हरिगीतिका
(1)
मधु छंद सुनकर छंद गुनकर, ही हमें कुछ बोध है,
सब वर्ण-मात्रा गेयता हित, ही बने यह शोध है,
अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,
रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||
(2)
यह आधुनिक परिवेश इसमें, हम सभी पर भार है,
यह भार भी भारी नहीं जब, संस्कृति आधार है,
सुरभित सुमन सब है खिले अब, आपसे मनुहार है,
निज नेह के दीपक जलायें, ज्योंति का त्यौहार है ||
(3)
सहना पड़े सुख दुःख कभी मत, भूलिए उस पाप को,
यह जिन्दगी है कीमती अब, छोडिये संताप को,
अभिमान को भी त्यागिये तब, मापिये निज ताप को,
तब तो कसौटी पर कसें हम, आज अपने आप को||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
Comment
धन्यवाद आदरणीया मोहिनी जी ! आपका हार्दिक आभार !
हरीगीतिका छंदों की ख़ूबसूरती बढ़ गई .सीधे- सादे शब्दों के प्रयोग से |
अनुरोध,त्यौहार ,कसौटी तीनों शब्दों का बहुत ही खूबसूरत प्रयोग किया है आपने अम्बरीश श्रीवास्तव जी |बधाई
आदरणीया लता जी! सराहना के लिए हार्दिक आभार !
बहुत ही सुन्दर ..प्रेरक रचना :)
स्वागत है भाई वीनस जी! तीनों छंदों को सराहने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद! :-))))
अब छंद कहना है कठिन क्यों, मित्र क्या अवरोध है,
रसधार छंदों की बहा दें, यह मेरा अनुरोध है ||
वाह, ऐसा सुमधुर, सुन्दर अनुरोध कौन टाल सकता है ...
तीनो छंद खूब पसंद आये
बधाई हो |
स्वागत है भाई आशीष जी ! हरिगीतिका की सराहना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! भाई बागी जी का सुझाव अनुकरणीय है ! :-)
धन्यवाद भाई बागी जी ! "भारतीय छंद विधान" ग्रुप का निर्माण अवश्य किया जाय ! नेक काम में देरी क्यों ? :-)
स्वागत है भाई बृज भूषण जी !
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