मानो तो रूह क़ा नाता है जी ये राखी
न मानो कच्चा धागा है जी ये राखी .
जो राखी को दम्भ-आडम्बर मानते हैं ;
उन का मन भी तो अपनाता है ये राखी .
बहना के मन से उपजी हर इक दुआ है ये ;
भाई-बहन से बंधवाता है ये राखी .
सभ्य समाज की नींव के पत्थर नातों का ;
आधार बना है ये नाता है ये राखी .
हर दुःख- सुख में बहना के संग रहने का
मूक वचन है इक वादा है ये राखी .
जो जो भाई बहन का नाता रखते हैं
उन का मन मन से बंध वाता है ये राखी .
दीप जीरवी
Comment
आदरणीय दीप जीरवी जी
वाह वाह वाह
बहुत उम्दा और शानदार ग़ज़ल कही आपने........राखी के अवसर पर इस रचना का महत्त्व और भी बढ़ गया है
बधाई हो भाई
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