain, dhnyvaad..
sushil sarna
prvishti hai :
"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 38
विषय - पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा !
विधा - रोला छंद
तज प्राणों का मोह ,वतन पे जान लुटाना
करे देश अभिमान , तिरंगा तन पे लगाना
कर दुश्मन का नाश ,लौट कर घर को आना
कायर माथे कलंक ,कभी न खुद को लगाना
हो भारत को नाज़ ,सपूत सच्चा बन जाना
बचा देश की लाज़ ,इक इतिहास बन जाना
मिट जाना मिट्टी पर ,मिट के अमर हो जाना
गूंजे जग में नाम,कोख की शान बढ़ाना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Dec 15, 2013
Dr Dilip Mittal
" क्षणिकाये पसंद आने के लिये धन्यवाद "
Jan 8, 2014
RAMESH YADAV
क्या बात है कितनी प्यारी रचनाएं है
Jan 25, 2014
ARVIND BHATNAGAR
आदरणीय सौरभ भाई जी
हौसला अफ़ज़ाई का शुक्रिया । अपनी कवितायेँ पोस्ट करने के बाद दम साधे आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करता हूँ , जिस से अपने को जानने का मौका मिलता है ।
Feb 5, 2014
Sushil Sarna
आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी , नमस्कार - मेरे द्वारा प्रेषित ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार। सर सच कहूँ तो मुझे रदीफ़, काफिया और बह्र तो समझ आते हैं लेकिन मात्राओं का ज्ञान ग़ज़ल में समझ में नहीं आया हालांकि हिंदी में मात्राओं को मैं समझता हूँ। इसके दीर्घ और लघु स्वरों की गिनती हिंदी से कुछ अलग लगती है। अपने भावों को रदीफ़ और काफिये के नियम के साथ मेल करके ग़ज़ल लिखने की कोशिश की है। मुझे ज्ञान तभी मिलेगा जब मैं जो जानता हूँ उसे उसी रूप में मंच पर प्रस्तुत करूं ताकि आप जैसे गुणी जनों की जब नज़र-ए-करम हो तो भावों को वो ज़मीन मिल सके जिसपर मैं भावों की महक के पुष्प खिला सकूं। इतनी बात मैं अपने ब्लॉग में नहीं लिख सकता था इसलिए क्षमा सहित आपके पृष्ठ पर लिख रहा हूँ। पुनः आपके स्नेह का हार्दिक आभार।
Feb 7, 2014
Sushil Sarna
मेरी ओर से होली के पावन पर्व पर सपरिवार आप को होली की शुभकामनाएं। उस परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि वो सदा आपके आँगन में खुशियों के रंग बिखेरता रहे।
सुशील सरना
Mar 16, 2014
mrs manjari pandey
Jun 15, 2014
पं. प्रेम नारायण दीक्षित "प्रेम"
Aug 7, 2014
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव
आदरणीय सौरभजी
महनीया सीमा जी के हिन्दी नवगीत पर मेरी टिप्पणी के निहितार्थ भी होंगे इस सम्भावना पर मैंने शायद उस समय विचार नहीं किया I जो बात मन में आयी वैसे ही कह दी I इससे सीमा जी को भी आघात लगा होगा i मै आपसे और सीमा जी दोनों से क्षमा प्रार्थी हूँ I मेरा अनुरोध है कि -'' सार सार को गहि रहे थोथा देय उडाय i''
सादर i
Sep 6, 2014
Sushil Sarna
आपको सपरिवार ज्योति पर्व की हार्दिक एवं मंगलमय शुभकामनाएं...
Oct 23, 2014
Rahul Dangi Panchal
मै पहले की तरह गजल की क्लाश के शुरुआती प्रष्ठ नहीं पढ़ पा रहा हुँ ! केवल comments ही पढ़ पा रहा हुँ!
आदरणीय मेरी समस्या का समाधान करें!
Nov 7, 2014
Rahul Dangi Panchal
Nov 8, 2014
Rahul Dangi Panchal
गीत की एक छोटी सी कोशिश आपको दिखाना चाहता हुँ! जो Facebook के एक ग्रुप में प्रकाशित हो चुकी है! सादर!
इसमें (गुनाह) में ह की मात्रा जादा हो गयी है !
