बंधन लघु कथा
रीमा कॉलेज से वापिस आ हैरान हुई। घर में खूब चहल-पहल थी। ताई, दादी व परिवार के अन्य सदस्य सब उसे पकड़ने को भागे। बात यूँ थी कि उसे लड़का देखने आया था। बात बनी पर फिर किसी गलत फहमी के कारण से रिश्ता टूट गया । पिता को अफसर और पढ़ा लिखा परिवार पसंद था। दूसरा रिश्ता पढ़ें लिखे परिवार में हो गया। लड़का दुनियादारी मे बच्चा था और हद से अधिक शरीफ था। उसकी बस काम में निष्ठां थी। घर-परिवार से कोई लगाव न था। रीमा को उस परिवार में खुद को कठिन से कठिन इम्तिहान मे गुजरना पड़ा।जिंदगी के एक मोड पर पहले रिश्ते वाला लड़का भी उसकी खिल्ली उडाता मिला, जो अभी भी बाहें खोल इन्तजार मे था। संस्कारों और मर्यादा मे बंधी रीमा आज हार चुकी थी जब उसकी खुद की बेटी संस्कारों से बाहर बगावत कर स्वतन्त्र जीवन जीने का फैसला कर लिया था । अपने रास्ते के सारे बंधन अपनी चाहत अनुकूल लेकर चल पड़ी। रीमा भी अपनी कलम उठा लेखन में व्यस्त हो गई ये सोचते कि दर्द का परिवर्तन ही समय के बंधन मे दफन है। रचना मौलिक और अप्रकाशित है. रेखा मोहन २९ जून २०१५
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