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ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा

.
ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा,
मुझ को बुनने वाला बुनकर ख़ुद ही पगला जाएगा.
.
इश्क़ के रस्ते पर चलना है तेरी मर्ज़ी; लेकिन सुन
इस रस्ते को श्राप मिला है राही पगला जाएगा.
.
उस के हुनर पर किस को शक़ है लेकिन उस की सोचो तो
ज़ख़्म हमारे सीते सीते दर्ज़ी पगला जाएगा.  
.
उस को समुन्दर जैसी छोटी मोटी जगहें भाती हैं
इन आँखों में आएगा तो पानी पगला जाएगा.
.
जिससे बदला लूँगा उस को इतना याद करूँगा मैं
मेरे नाम की लेते लेते हिचकी पगला जाएगा.
.
दूर ही रहना उस पागल से जिस ने ऐसे शे’र कहे,
वरना उस को सुनते सुनते तू भी पगला जाएगा.
.
उस बेचारे कूज़ा-गर की सोच के दिल घबराता है
“नूर” सरीखी पाकर अड़ियल मिट्टी पगला जाएगा.
.
निलेश नूर 
मौलिक/ अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' 8 hours ago

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को मिला है। हार्दिक बधाई स्वीकारें।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 31, 2025 at 11:43am

धन्यवाद आ. गिरिराज जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 30, 2025 at 6:32pm

आ. नीलेश भाई बेहद  कठिन रदीफ  पर आपंर अच्छी  ग़ज़ल कही है , दिली बधाईयाँ 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 23, 2025 at 12:57pm

आ. सौरभ सर,
इमोजी पोस्ट कर पाने की बधाई 
😁😁


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2025 at 11:38am

जय हो... 

//होठों को शहद, रस, जाम आदि तो कई बार देखा सुना था लेकिन पहली बार होंठ पे गमले देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..
आगे होठों पे क्यारी, बौलेवार्ड और खेत भी देखने जल्द ही मिलेंगे..// 

हा हा हा हा.. 

हमने तो दिल दिया हीरा समझ कर 

वो चबाते गये खीरा समझ कर ... हा हा हा हा.. 😅

भाईजी, ऐसा नहीं कि उन सुझावों के बाद मेरे खयाली घोड़े बहर और अश’आर की सड़क पर भड़क कर वहीं अड़क गये. वे निकल गये नवगीतों के हरे-भरे मैदान मेंं. आजाद-मन उन्होंने खूब दौड़ लगायी. और एक कामयाब, मकबूल नवगीत उड़ा लाये. जिसने रविवासरीय परिशिष्टों में खूब जगह पायी. 

 

आँखों के गमलों में
गेंदे आने को हैं
नये साल की धूप तनिक
तुम लेते आना.. .

मतलब कि, आपको भी समझ में आ रहा होगा, मेरा कहना बहुत कुछ कह रहा है. हा हा हा हा... 😄😄

जय हो.. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2025 at 6:14pm

आ. सौरभ सर,
होठों को शहद, रस, जाम आदि तो कई बार देखा सुना था लेकिन पहली बार होंठ पे गमले देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ..
आगे होठों पे क्यारी, बौलेवार्ड और खेत भी देखने जल्द ही मिलेंगे.. बस आप काठमांडू जाते रहिये  
चल चल रे काठ मांडू 
मिलेंगे  वहां शम्भू 
😁😁😁😁😁😹😹😹

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2025 at 6:08pm

आभार आ. शिज्जू भाई..
मंच पर इसी तरह की चर्चा ही उर्जा भर्ती है 
आभार 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 22, 2025 at 6:05pm

आ. सौरभ सर,
आपने मुझे मज़ाक मज़ाक में अब्दुल रज़ाक कर दिया 🤣😂🤣😂🤣😂


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on May 22, 2025 at 12:02pm

क्या खूब कहा आदरणीय निलेश भाई सादर बधाई,

 

“जो गुज़रेगा इस रचना से ‘नक्की’ पगला जाएगा

दिल बोला औरों को छोड़ कि तू भी पगला जाएगा”

 

आपके और सौरभ सर के बीच की चर्चा, खूब भी रही, विशेष कर आदरणीय एह्तराम सर की टिप्पणी, होंठों वाली, मज़ाक मज़ाक में उन्होंने गूढ़ बात कह दी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 22, 2025 at 12:07am

हा हा हा.. कमाल-कमाल कर जवाब दिये हैं आप, आदरणीय नीलेश भाई. 

//व्यावहारिक रूप में तो चाँद तारे तोडना, आसमान झुका देना, ममोले को शाहबाज़ से लड़ा देना भी असहज है लेकिन शाइरी के रूपक शाइर को लम्बी चौड़ी फेंकने की सहूलत देते हैं. थोड़ी मैंने भी फेंक ली😂😂😂  //

मैं आपको बताता हूँ, मेरे इस तरह के कहे का कारण क्या है. आप आदरणीय एहतराम इस्लाम को अवश्य जानते होंगे. वे एक बहुत बड़े स्तर के गजलकार हैं. वे प्रयागराज से ही हैं. हम काठमाण्डू से एक तीन-दिवसीय साहित्यिक कार्यक्रम के बाद लौट रहे थे. तमाम विधाओं पर चर्चा होनी ही थी, हो रही थी. गजल के विधान पर तो खुल कर हम बतिया रहे थे.

मै एक मिसरे को नियत करने के लिए अपने खयाली घोड़े दौड़ा रहा था. खयाल में किन्हीं नाजुक होठों पर खिले हुए गेंदा-फूल के गमले को नियत कर रहा था. शायद मिसरा बन भी रहा था. एहतराम भाई ने मिसरे को सुनते ही कहा, ’रहम.. रहम.. सौरभ जी, रहम ! उन होठों पर रहम कीजिए, भाई, बहुत नाजुक होठ हैं वे. भारी-से गमलों के पेंदे के नीचे बेचारे पिस जाएँगे..’ 

फिर तो हम खूब हँसे. 

फिर मैंने कहा, ’एहतराम भाई, क्या हमें इतनी भी रचनात्मक छूट नहीं है ?’.

वे बोले, ’शेरों के कथ्य कई बार अतिशयोक्तिपूर्ण होते हैं. लेकिन उन शेरों का वैसा लिहाज हुआ करता है. अव्वल, मिसरे अमूमन न केवल गद्यात्मक होते हैं बल्कि उनके लिए तसव्वुरात भी तार्किक भाव के होते हैं.’ 

इस बिन्दु पर हमारी और भी बातें हुईं. मैंने अग्रज के उन मशविरों की गाँठ बाँध ली.

और, हुजूर, उन्हीं में से एक सुझाव मैंने आपके मिसरे के कथ्य पर चेंप दिया.. हा हा हा हा... ..

आप अब इसे चाहे जैसे लें. नीलेश भाई, हम ओबीओ वाले ऐसे ही तो ’जानकार’ हुए हैं. सीख-सीख कर सिखाना अपना लिहाज है. है न ?. 

जय हो. 

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