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मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी

न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .

 

जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;

उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .

 

बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;

भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .

 

सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का ;

आधार बना है ये नाता है ये राखी .

 

हर दुःख- सुख  में बहना के संग रहने का

मूक वचन है इक वादा है ये राखी .

 

जो जो भाई बहन का नाता रखते हैं

उन का मन मन से बंध वाता है ये राखी .

 

दीप जीरवी

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Comment by Albela Khatri on August 5, 2012 at 11:48pm

आदरणीय  दीप जीरवी जी

वाह वाह वाह

बहुत उम्दा और शानदार ग़ज़ल कही आपने........राखी के अवसर पर  इस रचना का  महत्त्व और भी बढ़ गया है

बधाई हो भाई

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