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आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ
जन्म से पहले प्राण गए हैं रोष दिखाने आया हूँ

आया हूँ मैं ये प्रण लेकर संताप नहीं ये कम होगा
धोखे से मनु ने प्राण हरे जो लड़ने का न दम होगा

मानव कितना नीच जीव है कहता खुद को सबसे ऊपर
अ हिंसा का भाषण देकर हाथ उठाता मूक जीव पर

दम्भ तुझे किस बात का मानव तू क्यों इतना है इतराता
तेरे खेल की आग में जलकर झुलस गई गज की माता

कैद रहा है तीन माह से क्या अब भी तू अज्ञानी है
लाठी खाई है ईश्वर की अरे कितना तू अभिमानी है

बस कर दे वरना अंत है तेरा मैं ये समझाने आया हूँ
आज ऐरावत की मौत हुई तो कोप जताने आया हूँ

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Vinay Prakash Tiwari (VP) on June 27, 2020 at 6:03am

आदरणीय ज़नाब Samar kabeer साहब देर से जवाब दे पाने के लिए माफ़ी चाहता हूँ आपका तहे दिल से आभार कविता पर अपना कीमती वक़्त देने के लिए सादर प्रणाम स्वीकार करें

Comment by Samar kabeer on June 13, 2020 at 4:12pm

जनाब विनय प्रकाश जी आदाब,सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।

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