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ऐ माँ मत मार मुझे,
मैं दुनियां में आना चाहती हूँ।

ऐ माँ मैं इस संसार में जन्म लेकर,
जीवन चक्र बढ़ाना चाहती हूँ।।

ऐ माँ मैं बड़ी होकर,
डॉक्टर, इन्जीनियर बनना चाहती हूँ।

ऐ माँ मैं किसी से शादी कर-कर,
उसका वंश बढ़ाना चाहती हूँ।।

ऐ माँ मत समझ बोझ मुझे,
मैं तेरा भी बोझ उठाउँगी।

ऐ माँ मैं तेरे बुढ़ापे को,
बेटे से ज्यादा सवारूँगी।।

ऐ माँ तुमने ये कैसे सोच लिया,
तुम भी तो किसी की बेटी हो।

ऐ माँ अगर तुमहारी माँ ने सोचा होता ऐसा,
नहीं कर पाती तुम ये पाप बेटी हत्या जैसा।।

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on September 25, 2010 at 10:24am
बुत ही खुबसूरत और मार्मिक रचना, भ्रूण हत्या जैसा अमानवीय अपराध के तरह इशारा करती हुई यह कविता संवेदना को झकझोर रही है, इस बेहतरीन रचना हेतु बधाई स्वीकार कीजिये दीपक जी,

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