For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

     आज देश फिर चिन्तित है। नारी की अस्मिता और सुरक्षा एक बार फिर से सवालों के घेरे में है। देश के बुद्धिजीवी और चिन्तनशील लोग चिन्तन स्थलों पर चिन्तन कर रहे हैं। कुछ अतिउत्साही और ऊर्जावान लोग सड़कों पर हैं। नारी की सुरक्षा पर एक बार फिर  विचार जारी है।

     देश में रोज, शायद यह शब्द उपयुक्त नहीं, हर पल नारी के साथ हो रहे दुराचार से इतर मीडिया में प्रचारित और प्रसारित गुवाहाटी कांड, दिल्ली बस कांड के बाद नारी की सुरक्षा के सवाल पर खूब विरोध प्रदर्शन हुए, मोमबत्तियां जलायी गयीं, टीवी चैनलों पर जोरदार बहस हुई, सरकार की खिंचायी की गयी; लेकिन परिणाम क्या हुआ? ढाक के तीन पात। इस तरह के विषयों पर सरकार संजीदा न कभी थी और न कभी होगी। जो सरकार अन्ना के नेतृत्व में उभरे जनाक्रोश के बाद भी जनलोकपाल को पचा गयी उससे नारी सुरक्षा के सवाल पर किसी गंभीर कदम की उम्मीद करना सरकार के साथ नाइंसाफी होगी बल्कि कहें कि पूरी राजनैतिक व्यवस्था के साथ नाइंसाफी होगी तो अधिक उपयुक्त होगा। वर्षों से लटका पड़ा महिला आरक्षण बिल इसका स्पष्ट उदाहरण है।

     अब राजनीति से इतर लोगों पर दृष्टिपात करें तो भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं दिखती। जब कोई कांड मीडिया में बहुत हाइलाइटेड हो जाता है तो लोगों का तथाकथित सब्र का बांध टूट जाता है और फेसबुक पर फ्लर्टिंग में मशगूल लोगों से लेकर समाज के लिए तथाकथित चिंतित लोग सोशल नेटवर्किंग साइट से लेकर सड़कों तक अपनी चिन्ता और जोश उगलने लगते हैं। मोमबत्ती और चाट के ठेले वालों की बिक्री बढ़ जाती है; लेकिन कुछ पलों बाद सबकुछ पहले जैसा। दामिनी कांड के बाद क्या ऐसा नहीं हुआ था? खूब प्रदर्शन हुए, मोमबत्तियां जलायी गयीं। जंतर मंतर पर मेले का सा माहौल था। शाम की टहल करने वालों को भी अपनी ‘ईवनिंग वाक’  के लिए अच्छा स्थान और बहाना मिल गया था। लेकिन उसके बाद क्या हुआ? आरोपियों की गिरफ्तारी, सरकारी आश्वासनों और कई दिनों की थकावट ने धीरे धीरे जोश ठंडा कर दिया। मोमबत्तियों के बुझने के साथ ही लोगबाग अपने जीवन के दूसरे कर्मों में आत्मसंतुष्टि के साथ तल्लीन हो गए।

     नारी के साथ दुराचार मोमबत्ती जलने के पहले भी हो रहे थे, मोमबत्ती जलने पर भी हुए और बुझने के बाद भी हो रहे हैं। हर घर, हर मोहल्ला, हर सड़क पर हर पल नारी बेइज्जत हो रही है। इसमें दोष किसका है? कितने पुलिसवाले हों और कौन से पैमाने बनाए जाएं इस दुराचार को परिभाषित करने के और किस पैमाने के लिए कितना दण्ड निर्धारित किया जाए और किस किस को दण्डित किया जाए? यह अहम सवाल है। नारी को बोलने की आजादी न देना भी दुराचार है और उसकी इज्जत के साथ खिलवाड़ भी दुराचार है। कितने कानून बनेंगे? क्या सिर्फ बैनर और तख्ती लेकर सड़क पर नारेबाजी से समस्या का निदान सम्भव है? सवाल बहुत से हैं और खास बात यह कि उत्तर किसी भी प्रश्न का नहीं और न ही लोग उत्तर खोजना चाहते हैं।

     कोई यह स्वीकार करने को तैयार नहीं कि दरअसल समाज की  सोच ही दूषित है। समाज खुद को कितना भी आधुनिक और विकासशील मानने का ढोंग रच ले लेकिन मानसिकता अब भी पाषाण युग की है जिसमें नारी भोग्या से अधिक नहीं और इसी मानसिकता के चलते सारी तथाकथित आधुनिकता के विज्ञापनों को भी इसी तरह गढ़ा गया है कि वे नारी को एक भोग्या की ही तरह परोसते हैं। ऐसे में यदि इस तरह की घटनायें हो रही हैं तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। तमाम तरह की विकृतियों के साथ पाशविक कामुक मनोवृति कुछ इस तरह गढमढ हो गयी कि नारी को कुत्सित हवस ने खुलेआम शिकार बनाना शुरू कर दिया। समाज की इन दूषित मनोवृतियों के लिए सोने पर सुहागे का काम किया है शर्लिन चोपड़ा और सनी लियोनी जैसी माताओं ने।

