जंगल में जा लकड़ी चुनता , सिर पर रख जाता बाज़ार | |
सर्दी गरमी या बारिश हो , लकड़ी बेच चले परिवार | |
एक दिन गया जब जंगल में , वह देखा गज शिशु बीमार | |
बार बार गज पाँव उठाता , तेज दर्द से था लाचार | |
लकडहारा दूर से देखा , कारण जानें किया विचार | |
डरते डरते ही पास गया , सोचा करना परोपकार | |
पकड़ा गज का पाँव हाथ में , देखा चुभा बड़ा करवार | |
आहिस्ता से कील निकाला , बहने ना दिया रक्त धार | |
तड़प गया गज तेज दर्द से , कील निकला मिला आराम | |
खुशी से लगा पैर चाटने , मन में था देना ईनाम | |
प्यार के सिवा क्या दे सकता ,कृतज्ञ बना दिया पैगाम | |
जब देखता पास आ जाता , संग ही चले उसके धाम | |
मौसम बिगड़ा आया बारिश , लकड़हारा पडा बीमार | |
चलना फिरना बंद हो गया , जब मायके गया परिवार | |
खाना ना था कुछ भी घर में , बस एक दम रहा लाचार | |
भूखे पडा चारपाई पर , राम भजन किया बार बार | |
सोच लकड़हारा ना आया , मिलन को गज हुआ बेचैन | |
खाली कैसे जाऊँगा मैं , याद कर तरसन लगे नैन | |
राह में मिला पक्का केला , घेवद तोड़ कर लिया चैन | |
पीठ पर रख आया खुशी से , पास रख बहने लगे नैन | |
लकडहारा बैठा खुशी से , हाथी का ऐसा उपकार | |
केला खा बड़ा सुकून मिला , जिसे गज लाया बेकरार | |
ऐसा सिला दिया जब पशु ने , मानव की है बात अपार | |
वर्मा ऐसे जन मिलते हैं , खुश रहता सारा संसार | |
श्याम नारायण वर्मा |
(मौलिक व अप्रकाशित) |
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