आज वो बेहद खुश थी। कई दिनों बाद कुछ ठीक-ठाक ग्राहक आये थे। वह अरसे बाद आज रात बच्चों को अच्छा खाना खिला पाई थी। बच्चे भी बहुत दिनों बाद अच्छा खाना खाकर तृप्त दिख रहे थे, "माँ, वाह, मज़ा आ गया !"
आज की इस आमदनी की बात उसके दल्ले पति से भी न छुपी रह सकी थी। दो-चार थप्पड़ रसीद कर उसने उससे कुछ पैसे ऐंठ लिये। ठेके पर दोस्तों के साथ बैठ, ठर्रा गटकाते हुए उधर वह भी बड़बड़ाये जा…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 9, 2020 at 4:21pm — 8 Comments
सुबह-सुबह
सूरज को देखा
बहुत ही सुंदर
फूलों को देखा
बहुत ही प्यारे
रंग बिरंगी तितलियों को देखा
हृदय हुआ प्रफुल्लित…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 13, 2020 at 1:30pm — 7 Comments
अतुकांत कविता : निर्लज्ज
=================
उसने कहा,
मेरे पास गाड़ी है, बंगला है
बैंक बैलेंस है
तुम्हारे पास क्या है ?
मैने कहा,
मेरे पास हैं...
फेसबुकिये दोस्त
जो नियमित भेजते रहते हैं
गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग,
गुड नाईट, स्वीट ड्रीम वाले संदेश
उसने कहा,
मूर्ख हो तुम
निपट अज्ञानी हो
मैंने कहा,
हाँ, हो सकता है मैं हूँ
किंतु...
सक्रिय हो जाती है छठी इंद्रीय
जब…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 6, 2020 at 12:30pm — 2 Comments
(1)
सुनी सुनाई बात पर, मत करना विश्वास ।
चक्कर में गौमूत्र के, थम ना जाए श्वास ।।
(2)
कोरोना से तेज अब, फैल रही अफ़वाह ।
सोच समझ कर पग रखो, कठिन बहुत है राह ।।
(3)
कोरोना के संग यदि, लड़ना है अब जंग ।
धरना-वरना बस करो, बंद करो सत्संग ।।
(4)
साफ सफाई स्वच्छता, सजग रहें दिन रात ।
दें साबुन से हाथ धो, कोरोना को मात ।
(5)
मुश्किल के इस दौर में, मत घबराओ यार ।
बस वैसा करते रहो, जो कहती सरकार ।।
(मौलिक एवं…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 20, 2020 at 10:00am — 4 Comments
तीन क्षणिकाएँ ...
एक: पन्ने
कुछ पन्ने
अलग करने योग्य
जुड़ने चाहिए
बच्चों की कापियों में
ताकि ...
वो खेल सकें
राजा-मंत्री, चोर-सिपाही
उड़ा सकें
हवाई जहाज
चला सकें
कागज की नाव
बिना डर,
बगैर किसी
असुविधा के ।
***
दो : कोना
बचाकर रखता हूँ
एक छोटा-सा कोना
अपने दिल में ...
जब होता…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 6, 2020 at 8:39am — 4 Comments
उफ्फ !! ये सब्जी वाले भी न, बड़ा हल्ला करते हैं । साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था के राष्ट्रीय सचिव खान साहब ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुप्ता से कहा ।
"वो सब छोड़िए खान साहब, ये बताइये कि कितने कवियों और कवयित्रियों की अंतिम सूची बनी जिन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव है ?"
"जी गुप्ता साहब, आपके निदेशानुसार 25 कवियों और 125 कवयित्रियों की सूची तैयार कर ली गयी है, किंतु एक बात समझ नही आयी कि इनमें से अधिकतर तो कोई स्तरीय साहित्यकार भी नही हैं, फिर क्यों आपने उन्हें साहित्य और…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 5, 2020 at 9:30am — 14 Comments
अतुकांत कविता : माँद
=============
क्या आपने कभी देखी है ?
सियार की माँद !
मैं बताता हूँ
क्या होती है माँद !
जमीन के अंदर
सियार बनाता है
सुरक्षित आशियाना
जिसे कहते हैं माँद
माँद से जुड़े होते है
छोटे-लंबे
कई सारे रास्ते
ताकि
जब कोई खतरा हो
तो उसका कुनबा
निकल सके सुरक्षित...