     नारी स्वातंत्रय के लम्बरदार नारीवादियों की स्थिति तो और भी खतरनाक है क्योंकि वहां बहस तो नारी को मनचाहे कपड़े पहनने की आजादी या परशुराम की तरह धरती को पुरूषविहीन कर देने के नारे से आगे नहीं बढ़ पाती। परिवार और पुरूषों के बीच रहकर अपनी स्वतंत्रता की बात उन्हें भाती ही नहीं। इतिहास साक्षी है कि अतिवादिता किसी भी आंदोलन के लिए ताबूत की आखिरी कील ही साबित हुआ है और यही नारीवादी आंदोलन के साथ भी हो रहा है। इस तथाकथित स्वतंत्रता का नारा दूर दराज की ‘देहाती नारियों’ के दिलों तक अपनी पहुंच बनाने में नाकाम रहा है और यही इस आंदोलन की अब तक की असफलता का कारण भी रहा है। हर समाज की अपनी संस्कृति और मर्यादायें होती हैं और उस समाज के परिवर्तन का कोई भी आंदोलन सफल तभी हो सकता है जब उसका खाका उस समाज की संस्कृति को ध्यान में रखकर तैयार किया गया हो। आज अतिवादी अपने आलीशान बंगले में बैठकर जिस नारी की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं वह ‘देहाती औरतों’ के लिए मुंह पर पल्लू रखकर खिलखिलाने और सकुचाने का मसाला भर है। यही कारण है कि नारी स्वातंत्र आंदोलन केवल बिखरा ही नजर आता है। एकजुटता के अभाव में नारी हर जगह अपमानित होती जा रही है और खुद नारी खड़ी तमाशा भर देख रही है।

     यह बात स्वीकारनी होगी कि इस तरह के मुद्दों पर जब हम झण्डे और बैनर लेकर सड़कों पर निकलते हैं तो दरअसल अपनी जिम्मेदारी से मुंह भी चुराते हैं। नारी अस्मिता के प्रश्न पर केवल सरकार नहीं बल्कि पूरा समाज दोषी है। हम भाषण तो बहुत अच्छे दे लेते हैं लेकिन खुद अपनी सोच की गारण्टी नहीं ले सकते। वास्तविकता में तो पूरे समाज को मनोचिकित्सा की जरूरत है।

     इस तरह के मुद्दे क्षणिक नहीं हैं। इस पर तो गम्भीर मंथन होना चाहिए। यदि हम गम्भीर हैं तो शुरूआत हमें अपने घर से करनी होगी। मां बाप को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चों को नारी की इज्जत करना सिखाएं तभी भविष्य की संभावनाएं सुंदर होंगी। नारी की सुरक्षा पर पूरे समाज को निरंतर सोचना होगा, आत्मचिंतन करना होगा, आत्मावलोकन करना होगा। हमें अपनी व्यवस्थाओं के पुनर्मुल्यांकन की जरूरत है। केवल तख्ती और मोमबत्ती से काम नहीं चलने वाला।

                        - बृजेश नीरज

Views: 1365

Replies to This Discussion

मैं आपके आक्रोश को नमन् करती हूं। शायद ही कोई मनुष्य होगा जो इस जघन्य घटना से आन्दोलित नहीं हुआ होगा।
उक्त माताओं,जिनका लेख मे उदाहरण दिया है आपने, बिल्कुल सहमत हूं आपसे उन्होने सोने पर सुहागे का काम किया पर उन्हे सफलता और लोकप्रियता की ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाला है कौन??ये भी तो एक अहम प्रश्न है,अराजक तत्व तो सर्वत्र विद्यमान रहते हैं।
ईश्वर जाने आने वाले समय इस भारत भूमि पर महिलाओं की क्या स्थिति होगी,इस समय ही महिलाएं जब गर्भ के अन्दर होती हैं तभी से सुरक्षा की गुहार लगने लगती है, फिर भी नितान्त असुरक्षा से ही घिरी रहती हैं।
आज तो हृदय से बस यही आवाज निकल रही है कि जन्म लेने के बाद 'अस्मिता की हत्या' से तो 'भ्रूण हत्या' कई लाख गुना श्रेष्ठ है।
आदरणीय आपकी यह बात मुझे कुछ कम पची कि परिवार और पुरुषों के बीच रहकर उन्हें अपनी स्वतन्त्रता की बात भाती नहीं।
सादर

//आपकी यह बात मुझे कुछ कम पची कि परिवार और पुरुषों के बीच रहकर उन्हें अपनी स्वतन्त्रता की बात भाती नहीं।//

कृपया संदर्भ से हटकर पंक्तियों का अर्थ न निकालें। यह उन व्यक्तियों के लिए कहा गया है जो नारी स्वतंत्रतो को पुरूष विरोध की दृष्टि से देखते हैं।
दूसरी बात मैं यह कहना चाह रहा हूं कि अराजक तत्व नहीं अराजक समाज हो गया है। ऐसी जघन्य घटना से हम आंदोलित हो जाते हैं लेकिन अगले ही पल किसी स्त्री को देखकर लार टपकाने लगते हैं। कैसा है यह आंदोलन?

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"सभी अशआर बहुत अच्छे हुए हैं बहुत सुंदर ग़ज़ल "
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

पूनम की रात (दोहा गज़ल )

धरा चाँद गल मिल रहे, करते मन की बात।जगमग है कण-कण यहाँ, शुभ पूनम की रात।जर्रा - जर्रा नींद में ,…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी posted a blog post

तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी

वहाँ  मैं भी  पहुंचा  मगर  धीरे धीरे १२२    १२२     १२२     १२२    बढी भी तो थी ये उमर धीरे…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"आ.प्राची बहन, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"कहें अमावस पूर्णिमा, जिनके मन में प्रीत लिए प्रेम की चाँदनी, लिखें मिलन के गीतपूनम की रातें…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
Friday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Jul 10
Admin posted discussions
Jul 8
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Jul 7
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Jul 7

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service