चौदहवीं पे कितना प्यारा लगता है।
कितना दिलकश ये नज़्ज़ारा लगता है।।
आँख मिलाए और कभी शर्माए तू।
चांद बता तू कौन हमारा लगता है।।
चांदनी हरदम पास हमारे रहती है।
चांद मगर क्यों हमसे पराया लगता है।।
तुझसे पहले आंखों में यह चुभते हैं।
तुझ पे क्यों तारों का पहरा लगता है।।
उसका अक्स जो पलकों में धर लेते हैं।
क़ैदी सा फिर चांद हमारा लगता है।।
आसिफ़ तुम दरिया बन जाते हो जो कभी।
उसमें तुम्हारा चांद…
Added by Asif zaidi on May 26, 2019 at 12:30am — No Comments
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