स्कूल के कुछ दोस्त मिलकर घर में पड़े पुराने कम्बल गरीबों में बाँटने को निकले। कम्बल बाँट कर वे ज्यों ही वापस चलने को हुए, एक बुजुर्ग ने आवाज़ लगाई ………
"जी बाबा, आपको तो कम्बल दे दिया न ?"
"बबुआ जी, पिछले तीन दिन से चमचमाती गाड़ियों में साहब लोग आते हैं, कम्बल बाँट कर फ़ोटो खिचवाते हैं और फिर २०-२० रूपया देकर कम्बल वापस ……… "
(मौलिक व अप्रकाशित)
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Comment
कटाक्ष जबरदस्त.... हाय रे ठण्ड की ऐसी गरमाई ..... फेसबुक पर ऐसी कई तस्वीरें इसी जाड़े में नजर आई
आदरणीय बागी जी इस लघु कथा ने सच पर डाले परदे को उघार कर रख दिया एक कड़वा सच। … काश लोग आँखें खोलें
सुन्दर।
भ्रमर ५
प्रतापगढ़ उ.प्रदेश
//....क्या ऐसा भी होता है....वेरी बेड.//
बहुत कुछ होता है आदरणीया कुंती मुखर्जी जी |
सराहना हेतु ह्रदय से आभार आशीष नैथानी जी |
आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेयी जी, आपकी उत्साहवर्धन करती टिप्प्णी सदैव नवलेखन को प्रोत्साहित करती है, बहुत बहुत आभार |
सराहना हेतु बहुत बहुत आभार तपन दुबे जी |
उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया हेतु ह्रदय से आभार आदरणीय अभिनव अरुण जी |
बहुत बहुत आभार आदरणीय प्रधान सम्पादक श्री योगराज प्रभाकर जी, लघुकथा के महारथी से सराहना पाना खुद में एक पुरस्कार जैसा है, पुनः आभार |
वाह! सच्चाई को बहुत सुन्दरता से प्रस्तुत किया है! आपको हार्दिक बधाई!
आजकी ऐसी नंगी सच्चाई जिसका होना मानवीय सामाजिकता को गुनाहों के दर तक ले गयी है. इस लघुकथा के लिए हृदय से बधाई भाई गनेसजी.
शुभ-शुभ
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