Added by anupama shrivastava[anu shri] on January 21, 2011 at 2:49pm — 2 Comments
तन -मन मैं बिखेर देती है अनगिनित उजाले'
कहीं खो जाते है इस स्वर्णिम चमक में,
मन में छुपे कुछ बादल काले
खिल जाती हैं, नयी उमीदों की नयी कोपलें
नई धुन पर तैयार ,नई गुनगुनाहटे,
पहले से जवान, पहले से हसीन,
मन के कोने से निकलकर कहीं,
कोरे कैनवास…
ContinueAdded by anupama shrivastava[anu shri] on January 14, 2011 at 1:00pm — 6 Comments
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