तू ज़रा सोच कभी अपनी अदा से पहले
कहीं मर जाये न इक शख्स क़ज़ा से पहले
इस लिए आज तलक मुझ से ख़ताएँ न हुईं
रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले
हो सके तो कभी देखो मेरे घर में आकर
ऐसी बरसात जो होती है घटा से पहले
ग़मे जानां की क़सम अश्के मोहब्बत की क़सम
थे बहुत चैन से हम दौरे वफ़ा से पहले
वह फ़क़त रंग ही भर्ती रही अफसानों में
सब पहुंच भी गए मंजिल पे सिया से पहले
Comment
बधाई. हर शे’र की कहन जज़्बों का गुलदस्ता है.
वह फ़कत रंग ही भरती रही.. . वाह-वाह !! ..
वीनस भाई के सुझाव और इशारे पर ग़ौर करेंगी.
इस लिए आज तलक मुझ से ख़ताएँ न हुईं
रोक देता है ज़मीर आ के ख़ता से पहले
वाह सिया जी, अच्छी प्रस्तुति पर बधाई |
सिया जी,
ग़ज़ल के कुछ शेर लय से भटक रहे हैं, एक बार नजर-ए-सानी कर लें
वीनस केशरी ji badi masarrat hui ..aapko peshkash pasand aayi ..salamati ho
सुन्दर ग़ज़ल है सिया जी
कुछ टाईपिंग की त्रुटियाँ हैं उन्हें सही कर लीजिए
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