सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ
दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥
कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं
राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥
अपने नग़मे गाती हूँ तनहाई में
वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ॥
प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है
अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ
तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है
मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥
दिल मंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"
आशाओं के दीप जलाती रहती हूँ॥
Comment
शुक्रिया,सिया जी
नया मतला लिख देने से अब आपकी ग़ज़ल निर्दोष हो गई है
नया मतला सुन्दर है
janab वीनस केशरी saheb ..
jitana apanapan hai apake comment me main mahasoos kar rahi hoon !! Ye ahasaas saramaya hai --aur dua hai ki bana rahe !! aapki islaah ke anusaar maine matla change kiya hain ..gaur farmaiyega ...shukriya bahut bahut !! salamati ho
janab Ganesh Jee "Bagi ji ghzal ke jankaaraur aur bahut kabil insaan unhone sahi farmaya hain ... maine matla badal diya hain shayed ab kami mein sudhar hua ...aap sabki islaah ki jarurat hain ..main chahti hoon koyi kami ho to jarur batayi jaye aap sab guni jan hain bahut kuch seekhna hain aapse ..isi tarah guide karte rahe ..bahut bahut meharbani ...salamati ho
तन्हाई में नगमे गाती रहती हूँ
वीराने में फूल खिलाती रहती हूँ
सब को मीठे बोल सुनाती रहती हूँ
दुश्मन को भी दोस्त बनाती रहती हूँ॥
कांटे जिस ने मेरी राह में बोये हैं
राह में उस की फूल बिछाती रहती हूँ॥
प्यार में खो कर ही सब कुछ मिल पाता है
अक्सर मन को यह समझाती रहती हूँ
तेरे ग़म के राज़ को राज़ ही रक्खा है
मुस्कानों में अश्क छुपाती रहती हूँ॥
दिल मंदिर में दिन ढलते ही रोज़ "सिया"
आशाओं के दीप जलाती रहती हूँ॥
बागी जी,
यह ग़ज़ल फारसी बह्र पर नहीं वरन हिंदी के मात्रिक छ्न्द पर लिखी गयी है
२२२२ २२२२ २२२२
यह हिन्दी छ्न्द है जिसको ग़ज़ल में मान्यता मिल गयी है और भरपूर मात्रा में उस्ताद शायरों ने इस छंद पर ग़ज़ल कही है
अब आईये इस छंद में मिलाने वाली छूट की बात कर लें
* इस बह्र (छंद) में सारा खेल कुल मात्रा और लयात्मकता का है
आप इस बह्र में दो स्वतंत्र लघु को एक दीर्घ मान सकते हैं
जैसे
२११२२ = २२२२
१२१२२ = २२२२
ध्यान रहे कि जो दो लघु हों वो स्वतंत्र हों
याद रखे कि ग़ज़ल में कब,, तक आदि किसी वस्ल से दीर्घ नहीं होते वरन यह शाशवत दीर्घ होते हैं
कब, तक को २२ के अतिरिक्त किसी और वज्न में बाँधा ही नहीं जा सकता,, इसे १२१ करना असंभव है
(आपने तिलक सर से यह ही पूछा था इस लिए उन्होंने मना किया था)
अब देखिये
दीप जलाती = २१ ,, १२२ इसमें प और ज स्वतंत्र लघु हैं इसलिए (केवल इस बह्र में) इसे दीर्घ माना जाता है
और २१,, १२२ को २२२२ गिना जाता है,,,
इस तरह ही
यहाँ वहाँ = १२१२ को भी मात्रा गिन कर २२२ किया जाता है
मेरा एक शेर देखें
गायब है चालीस खरब
२२२२,,, २१+१२
सवा अरब की कंट्री का
१२१२२ २२२ ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,एक खास बात का ध्यान रखना होता है कि लय कहीं से भंग न हो,, यदि लय जरा सा भी भंग हो जाये तो सारा जुगाड फेल :)))
इस फेलियर से बचने के लिए इस बह्र में कुछ नियम हैं कि कहाँ कहाँ १+१ = २ किया जाए जिससे लय भंग न हो और मात्रा को सुनिश्चित करने का भी कुछ नियम है जिससे लय और सुंदरता से बनी रहे
उस पर चर्चा फिर कभी .....
यदि इस बह्र की और बारीकियां समझनी हैं तो सुप्रसिद्ध शायर विज्ञान व्रत जी को कविता कोष में पढ़े उनकी अधिकतर ग़ज़ल इस बह्र पर ही हैं और वहाँ आपको सुन्दर लय के साथ साथ ये सारे जुगाड भी मिलेंगे
अंत में इस बह्र की सबसे मशहूर गज़ल के दो शेर लिखता हूँ
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है
किसको कैसर पत्थर मारू कौन पराया है,
शीश महल में इक इक चेहरा अपना लगता है
(इस ग़ज़ल के एक मिसरे पर ओ बी ओ तरही मुशायरा भी हो चूका है ) वहाँ मैंने एक मजाहिया शेर कहने का प्रयास किया था जो कुछ यूं था कि,
मंजनू पिंजरे में बैठा कर शह् र घुमाया फिर
मुझसे थानेदार ने पूछा कैसा लगता है ,,,,,,,,:)))))))))
कहीं कुछ गलत कहा हो तो मुझे जरूर बताने की कृपा करें
मैं भी सीख ही रहा हूँ
सादर
वीनस भाई मध्य वाले रुक्न की तकतई में भ्रमित हूँ , आपने कैसे किया है जरा विस्तारित कीजिये |
बोल सुनाती
२२२२ (?)
और
दोस्त बनाती
२२२२ (?)
बागी जी, तख्तीय इस तरह करें ...
सब को मीठे / बोल सुनाती / रहती हूँ
२२२२ २२२२ २२२
दुश्मन को भी/ दोस्त बनाती / रहती हूँ
२२२२ २२२२ २२२
सादर
सिया जी,
सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई हो,, मतला से मक्ता तक सारे शेर पसंद आये
बागी जी ने जिस ओर ध्यान दिलाया है उसके लिए एक सरल उपाय यह है कि आप एक मतला और लिख लीजिए और इस मतले को हुस्ने मतला रख लीजिए
वैसे अगर यह मतला आप हटा ही दें तो बेहतर होगा क्योकि इस मतला में सिनाद दोष है और मीठे बोल सुनाना को कुछ क्षेत्र में आंचलिक रूप से मक्खन बाजी के अर्थ में भी इस्तेमाल किया जाता है जो कि आपके मतला के हिसाब से सही अर्थ में नहीं है
सादर
janab Ganesh Jee "Bagi" ji..aapki hunar-mandi ki qaail hun ..aapki islah sar ankho par seekh rahe hain abhi bahut si kamiya rah jati hain ..aap jaise kabil logo se guide line ki jarurat kadam kadam par padegi .... aapka ek ek lafz sar aankhon par,khaaskar takhleeq ki zameen pe aapki islaah pakar beinteha khushi hui ,aapse isi tarah aur hausalaa-afzaai ki talabgaar rahenge .shukria,,..salamati ho
Ambarish Srivastava saheb aapki daad hamane tahe dil se qubool farmaai..pasandagi ke liye main aapki tahe dil se mamnoon hu..shukria..salamati ho
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