पास आ कातिल मेरे मुझमें जान आने दे,
जान ले लेना पर थोडा तो संभल जाने दे।
तूँ तसव्वुर में मेरे रहा है बरसों से,
खुद को नजरों से सीने में उतर जाने दे।
कुछ ठहर जा कि छुपा लूँ मैं दर्द सीने का,
या तेरे सीने से लिपट कर बिफर जाने दे।
तुझको पाना नहीं है मेरी मंजिल,
तूँ जरा खुद में मुझको समां जाने…
ContinueAdded by Gyanendra Nath Tripathi on August 18, 2011 at 1:30pm — 2 Comments
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