देश की न्याय प्रणाली भी है
उसी माँद की मानिंद
एक रास्ता बंद होता है
तो कई…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 3, 2020 at 7:59am — 4 Comments
अतुकांत कविता : आदमखोर
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नुकीले दाँत
लंबे-लंबे नाखून
उभरी हुई बड़ी-बड़ी आँखें
चार पैर
लंबी-सी जीभ
बेतरतीब बाल
भयानक चेहरा
बेडौल शरीर
डरावनी दहाड़ ?
नहीं-नहीं ...
वो ऐसा बिलकुल नहीं है
उसके पास हैं
मोतियों जैसे दाँत
तराशे हुए नाखून
खूबसूरत आँखें
दो पैर, दो हाथ
सामान्य-सी जीभ
सलोना चेहरा
सजे-सँवरे बाल
आकर्षक शरीर
मीठे बोल
किंतु...
वो…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 1, 2020 at 11:18pm — 2 Comments
प्रथम दृश्य : शांति
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माँ ने लगाया
चांटा...
मैं सह गयी,
पापा ने लगाया
थप्पड़..
मैं सह गयी,
भाई ने मारा
घूंसा..
मैं सह गयी,
घर से बाहर छेड़ते थे
आवारा लड़के
मैं चुप रही,
पति पीटता रहा
दारू पीकर
मैं चुप रही,
सास ससुर
अपने बेटे की
करते रहे तरफ़दारी
उसकी गलतियों पर भी
मैं चुप रही,
मैं सदैव चुप रही
ताकि बनी रहे
घर मे…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2020 at 10:57pm — 3 Comments
मारो रे स्साले को, जब हम लोगो का पर्व होता है तभी ये सूअर बिजली काट देता है, दूसरों के पर्व पर तो बिजली नही काटता !
संबंधित बिजली कर्मी जब तक कुछ कहता, तब तक भीड़ से कुछ उत्साहित युवा उस कर्मचारी को पीट चुके थे । बेचारा कर्मचारी गिड़गिड़ाते हुए बस इतना ही कह पाया...
"बड़े साहब के आदेश से बिजली कटी है ।"
"चलो रे....आज उ बड़े साहब को भी देख लेते हैं, बड़ा आया आदेश देने वाला"
भीड़ बड़े साहब के चेम्बर की तरफ बढ़ गयी ।
"क्यों जी, आज हम लोगो का पर्व का दिन है, जुलूस…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 21, 2020 at 2:00pm — 2 Comments
अतुकांत कविता : मैं भी लिखूंगा एक कविता
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे हाथों द्वारा लगाया हुआ
पलास का पौधा
बन जायेगा पेड़
उसपर लगेंगे
बसंती फूल
आयेंगी रंग बिरंगी तितलियाँ
चिड़िया बनायेंगी घोंसला...
मैं भी लिखूंगा
एक कविता
चार पांच सालों बाद..
जब मेरे घर आयेगी
नन्ही सी गुड़िया
जायेगी स्कूल
मेरी उँगली पकड़
और पढ़ेगी
क ल आ म .. कलम
गायेगी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 15, 2020 at 11:30pm — 4 Comments
दो क्षणिकाएँ
========
(1) थप्पड़
मुझे पता भी न था
उस शब्द का अर्थ
गुस्से में किसी को बोल दिया था
'साला....'
गाल पर झन्नाटेदार थप्पड़ के साथ
माँ ने समझाया था
गाली देना गंदी बात !
काश,
उनकी माँ ने भी
लगाया होता
थप्पड़
तो आज...
नहीं देते वे
माँ, बहन को इंगित
गालियाँ ।
(2) बारुद
उनको दिखाई देता है
बारूद
मेरी दीया-सलाई की काठी में,
जिससे जलता है
हमारे घर का…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 5, 2020 at 8:30am — 5 Comments
प्रधान संपादक, आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी के आलोक में यह रचना पटल से हटायी जा रही है ।
सादर
गणेश जी बाग़ी
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 1, 2020 at 9:30am — 30 Comments
अतुकांत कविता : प्रगतिशील
अकस्मात हम जा पहुँचे
एक लेखिका की कविताओं पर
जिसमे प्रमुखता से उल्लेखित थे
मर्द-औरत के गुप्त अंगों के नाम
लगभग सभी कविताओं में...
