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विरह-हंसिनी हवा के झोंके
श्वेत पंख लहराए रे !
आज हंसिनी निठुर, सयानी
निधड़क उड़ती जाए रे !
अब तो हंसिनी, नाम बिकेगा
नाम जो सँग बल खाए रे !
होके बावरी चली अकेली
लाज-शरम ना आए रे !
धौराहर चढ़ राज-हंसनी,
किससे नेह लगाए रे !
कोटर आग जले धू-धूकर
क्यों न उसे बुझाए रे !
ओरे ! हंसिनी, रंगमहल से
कहाँ तू नयन उठाए रे !
जिस हंसा के फाँस-फँसी
कोई उसका सच ना पाए रे…
ContinuePosted on June 22, 2015 at 7:00pm — 11 Comments
एक सर्प ने समझ मूषिका
ज्यों पकड़ा एक छछुंदर को
उसी समय एक मोर झपट
कर दिया चोंच उस विषधर को |
फिर मोर भी हुआ धराशायी
घायल जो किया व्याध-शर ने
पर व्याध निकट जैसे पहुँचा
डस लिया व्याध को फणधर ने |
शेष रही बस छद्म-सुन्दरी
सृष्टि-रूप धर जीवन-थल पर
और सभी अंधे हो-होकर
नियति-भक्ष बन गए परस्पर |
(मौलिक व अप्रकाशित)
-- संतलाल करुण
Posted on May 1, 2015 at 6:00pm — 10 Comments
212 212 212 212 212 212 212 212
दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी
तर्जुमा उनकी आहों का आसाँ नहीं आँख की कोर से क्या गुज़रते कभी |
खैरमक्दम से दुनिया भरी है बहुत आदमी भीड़ में कितना तनहा मगर
रोज़े-बद की हिकायत बयाँ करना क्या लफ़्ज़ लब से न उसके निकलते कभी |
बात गर शक्ल की मशविरे मुख्तलिफ़ दिल के रुख़सार का आईना है कहाँ
चोट बाहर से गुम दिल के भीतर छिपे चलते ख़ंजर हैं उसपे न…
ContinuePosted on September 21, 2014 at 5:00pm — 9 Comments
सबकुछ जाने सबकुछ समझे
पागल ये फिर भी धुन है
औचक टूट गए सपनों की
उचटी आँखों की धुन है |
इस धुन की ना जीभ सलामत
ना इस धुन के होठ सलामत
लँगड़े, बहरे, अंधे मन की
व्याकुल ये कैसी धुन है |
खेल-खिलौने टूटे-फूटे
भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े
अत्तल-पत्तल बाँह दबाए
खोले-बाँधे की धुन है |
क्या खोया-पाना, ना पाना
अता-पता न कोई ठिकाना
भरे शहर की अटरी-पटरी
पर…
ContinuePosted on September 4, 2014 at 8:12pm — 27 Comments
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Comment Wall (11 comments)
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय संतलाल करुण जी,
प्रसस्ति पत्र शीघ्र ही आपके नए पते पर प्रेषित कर दी जायेगीं.
सादर.
बहुत बहुत आभार .....आपका...सादर नमस्ते स्वाविकार कर हमे अनुग्रहित करें
माह की सर्वश्रेष्ठ रचना के लिए बधाई आदरनीय संतलाल करुण जी सादर नमन !
माह की सर्वश्रेष्ठ रचना के चयन होने पर हमारी दिली बधाई स्वीकार करें आदरणीय संतलाल करुण जी
आदरणीय करुण जी
"महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" का सम्मान आपको बहुत बहुत मुबारक , सादर
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
आदरणीय संतलाल करुण जी,
सादर अभिवादन !
मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी ग़ज़ल "माँ, बहन, बेटी के आँसू" को "महीने की सर्वश्रेष्ठ रचना" सम्मान के रूप मे सम्मानित किया गया है, तथा आप की छाया चित्र को ओ बी ओ मुख्य पृष्ठ पर स्थान दिया गया है | इस शानदार उपलब्धि पर बधाई स्वीकार करे |
आपको प्रसस्ति पत्र शीघ्र उपलब्ध करा दिया जायेगा, इस निमित कृपया आप अपना पत्राचार का पता व फ़ोन नंबर admin@openbooksonline.com पर उपलब्ध कराना चाहेंगे | मेल उसी आई डी से भेजे जिससे ओ बी ओ सदस्यता प्राप्त की गई हो |
शुभकामनाओं सहित
आपका
गणेश जी "बागी
संस्थापक सह मुख्य प्रबंधक
ओपन बुक्स ऑनलाइन
आदरणीय संतलाल जी,
क्षमाप्रार्थी हूँ । आपने निम्न संदेश मेरी comment wall पर कई दिन हुए छोड़ा, परन्तु मैंने उसको आज ही देखा।
//आदरणीय निकोर जी, हृदयतल के अत्यंत संवेदनात्मक भावों को दर्दीले स्वरों में बाहर लाने के लिए हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --
"अकेलापन
कसैलापन रसता
बचा रह जाता है
बीतती मुस्कान ओंठों पर
खाली बोतलों के पास
टूटे हुए गिलास-सी पड़ी ..." //
आपने रचना को सराह कर मुझको मान दिया है, आपका हार्दिक आभार । आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा।
आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय संतलाल जी, अपना स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा
सादर!
प्रधान संपादकयोगराज प्रभाकर said…
आद० संत लाल करुण जी , वांछित सुधार प्रतिस्थापित कर दिया गया है, कृपया देख लें.
सादर
योगराज प्रभाकर
आदरणीय महोदय जी आपका हार्दिक अभिनन्दन एवं स्वागत है