दरवाजे को खटकाते हुए पड़ोसन ने आवाज़ लगायी..
"गुड़िया की मम्मी, गुड़िया की मम्मी....."
"आओ आओ, शीला बहन, कैसी हो ?" दरवाजा खोलते हुए गुड़िया की मम्मी ने औपचारिकता निभायी ।
"सब ठीक है बहन, तनिक चीनी चाहिए था"
"अरे क्यों नही, अभी देती हूँ, बैठो तो"
"तुमको पता है शीला ! 605 वाली विमला की छोटी बेटी का चक्कर किसी से चल रहा है, कल उसको एक लड़के से बतियाते देखी थी"
"छोड़ो न बहन, उसके साथ पढ़ने वाला कॉलेज-वालेज का कोई लड़का रहा होगा"
"अरे ना रे, उनका तो संस्कार ही खराब है....."
"गुड़िया की मम्मी, तुम्हारे रसोई से कुछ जलने की महक आ रही है"
"वो बगल वाली मिसराइन की रसोई से महक आ रही होगी, बड़ी लापरवाह है"
"फिर भी एक बार चेक तो कर लो"
"अरे छोड़ ना, हा तो मैं कह रही थी कि....
"विमला की बड़ी बेटी को भी मैंने एक दिन एक लड़के के साथ मोटरसाइकिल पर देखी थी"
"देखो न बहन, जलने की महक कुछ अधिक ही आ रही है"
"अच्छा.....गुड़िया, ऐ गुड़िया, देख तो अपने रसोई में कुछ जल रहा है क्या ?"
"अरे बहन, गुड़िया घर में कहाँ होगी, मैं आ रही थी तो गुड़िया सूटकेस लेकर बाहर कही जा रही थी"
गुड़िया की मम्मी तेज कदमों से गुड़िया के रूम की तरफ भागी, उधर उसके ही किचन में चूल्हे पर रखा खीर जल कर काला पड़ गया था"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
Comment
कुछ लोग दूसरों के घरों में ज़ियादा ही ताकझांक करते हैं जबकि ख़ुद के घर भले आग लगी हो।
आद0 गणेश बागी जी सादर अभिवादन। बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने। बधाई निवेदित करता हूँ।
बहुत बढ़िया आईना दिखाती घुकथा है आदरणीय...
"पऱ उपदेश कुशल बहुतेरे" को चरितार्थ करती उल्लेखनीय लघुकथा, बधाई, आदरणीय गणेश बागी जी !
आदरणीय श्री गणेश बाग़ी जी, लघुकथा बहुत अच्छी हुई है। बधाई स्वीकारें। कुछ जगह पर लिंग दोष आ गया है।
देख लें। सादर।
सर्वप्रथम लघुकथा के शीर्षक के लिये बधाई स्वीकारें। अपनी पीठ का दाग किसे दिखता है। संवादात्मक शैली में लिखी इस रचना में संवादों से स्पष्ट है कि बोलने वाला कौन है। खुद की रसोई में खीर जल जाने का प्रतीक भी बहुत गहन है।हार्दिक बधाई इस उत्तम लघुकथा के लिये जो ऊपर से एक सहज वार्तालाप दिख रही है पर पर अपने अन्दर की अनकहे लिये हुए है।
आभार आदरणीय समर साहब, मैं इस रचना पर और कसरत करूँगा ।
आदरणीय अजय गुप्ता जी, यदि लघुकथा पूरी तरह संप्रेषित नही हो रही है तो मैं बगैर किसी संकोच मानता हूँ कि यह लघुकथा की कमी कही जाएगी । संवाद शैली में लिखित यह रचना यदि और भी मित्रों तक नही संप्रेषित हो रही हो तो अवश्य बतायें ।
मैं इस लघुकथा को कसने का प्रयास करूँगा ।
सादर आभार।
//अच्छा हो कि उन कमियों की तरफ कुछ इशारा की जाय //
इशारा जनाब अजय गुप्ता जी दे चुके हैं,वही मेरा भी मत है ।
आदरणीय श्री गणेश बाग़ी जी, बहुत ही रुचिकर और सोद्देश्यपूर्ण लघुकथा हुई है। अक्सर हम बाहर देखते-देखते भीतर झांकना भूल जाते हैं। तो यह लघुकथा अनेक परतों पर समझी जा सकती है।
जैसा आदरणीय समर साहब ने कहा कि कसावट की और आवश्यकता है तो यह बात एक पाठक के तौर पर मैंने भी महसूस की। संवादों को बहुत बार में समझना पड़ा कि कौन सा संवाद "शीला" का है और कौन सा "गुड़िया की मम्मी का". अन्य पाठकों की प्रतिक्रिया के बाद स्थिति और स्पष्ट हो सकती है। पुनः साधुवाद
नमस्कार आदरणीय समर साहब, कमी हो सकती है, अच्छा हो कि उन कमियों की तरफ कुछ इशारा की जाय ।
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