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ग़ज़ल
वजन : 2212 2212

 

बकवास सारा आ गया,
खबरों में रहना आ गया ।1। 
 

जो धड़कनें पढ़ने लगे, 
तो शेर कहना आ गया ।2।

 

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3।

 

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।

 

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : डर

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 13, 2013 at 9:32pm

आदरणीय गणेश जी , लाजावब गज़ल कही  आपने , वाह !! क्या बात है !!

जब सिर बँधी पगड़ी मेरे,
तब ही से सहना आ गया ।3। सबके जीवन का सत्य !! वाह !!

जब से सियासत सीख ली,
कह के मुकरना आ गया ।4।   आज की गन्दी सियासत का सच !!

दो बेटियों का बाप हूँ,
मुझको भी डरना आ गया ।5।  हर बेटी के बाप का सच --- क्या कहूँ , मै भी शामिल हूँ  इस डर मे !!

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