शास्त्री जी बहुत खुश हैं, नए घर का आज गृह प्रवेश समारोह है । विदेश से कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट की पढ़ाई पूर्ण कर इकलौता बेटा भी कल घर पहुँच गया था ।
"पापा, गेस्ट आ गये हैं आप कहें तो डिनर स्टार्ट करवा दूँ"
"नहीं बेटा, कुछ विशिष्ट अतिथियों का मैं इन्तजार कर रहा हूँ पहले वो आ जाएँ फिर भोजन प्रारम्भ कराते हैं" शास्त्री जी ने बेटे को समझाया ।
"विशिष्ट अतिथि कौन पापा ?"
"इस घर को अपने श्रम और पसीने से बनाने वाले मिस्त्री और मजदूर"
"उफ्फ ! आप भी न पापा, उनको उनकी कीमत दे दी, बात ख़त्म"
"बेटा, पसीने की कीमत देने की औकात मुझ में क्या किसी में नहीं है, शायद यह बात मैनेजमेंट में नहीं पढ़ाई जाती ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
पसीने की कीमत की चुकाने के औकात ......मेनेजमेंट नहीं सीखता .......सफल
भाई गणेशजी, बधाई.
लघुकथा कीमत ऐसे सवाल और संवाद उभार कर चुप होती है जिसकी अनुगूँज आधुनिक मानवीय समाज में सदियों से यथावत बनी हुई है.
शासक का शोषक रूप और शासित का शोषित रूप अपने कुल संदर्भ में मानों उन्नीसवीं सदी के सबसे क्लिष्ट पहलू बन कर उभरे हैं. बरतानिया के इण्डस्ट्रियल रिवोल्यूशन का बाइ-प्रोडक्ट यह संदर्भ भारत ही नहीं तृतीय विश्व के समस्त देशों के लिए सर्वाधिक चिंतनीय विन्दु है.
मुझे सरदार पूर्ण सिंह का अत्यंत मशहूर लेख मज़दूरी और प्रेम याद आ रहा है जिसका मूल ही था कि चंद सिक्कों से किसी मनुष्य की मज़दूरी नहीं खरीदी जा सकती.
आपकी इस लघुकथा का प्रस्तुतीकरण सार्थक और अर्थवान है.
पुनः बधाई.
सराहना हेतु आपका बहुत बहुत आभार आदरणीया कल्पना रमानी जी |
बहुत ही श्रेष्ठ कथन आपका, सबके विचार ऐसे हों तो सतयुग ही आ जाए।
सार्थक संदेश देती हुई लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई आपको आदरणीय गणेश बागी जी
बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची जी, लघुकथा पर आपकी टिप्प्णी और अच्छा लिखने हेतु प्रेरित करेगी |
आदरणीय अभिनव भाई, आप जैसे ससक्त हस्ताक्षर से सराहना पाना खुद में एक उपलब्धि है, बहुत बहुत आभार, स्नेह बना रहे |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया किरण आर्या जी, आप सब का उत्साहवर्धन और बढ़िया लिखने हेतु प्रेरित करता है, बहुत बहुत आभार |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीया कुंती मुखर्जी जी |
प्रतिक्रिया हेतु आभार तपन दुबे जी |
आदरणीय डॉ आशुतोष जी, आपने प्रस्तुत लघुकथा की आत्मा तक पहुँच कर टिप्प्णी की है, आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार |
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