मुखडा मापनी-२२२२१२२ २२२२१२२
अन्तरा मापनी-२२२२१२२ २२१२२२२
-------------------------------------------------
ना उसका कुछ गुनाह है, ना दिल की ही खता है!
ना इसमें ये जहाँ है,ये सब मेरा किया है!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी गलतियाँ है!!
मुझको भी लाश होना,इक रोज वो भी सोना!
जीवन है एक खिलौना,बेबात का है रोना!
फिर क्यूं मेरे ये आँसू, थामे नहीं ये थमते!
ये गम की सर्दियों में, भी क्यूं नहीं है जमते!
रब माने था जिसे दिल, अब तक भी पूजता है!
इक है वो साँप यारों,बस विष ही थूकता है!!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी................
इक पल को भी ना हटना,हर वक्त उसको तकना!
बिल्कुल भी जी न भरना,बस देखतें ही रहना!
हर शय पे हर जगह पे,बस नाम उसका लिखना!
मेजों पे दिल बनाना,फिर टीचरों पे पिटना!
बीता मेरा हुआ कल,मुझको कुरेदता है!!
नाकामी,आशिकी की 'राहुल' ये दासताँ है!!
सब मेरी गलतियाँ है, सब मेरी................
Nov 9, 2014
Rahul Dangi Panchal
Nov 9, 2014
Rahul Dangi Panchal
सूरज सितारे चाँद मेरे साथ मेँ रहे
जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहे
शाख़ों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे
Nov 20, 2014
Rahul Dangi Panchal
Nov 20, 2014
Rahul Dangi Panchal
Nov 21, 2014
Sushil Sarna
आदरणीय सौरभ जी आपको सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। प्रभु से प्रार्थना है कि आने वाला हर पल आपके और परिवार के लिए मंगलमय हो।
Jan 3, 2015
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
आ. भाई सौरभ जी,सादर अभिवादन । नगर से बाहर होने के कारण परिसंवाद में उपस्थित न हो पाने व आपसे रूबरू न हो पाने का मलाल रहेगा । पहले उम्मीद थी कि सुबह तक वापसी सभ्भव हो जाएगी । किंतु किसी कारणवश नहीं पहुच सका । इस कारण अपनी उपस्थिति सम्भव नहीं हो पायी । क्षमा प्रार्थी हूँ ।
Feb 17, 2015
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
आदरणीय सौरभ सर, वाल पर आपकी उपस्थिति ने श्रम को सार्थक कर दिया. वाल के कलेवर पर मिली पहली प्रतिक्रिया है. आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभारी हूँ . नमन
Mar 18, 2015
Sushil Sarna
आदरणीय सौरभ जी नमस्कार --- सर आपके द्वारा इस दोहे को "मेघ मिलें जब मेघ से, शोर करें घनघोर,प्रेम गीत बजने लगें, सृष्टि में चहूँ और"
वैधानिक रूप से सही नहीं माना। द्वितीय पंक्ति के सम चरण में 'चहूँ' को यदि 'चहुं ' से सही कर दिया जाए तो मात्रिक ह्रास नहीं होगा और त्रुटि सही हो जाएगी। क्या यही वैधानिक त्रुटि है या कोई ओर ?कृपया मेरी जिज्ञासा को शांत करें ताकि भविष्य में इस तरह की त्रुटि से बचा जा सके।
सादर …
Jul 20, 2015
सतविन्द्र कुमार राणा
Oct 2, 2015
सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर
Dec 3, 2015
मोहन बेगोवाल
आदरणीय सौरभ जी, आप जी को जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई हो
Dec 3, 2015
Sushil Sarna
नूतन वर्ष 2016 आपको सपरिवार मंगलमय हो। मैं प्रभु से आपकी हर मनोकामना पूर्ण करने की कामना करता हूँ।
सुशील सरना
Jan 3, 2016
Ramkunwar Choudhary
जहाँ ये दिलों की दगा का अखाड़ा,
किसी ने मिलाया किसी ने पछाड़ा;
यहाँ प्यार है बेसहारा बगीचा,
किसी ने बसाया किसी ने उजाड़ा;
Oct 22, 2017
TEJ VEER SINGH
आदरणीय सौरभ पांडे जी को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवम असीमित शुभ कामनायें।
Dec 3, 2019
TEJ VEER SINGH
जन्म दिन की हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी।
Dec 3, 2020