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बन्दा हूँ, भगवान नहीं हूँ |
पत्थर का इंसान नहीं हूँ ||

वक़्त के साथ, बदल सकता हूँ |
कोई वेद-पुरान नहीं हूँ ||

मैं भी गलती कर सकता हूँ |
धर्म नहीं हूँ, ज्ञान नहीं हूँ ||

हर्फ़ हूँ मैं, मिट जाने वाला |
गीता नहीं, कुरान नहीं हूँ ||

बुरा लगे जो, आँख किसी को |
ऐसा कोई, निशान नहीं हूँ ||

सीख रहा हूँ, रस्में-ज़माना |
इतना भी, अनजान नहीं हूँ ||

अपने से मत बेहतर समझो |
'शशि' हूँ ,आसमान नहीं हूँ ||

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Comment by shikha kaushik on July 13, 2011 at 9:26pm
bahut khoob Shashi ji .badhai

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 12, 2011 at 9:31pm

बहुत बढ़िया शशि जी , बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने ,

 

मैं भी गलती कर सकता हूँ |
धर्म नहीं हूँ, ज्ञान नहीं हूँ ||
खुबसूरत शे'र , सुंदर कहन |
सीख रहा हूँ, रस्में-ज़माना |
इतना भी, अनजान नहीं हूँ ||
मेरे समझ से इस शेर को हासिले ग़ज़ल कहा जा सकता है , दाद कुबूल कीजिये |

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