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ओबीओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता" अंक 2 में आइल सभ रचना एके जगह

ओबीओ भोजपुरी काव्य प्रतियोगिता" अंक 2, दिनांक 29 मई 2013 से 31 मई 2013 तक चलल, एह प्रतियोगिता में आइल कुल रचना, रचनाकार के नाव के साथे प्रस्तुत बा ...

 

श्री प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
1.
भोजपुरी भासा  अपने देसवा की भासा
काहे सरमावल काहे होवल हा निरासा
सुरजवा  घर से ईहा पायेला अरुणीया
समझेला पढ़ेला बोलेला  आधी दुनिया
भोजपुरी रिश्ते मा लागल हिंदी की बहना
भारत माता की यही  श्रंगारिक गहना 
गावा लिखा प्रेम से बोला हइ मधुर वानी
देर न अब  कोई इसे राज भाषा सब मानी 

2.
सुन्दर  देसवा  बसल  नर नारी
जनमहि  उहाँ  मिथिलेश कुमारी
वीर भूमि बहे वीर रस  धारा
क्रांति लौ  मंगल पांडे बारा
सुगम सुघर मधु रस सम बानी
बोलहि जन  भोजपुरी जानी
देस  विदेस जँह जँह  रह  लोगा
मीठी  मधुर  बानी  सुख  भोगा
गंगा  जमुना  विलुप्त सरस्वती
भोजपुरी मान को  तरसती
कर्तव्य बा हमनी  सब का ख़ासा
गूँजल  सन्देस बनले  राज भासा

3.
घमसा मा तपला शरीरिया
ठंडाय भोजपुरी बयरिया
रतिया जगल दिना म सोयली ...२
मुरगवा बोले चढ़ अटरिया
सास बिगड़ली नन्दा बिगड़ली .....२
काहिल बड़ी हमरी बहुरिया
पीड़ा हमरी काह न समझलि .....२
परदेस गइले सांवरिया
चंदा निकसे सुरजा डुबले  .......२
तारा चुभे मोरी नजरिया
छोड़ आइल बाबुल अंगना ..२
छोडिबे न तोहरे चरनिया
दिना रतिया ताना ह सुनली ...२
मिश्री सी भोजपुरी गुजरिया
******************************************************

श्री बृजेश नीरज
1.
इ बिदेसी बिया से न फूल देसी फुलाई
अब पछुआ बयार रउरा लइ गयल बहाई

बदल वेश भूषा भइया इतरा के डोलल
जइसे देसी कुतिया मराठी बोल बोलल
रउरा तौ आपन माटी अब गयल भुलाई
इ बिदेसी बिया से न फूल देसी फुलाई

अंगरेजी में कहेला अब बाई टाटा
बचुआ अब फैशन मा, बाप का कहे पापा
काहे लजाला भइया बोले म तू माई
इ बिदेसी बिया से न फूल देसी फुलाई

काहे लजाला बोले में अपन भाखा
सुगंध से माटी के महकल बा ई भाखा
ई भोजपुरी त बा पहिचान आपन भाई
इ बिदेसी बिया से न फूल देसी फुलाई

2.
भुला दिहला काहे इ माटी इ बोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली

महुआ मकई क विदेस मा डिमांड बा
बजरा कै रोटी अबहूं सोंधात बा
फिनु काहे भरे तू पिज्जा से झोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली

बचपन बीतल जोने देस जवार मा
ई भाषा त भइया ओकर परान बा
कइसे भुलाला तू ई पुरबी बोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली

मिश्री से मीठ बा आपन भोजपुरी
ठंडी फुहार जइसन अपन भोजपुरी
काहे बिसार दिहला इ पुरबी बोली
काहे नीक लागे परदेसी बोली

******************************************************
श्री जवाहर लाल सिंह

बहे लागल पूरबी बयार, बदरा, काहे रुसल जालअ !

आवा तानी झांकअ एने, खेती सुखल जाला 
रिमझिम बरसअ किसान गरमाला
किसनी करे तोहरा पुकार, जरा तू थम जालअ  !

मकई के बाल का तोरा न नीक लागे
बजरा, जुआर मडुआ भी मुस्काले
करतानी तोहरा गोहार, थोड़ा तो सुस्ता लअ !  

नदी अउर पोखरा पुकारे तोहरा के
आदमी जनावर पुकारे तोहरा के
दे दअ तनी ठंढी फुहार, काहे तू घबरालअ  !

******************************************************

 

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Replies to This Discussion

एडमिन साहब को ढेरों आभार कि उन्होंने इस प्रतियोगिता  में आई प्रविष्टियों का संकलन प्रस्तुत किया। 

संकलन हेतु सादर आभार 

महोदय जी 

aage kaa intjaar 

milega puruskar 

jivn men pahli baar 

jaese ho pahla pyar 

abhar abhar abhar 

हम सबका ई बतिया समझाइये कि अपनी व्यवस्था मा ईनाम दिये  मा इतना सोचेला . भोजपुरी राष्ट्र भाषा मा देरी खातिर सरकार का काहे कोसला .

हाहाहाह................
वाह आदरणीय प्रदीप जी की जय हो!
हमार नेता कइसा हो
ई बुढ़उ बाबा जइसा हो!

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