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सामाजिक विसंगतियों में परवरिश का परिणाम
अदरणीय गणेश जी आपने बहुत सही जगह चोट की है, ऐसे ही बच्चे फिर बुढ़ापे मे माँ बाप पर दबंगई दिखाते हैं, और सारा दोष बहुओं पर मढ़ दिया जाता है । उम्दा प्रस्तुति के लिए ढेरों मुबारकबाद ।
आपके कथन से बिलकुल सहमत हूँ आदरणीय सौरभ भईया, लघुकथा पर आपका आशीर्वाद मिला,लेखन कर्म सार्थक हुआ, ह्रदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
सराहना हेतु आभार आदरणीय विनय कुमार जी।
सराहना हेतु ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय मंजरी पाण्डेय जी।
लघुकथा आप तक पहुँच सकी, सृजन सफल हुआ, बहुत बहुत आभार, आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी।
लघुकथा पर आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ, मैं आभारी हूँ आदरणीय लडिवाला जी।
प्रिय शुभ्रांशु भाई, लघुकथा पर आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धक है, बहुत बहुत आभार।
आदरणीय गणेश जी बागी जी,
लडके-लड़कियों के विभेद, भिन्न मानसिकता की परवरिश तथा सामाजिक विडम्बना पर अच्छी व्यंग्य लघु कथा,हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ !
आज के समाज में भाई पर पढ़ाई-लिखाई के सिवा और भी कितने काम हैं भाई ....सबसे बड़ा तो बहन की रक्षा..
कोलेज में दबंग भाई हो तो बहन की तरफ कोइ नज़र उठाने की जुर्रत कर भी सकता है क्या?
बहुत ही सारगर्भित लघु कथा
हार्दिक बधाई आ० गणेश जी
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