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एक नई सफर की शुरूआत
हम बच्चे मन के सच्चे आँखो के तारे सबके प्यारे कैसे देखते देखते ही बढ़ जाते हैँ पता ही नहीँ चलता। ऐसे ही धीरे-धीरे बढ़ते बढ़ते हम भी अपने दादा-दादी जैसे बुढ़े हो जाएगे। असहाय हो जाएँगे। मेरी नानी जो लगभग 1916 ई॰ के आस पास जन्मी होगी अब उसी पड़ाव मे पहुँच चुकी जिसे दूसरा बचपन कहा जाता है। उनकी बाते उनकी हरकते एकदम छोटे बच्चो जैसी हो गई है। छोटे बच्चो से जैसे प्यार का अनुभव मिलता है उसी तरह इन बुढ़ो से भी मिलता है।


मेरी नानी से जब  मैं छोटा था खुब खेला करता था आज मुझे अपने पास बैठा कर खेलना चाहती कमजोरी का जब तक एहसास नहीँ होता अपने को बच्चे की तरह ही समझती है और जब थक जाए तो कहती है-" होऊ बुढ़िया होए गेलोँ नी वोहेले नइ पाराथो अपन परया मे तो कहाँ से कहाँ पैदले चईल जात रहो" नानी को कई भाषाओँ का ज्ञान है पर वो थक जाने पर कौन सा भाषा का प्रयोग करेगी कहा नहीँ जा सकता। अंग्रेजो के शासन काल की जुड़ी बाते बताती है उनको भी उनके यहाँ काम करना पड़ा था। देश के आजाद होने पर वो बहुत खुश हुई थी। पर जब कभी न्यूजपेपर या टेलीविजन पर हो रहे अत्यचार परेशानियो को देखती है तो कहती है - इससे तो अच्छा अंग्रेज मन केर राईज रहलक एतई किच किच तो नइ होत रहलक। गुलामी के सुन्दर पट्टा से आजादी के परेशानियाँ ज्यादा अच्छी है ये भी मेरी नानी को पता है।

अब नानी जी ज्यादा समय खाट पर बिताती है उनके उठने बैठने मे परेशानी कुछ ज्यादा होने लगी है वो अब भुलने भी लगी है जिससे परिवार वाले परेशान हो जाते है नानी जी चाय की बहुत शौकीन है वह चाय पीने के लिए तरह तरह की बहाने बनाती है आज जब उसे चाय दिया जाता है तो वह कुछ समय पश्चात फिर से चाय की माँग करने लगती है और कहती है उसे तो चाय तो दिया ही नही गया।
आज वह दुनिया के परेशानियो दिक्कतो से धीरे धीरे दूर जा रही वह फिर से बच्चो जैसी कोमल, निष्कलंक, नम्र, नादान, खुश (चंलल) हो रही है उसे अब संसारके बातों से कुछ लेना देना नही।
उम्र के इस पड़ाव पर भी वो खुश है क्योकि उनकी सेवा करने मे परिवार के सभी सदस्य अपना योगदान निस्वार्थ देते है। ये देख कर मुझे बहुत खुशी होती है क्योकि ना जाने कितने को बुढ़ापे मे कोई सहारा नही मिलता उनके बेटे बेटियाँ ही उनकी सेवा नहीँ करते, इस मामले मे हमारा परिवार धन्य है जो मदद और सेवा के लिए हमेशा तैयार रहता है। अब आप कन्हीँ ये तो नहीँ सोच रहे है कि ये कौन है जो अपने ही परिवार का बड़ाई करने मे लगा है वो भी इतने साधारण शब्दों  में  तो में  बताना चाहूँगा कि मैं  नानी जी जैसी बुजुर्गो  को बहुत प्यार करता हूँ उनकी मदद के लिए हमेशा तैयार रहता हूँ।
मैं  स्वार्थ के कारण भी ऐसा करता हूँ क्योकि मैं  सोचता हूँ कि अगर आज मैं  इनकी सेवा करू तो मुझे देखकर मुझ से छोटे भाई -बहन बाल-बच्चे आने वाली पीढ़ी  भी इसी तरह हमारी सेवा करेगी 
तो मै और आप मिलकर चलिये एक नई शुरूआत करे जिसमे हम बड़े बुर्जुग को पुरी सहानुभूति से प्रेम मिलाप से अपनापन से उनकी मदद सेवा करें ।
धन्यवाद।

 

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