For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या ..

212    212    212    212    212    212    212    212

 

दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी

तर्जुमा उनकी आहों का आसाँ नहीं आँख की कोर से क्या गुज़रते कभी |

 

खैरमक्दम से दुनिया भरी है बहुत आदमी भीड़ में कितना तनहा मगर

रोज़े-बद की हिकायत बयाँ करना क्या लफ़्ज़ लब से न उसके निकलते कभी |

 

बात गर शक्ल की मशविरे मुख्तलिफ़ दिल के रुख़सार का आईना है कहाँ     

चोट बाहर से गुम दिल के भीतर छिपे चलते ख़ंजर हैं उसपे न रुकते कभी |

 

जिस्म का ज़ख्म भर दे ज़माना मगर ज़ख्म दिल का कभी भी है भरता नहीं  

रूह के साथ जाते हैं ज़ख्मेज़िगर सफ्हए-ज़ीस्त से वो न मिटते कभी |

 

आँसुओं की लड़ी टूट जाने पे भी जो गए याद उनकी है जाती नहीं

याद जलती है सीने में जब बाफ़ज़ा रातें होती नहीं दिन न ढलते कभी |

 

दर्द ऐसी जगह जो परीशानकुन दिल के दरम्यान ही घर बनाता कहीं 

वक्त की चादरों से ढका बेतरह पर ख़लिश से दिलोदम न बचते कभी |

 

 

--- संतलाल करुण

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

शब्दार्थ :

सफ्हए-ज़ीस्त = जीवन-पृष्ठ  

बाफ़ज़ा = वातावरण पाने पर, माहौल के साथ, खुलापन मिलने पर  

Views: 550

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Santlal Karun on September 25, 2014 at 5:35pm

आदरणीय भंडारी जी,

ग़ज़ल पर आप के प्रशंसा भर उद्गार के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on September 25, 2014 at 5:33pm

आदरणीय हरिवल्लभ शर्मा जी,

ग़ज़ल पर आप की प्रतिक्रिया से अभिभूत हुआ, सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on September 25, 2014 at 5:30pm

आदरणीय खैरादी जी,

ग़ज़ल की प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 25, 2014 at 5:27pm

आदरणीय चौहान जी,

ग़ज़ल की तारीफ़ के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 25, 2014 at 5:24pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी,

ग़ज़ल की सराहना भरी प्रतिक्रिया लिए हार्दिक आभार !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 25, 2014 at 7:34am

आदरणीय संत लाल भाई , आठ -आठ रुक्न में ग़ज़ल  कहना आसान काम नहीं है , आपको बढ़िया ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई |

दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी

तर्जुमा उनकी आहों का आसाँ नहीं आँख की कोर से क्या गुज़रते कभी  -- बहुत खूब आदरणीय |

Comment by harivallabh sharma on September 24, 2014 at 1:59pm

दर्द ऐसी जगह जो परीशानकुन दिल के दरम्यान ही घर बनाता कहीं 

वक्त की चादरों से ढका बेतरह पर ख़लिश से दिलोदम न बचते कभी |..बहुत सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय ...बहुत बहुत बधाई आपको.

Comment by khursheed khairadi on September 23, 2014 at 10:12am

बात गर शक्ल की मशविरे मुख्तलिफ़ दिल के रुख़सार का आईना है कहाँ     

चोट बाहर से गुम दिल के भीतर छिपे चलते ख़ंजर हैं उसपे न रुकते कभी |

आदरणीय करुण साहब ,उम्दा ग़ज़ल हुई है |ढेरों दाद कबूल फरमाएं |सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 21, 2014 at 10:22pm
" दिल के आँसू पे यों फ़ातिहा पढ़ना क्या वो न बहते कभी वो न दिखते कभी "
बहत खूब . इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आदरणीय संतलाल करुण जी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
13 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
13 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
15 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय दयाराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई आपको  अच्छे मतले से ग़ज़ल की शुरुआत के लिए…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रास्ता  घर  का  दूसरा  तो  नहीं  जीना मरना अलग हुआ तो…"
16 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"2122 1212 22 दिल को पत्थर बना दिया तो नहीं  वो किसी याद का किला तो नहीं 1 कुछ नशा रात मुझपे…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
20 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
20 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service