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सबकुछ जाने सबकुछ समझे  

पागल ये फिर भी धुन है

औचक टूट गए सपनों की

उचटी आँखों की धुन है |

 

इस धुन की ना जीभ सलामत

ना इस धुन के होठ सलामत   

लँगड़े, बहरे, अंधे मन की  

व्याकुल ये कैसी धुन है |  

 

खेल-खिलौने टूटे-फूटे   

भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े

अत्तल-पत्तल बाँह दबाए

खोले-बाँधे की धुन है |

 

क्या खोया-पाना, ना पाना  

अता-पता न कोई ठिकाना

भरे शहर की अटरी-पटरी  

पर गिरती-पड़ती धुन है |

 

फूटा लोटा, टूटी डोरी  

भठे कुएँ पर खड़ा बटोही

बेसुध कंकड़-पत्थर भरती   

ये कैसी प्यासी धुन है |

 

किए-धरे का लेखा-जोखा

झाड़ों ने कब तौला-देखा  

काँटों में घायल पंखों की  

ज्यों फड़फड़ करती धुन है |

 

ऐसा होता, वैसा होता   

तो आज समय कैसा होता   

बीती बातों को धुनने की

बेमतलब गुनती धुन है |

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण       

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Comment by Madan Mohan saxena on December 3, 2014 at 3:14pm

बहुत सुंदर .बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!शुभकामनायें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 9, 2014 at 9:17pm

//आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता //

आपकी रचना १६-१४ की यति पर मात्रिक छन्द की तरह चल रही है. इसीको प्रत्येक बन्द में निभाना है.

संशोधन के बाद इसे बहुत हद तक निभाया गया है.  मुखड़े के दोनों पदों या पंक्तियों में १६-१४ की यति है जबकि बन्द में १६-१६ यति के बाद अगले पद में आपने १६-१४ को बना रखा है. यह मात्रिक प्रबन्ध एक स्वीकार्य स्थिति बनाता है.

सादर धन्यवाद आदरणीय

Comment by Santlal Karun on September 9, 2014 at 7:16pm

आदरणीया अनुपमा जी,

गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !

Comment by annapurna bajpai on September 7, 2014 at 5:43pm

अति सुंदर गीत , सुंदर भावों को समेटे हुये , आपको बहुत बधाई आ0 संत लाल जी 

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:22pm

आदरणीय महिमा श्री जी,

गीत पर प्रशंसात्मक भावों के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:19pm

आदरणीय डॉ. विजय शंकर जी,

गीत पर श्लाघात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:18pm

आदरणीय नरेन्द्र सिंह चौहान जी,

गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:16pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,

गीत को लेकर आप के प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:14pm

आदरणीया वन्दना जी,

गीत की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:12pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी,

गीतपरक भावभूमि, संदर्भगत तथ्य और उसके के मर्म की आनुभूतिक प्रतिक्रिया के लिए हृदयपूर्वक आभार ! आप की प्रतिक्रिया के बाद मैंने गीत के शिल्प पर पुन: गौर किया और एक स्थान पर किंचित परिवर्तन कर पाया हूँ, पर अब और कुछ नहीं हो सकता | 

सादर !

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