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सुन्दर दोहे सुदृढ़ भावाभियक्ति बधाई स्वीकार करें
कहाँ सुधारें शिल्प को, हमने दिया सुझाय|
प्रभुजी इच्छा आपकी, 'हाय' कहें या 'बाय'||
प्रभु हार्दिक आभार है,देखा रचना धार।
सब राउर आशीष है,भ्राता अरुण कुमार॥
धन्य भयो विन्ध्येश्वरी,वीनस सर आभार।
तव आशिष प्रभाव है,कवन बिसात हमार॥
इन दोहों के ज़रिये आपका व्यंग्य धारदार बन पड़ा है आदरणीय श्री हार्दिक बधाई आपको !!
भाई विन्ध्येश्वरी जी,
कथ्य शिल्प संमृद्ध है , लोक-नीति की बात.
दोहे मन को भा गए, साधुवाद हे भ्रात..
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दोहों के सम्बन्ध में कुछ शिल्पगत सुझाव दे रहा हूँ ..........
//माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनी दुःखी क्यों,हो जाते सरकार॥// २२ १२ १२ २ =१२ मात्रा अर्थात तृतीय चरण में एक मात्रा कम है
माँ पत्नी भगिनी चहौं,ममता सेवा प्यार।
बेटी जनकर क्यों दुःखी ,हो जाते सरकार|| यह मात्र सुझाव ही है सुधार आपको स्वयं ही करना है
//आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव। तृतीय चरण में 'किसी' १२ के प्रयोग से सही गेयता नहीं आ पा रही है | इसके
क्यों रखते हैं किसी से,खुद ही मन दुर्भाव॥// स्थान पर २१ अर्थात गुरु लघु वाला शब्द यथा 'एक' प्रयोग किया जा सकता है|
आशा मन अच्छा करैं,लोग बाग बर्ताव।
क्यों रखते कुछ एक से,खुद ही मन दुर्भाव||
//ललचाइ अंखियां लखै,तिरिया बेटी आन। प्रथम चरण में एक मात्रा कम है
जौ कोई इनकै लखै,कांहे कहौ पिरान॥//
ललचाई अँखियां लखै,तिरिया बेटी आन।
जौ कोई इनकै लखै,काहे कहौ पिरान॥
//भारत भ्रष्टाचार से,डूबै औ उतराय। प्रथम चरण में 'से' के स्थान पर कृपया 'में' का प्रयोग करके देखें !
रहा धर्म अवलम्ब यक, निर्मल राखिन नाय// एवं तृतीय चरण में 'यक' के स्थान पर 'सो' का प्रयोग करके देखें !
भारत भ्रष्टाचार में ,डूबै औ उतराय।
रहा धर्म अवलम्ब सो , निर्मल राखिन नाय||
सस्नेह
बहुत बढ़िया विन्धेश्वरी जी आपको विविध छंदों पर काम करते देख दिल को सुकून प्राप्त होता है
सुन्दर दोहे हैं
बधाई स्वीकारें
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