पूरी तरह से किया गया था निर्वहन
उस परंपरा को
जहाँ दी जाती हैं गालियाँ
समूची मर्द जाति को
एक ही कटघरे में खड़ा कर
प्रस्तुत किया जाता है विशिष्ट उदाहरण
चंद मानसिक विक्षिप्तों…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 30, 2020 at 7:30pm — 6 Comments
छंद मुक्त कविता : रावण दहन
मैं रूप बदल कर बैठा हूँ ।
स्वरूप बदल कर बैठा हूँ ।
मैं आज का रावण हूँ मितरों,
जन के मन में छुप बैठा हूँ ।।
मुझको जितना भी जलाओगे ।
हर घर में उतना पाओगे ।
गर मरना भी चाहूँ मितरों,
तुम राम कहाँ से लाओगे ।।
कन्या को देवी सा मान दिया ।
नारी को माँ का सम्मान दिया ।
इन बातों का नही अर्थ मितरों,
जब गर्भ में कन्या का प्राण लिया ।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 8, 2019 at 3:28pm — 6 Comments
घोघा रानी, कितना पानी ।
बदला मौसम, बरसा पानी ।।
डूब गई गली और सड़कें ।
नगर निगम का उतरा पानी ।।
सब कुछ अच्छा करते दावा ।
नही बचा आँखों का पानी ।।
गंगा कोशी पुनपुन गंडक ।
सब नदियों में उफना पानी ।।
मैं तो हूँ गंगा का बेटा ।
पितरों को भी देता पानी ।।
नगर हुआ मेरा स्मार्ट सिटी ।
उठा गरीब का दाना पानी ।।
जल दूषित से उनको क्या है ?
वो पीते बोतल का पानी…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 23, 2019 at 12:30pm — 7 Comments
मुझे विरासत में मिलीं
कुछ हथौड़ियाँ
कुछ छेनियाँ
मिला थोड़ा-सा धैर्य
कुछ साहस
थोड़ा-सा हुनर
मैं तराशने लगा
निर्जीव पत्थरों को
बना दिया
सुंदर-सुंदर मूर्तियाँ
जो कई अर्थों में
श्रेष्ठ हैं
ईश्वर द्वारा बनायी गयीं
सजीव मूर्तियों से
जिन्हें नहीं पता रिश्तों की मर्यादा
नही कर पातीं ये भेद
दूधमुँही बच्चियों, युवतियों और वृद्ध महिलाओं में
काश
एक अदद कलम
मुझे मिली होती …
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 24, 2018 at 11:30pm — 21 Comments
हाथ लगा जो गाल पर, पटकेंगे धर केश ।
दुनिया संग बदल रहा, गाँधी का ये देश।।
नैतिकता का पाठ अब, पढ़े-पढ़ाये कौन ?
मात-पिता-बच्चे सभी, ले मोबाइल मौन।।
'तुम' धन 'मैं' जब 'हम' हुए, दोनों हुए विशेष।
'हम' ऋण 'तुम' जैसे हुए, नहीं बचा अवशेष ।।
रीति जहां की देख कर, मन चंचल, मुख मौन।
मतलब के सधते सभी, पूछें तुम हो कौन ?
छप कर बिकता था कभी, जिंदा था आचार।
जबसे बिक छपने लगा, मृत लगते अखबार।।
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 5, 2018 at 9:51pm — 13 Comments
नर्स अनिता उदास होकर अपनी सहकर्मी से बोली, "आज का दिन ही खराब है, बेड नंबर चार को भी लड़की हुई है । याद है जो सुबह में बेटी पैदा हुई थी ?"
"कौन ! वही क्या, जो लोग बड़ी गाड़ी से आये थे"
"हाँ रि वही, बख्शीस माँगा, तो कुछ दिया भी नही और गुस्से से बोला कि एक तो बेटी हुई है और तुम्हे बख्शीस की पड़ी है"
खैर ....
"मालती देवी के घर से कौन है ?"
"जी बहन जी, मैं हूँ, बताइए न, मालती कैसी है और ...."
रघुआ घबराते हुए बोला ।
जी, आपके घर लक्ष्मी आयी है ।
रघुआ खुशी से झूम उठा और…
Added by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 28, 2018 at 8:27pm — 10 Comments
पाँच बरस तक कुछ न कहेंगे कर लो अपने मन की बाबू ।
बात चलेगी, तो बोलेंगे, अपनी ही थी गलती बाबू ।।
चाँद-चाँदनी, सागर-पर्वत, चाहत कहाँ किसानों की है ?
मुमकिन हो तो इनके हिस्से लिख दो थोड़ी बदली बाबू ।।
खाली थाली, खाली तसला, टूटा छप्पर, चूल्हा गीला,
रोजी-रोटी बन्द पड़ी जब, क्या करना जन-धन की बाबू ।।
जो काशी बन जाए क्योटो, या दिल्ली हो जाए लंदन ।
प्यासा जन बस जल पा जाये, गाँव लगे शंघाई बाबू ।।
अच्छे-दिन, काले-धन की…
ContinueAdded by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 22, 2018 at 3:30pm — 17 Comments
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