उफ्फ !! ये सब्जी वाले भी न, बड़ा हल्ला करते हैं । साहित्यिक एवं सामाजिक संस्था के राष्ट्रीय सचिव खान साहब ने संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुप्ता से कहा ।
"वो सब छोड़िए खान साहब, ये बताइये कि कितने कवियों और कवयित्रियों की अंतिम सूची बनी जिन्हें सम्मानित करने का प्रस्ताव है ?"
"जी गुप्ता साहब, आपके निदेशानुसार 25 कवियों और 125 कवयित्रियों की सूची तैयार कर ली गयी है, किंतु एक बात समझ नही आयी कि इनमें से अधिकतर तो कोई स्तरीय साहित्यकार भी नही हैं, फिर क्यों आपने उन्हें साहित्य और समाज मे योगदान के नाम पर सम्मानित करने की घोषणा कर दी ?"
"आप नही समझेंगे खान साहब ! आप बस ये बताइये कि आपने उन लोगो के सोसल मीडिया पर प्रोफाइल चेक कर ली ?"
"जी गुप्ता साहब, सभी अपने सम्मानित होने की सूचना सोसल मीडिया पर खूब प्रचारित कर रहे हैं"
"एय शाबास !! अब एक काम कीजिये, सबको व्यक्तिगत मैसेज भेजिये कि संस्था वित्तीय संकट से गुजर रही है इसलिए संस्था अब सिर्फ सीमित साहित्यकारों को ही सम्मानित करेगी, यदि आप सम्मान समारोह में सम्मानित होना चाहते है तो मात्र 2500 रुपये की छोटी राशि से संस्था का सहयोग करें"
"आपको लगता है ! वो लोग पैसा देंगे ?"
"हा हा हा खूब देंगे... अब तक वे लोग इतना न सोसल मीडिया पर हवा बनाये होंगे कि वापस होना मुश्किल है, कुछ नही तो 90-100 लोग तो आ ही जाएंगे"
"वाह वाह गुप्ता साहब...मान गये, खर्च वगैरह काट भी दे तो सवा-डेढ़ लाख तो कही नही गये"
हा हा हा हा हा....
दोनो की तेज हँसी में "आलू लेलो, कांदा लेलो, हरी ताजी सब्जियाँ लेलो" की आवाज दब सी गयी थी ।
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(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय गणेश जी बाग़ी साहब, बहुत उम्दा लघुकथा लिखी है आपने, आपको दिली मुबारक़बाद।
बहुत उम्दा लघुकथा हुई है आदरणीय बागी सर। आजकल ऐसा माहौल हर जगह दिखाई देता है। दौड़ औऱ होड़ लगी हुई है। अवार्ड देने वाले मंच भी तय बढ़ रहे हैं। सादर।
आदरणीय समर साहब, प्रणाम, आपकी महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार।
आदरणीया नयना जी, सराहना हेतु बहुत बहुत आभार।
डॉ दीपक पांडेय साहब, लघुकथा आप तक पहुँचने और सराहना पाने में सफल रही इसके लिए बहुत बहुत आभार।
महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया नमिता सुन्दर जी।
आदरणीय लक्ष्मण भाई, आपकी सराहना युक्त प्रतिक्रिया हेतु दिल से आभार।
आदरणीय गुरुदेव योगराज जी, आप की टिप्पणी और सराहना पाकर लघुकथा पूर्ण हुई, बहुत बहुत आभार।
जनाब गणेश जी 'बाग़ी' साहिब आदाब,आज के हालात पर तंज़ करती उम्द:लघुकथा लिखी आपने,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
वाह! वाह बहुत ही समसामयिक लघुकथा है सर. चारों तरफ़ इन सम्मान देनेवालो का शोर सा मचा हैं और खरिदने वाला कुछ भी दाम देने को तैयार. मुझे खासकर "शीर्षक" बहुत पसंद आया.
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