भगवान
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आजकल हमारे समाज में बिना किसी मापदंड के किसी को भी भगवान कहा जाने लगता है! भारतवर्ष में अनेक लोग अपने को भगवान कहलाना पसंद करते हैं। इस प्रकार यह गम्भीरता से सोचने की बात यह है कि , आखिर "भगवान " पदनाम क्या किसी भी एरेगैरे नत्थूखैरे को दिया जा सकता है? इस पर विचार कर समाज में उचित व्यवस्था बनाये जाने की जरूरत है। चलिए, आज इसी पर चिंतन करें और किसी उचित निष्कर्ष पर पहुंचने का प्रयत्न करें ।
मुख्य प्रश्न यह है कि भगवान किसे कहते हैं?..
जिसके पास धन होता है उसे कहते हैं, धनवान। जिसके पास बल या ताकत होती है उसे कहते हैं, बलवान या पहलवान। जिसके पास ज्ञान होता है उसे कहते हैं, ज्ञानवान या ज्ञानी। जिसके पास रूप या कोई विशेष गुण होता है उसे कहते हैं, रूपवान या गुणवान।
तो भगवान किसे कहेंगे? सोचिये ? स्पष्ट है जिसके पास "भग" हो, वह भगवान।
पर ! "भग" का क्या अर्थ है ???
ऋषियों ने इसे इस प्रकार समझाया है। भग के दो अर्थ हैं, एक तो यह कि " गच्छति यस्मिन, आगच्छति यस्मात्," अर्थात् वह सत्ता जिससे किसी भी अस्तित्व का उद्गम हुआ है और अन्त में जिसमें वह पहुँच जाता है। और दूसरा अर्थ है ,जिसमें इन छः गुणों का समाहार हो...
"ऐश्वर्यं च समग्रं च वीर्यं यशासः श्रियः, ज्ञानवैराज्ञ संयुक्तं षन्नाम भग इति उक्तम्।"
1- ऐश्वर्य का अर्थ है आठों प्रकार की सिद्धियाॅं. अर्थात् अणिमा, गरिमा, महिमा, प्राप्ति , प्राकाम्य, ईशित्व , वशित्व और अन्तर्यामित्व ।
2- वीर्य का दार्शनिक अर्थ है , जो जितनी जल्दी वाह्य विषयों पर से अपने मन को हटाकर एक विंदु पर केन्द्रित कर लेता है उसे वीर्यवान कहते हैं। सामान्यतः जिसकी उपस्थिति मात्र से लोगों में भय व्याप्त हो वह भी 'साहित्य' में वीर्यवान कहलाता है।
3- यशासः का अर्थ है यश और अपयश दोनों।
4 - श्री का अर्थ है सभी प्रकार का आर्थिक और भौतिक सामर्थ्य ।
5 - ज्ञान का अर्थ है भूत, वर्तमान और भविष्य सब का ज्ञान।
6 - वैराग्य का अर्थ है किसी भी भौतिक वस्तु में आकर्षण न होना अर्थात् रागरहित होना।
इस प्रकार जिस किसी में भी ये छः गुण है वह भगवान है। इसलिये भगवान कहीं सातवें आसमान में नहीं रहते वह हमारे सबके भीतर साक्ष्य देने वाली सत्ता के रूप में रहते हैं । अभ्यास और वैराग्य के द्वारा कोई भी उपरोक्त गुणों को प्राप्त कर भगवान हो सकता है। अतः यदि कोेई अपने को भगवान कहता है या कुछ लोग यह कहते हैं कि अमुक व्यक्ति भगवान है तो उपरोक्त छः गुणों के आधार पर जाॅंच करने पर यदि सही पाया जाता है तो उसे यह विशेषण दिया जा सकता है अन्यथा नहीं।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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