छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिला अंतर्गत ग्राम नरियरा में स्थापित किए जा रहे 36 सौ मेगावाट के केएसके महानदी पावर प्लांट का जैसे लगता है, विवादों से ही नाता है। अतिरिक्त मुआवजा दिए जाने की मांग को लेकर कुछ दिनों पहले हुई किसानों की भूख-हड़ताल तथा धरना-प्रदर्शन का विवाद जैसे-तैसे थम पाया था, उसके बाद अब रोगदा बांध को बेचे जाने के मामले विधानसभा में गूंज उठा। हालात यहां तक बन गए कि विपक्षी पार्टी के विधायकों को विधानसभा में हंगामा करना पड़ा और कार्रवाई तक स्थगित करनी पड़ी। अंततः पांच सदस्यीय समिति द्वारा जांच कराने सरकार को ऐलान करना पड़ा, तब कहीं जाकर सदन का गतिरोध खत्म हो सका। विधानसभा अध्यक्ष धरम लाल कौशिक ने अगले सत्र में समिति की रिपोर्ट अंतिम दिन पेष करने की बात कही है। यहां दिलचस्प बात यह है कि विधानसभा में रोगदा बांध बेचे जाने का मुद्दा उठने तथा पांच सदस्यीय समिति द्वारा जांच किए जाने की घोशणा के बाद, मामले में संलिप्त अफसरों के हाथ-पांव फूलने लगे हैं, क्योंकि इससे पहले एक और मामले में बनी समिति की जांच में कई अफसर दोषी करार दिए गए थे। वैसे देखा जाए तो केएसके महानदी पावर प्लांट, षुरूआत से ही किसी न किसी मामले को लेकर विवादों से घिरा हुआ है।
रोगदा बांध के बारे मंे बताया जाता है कि तरौद-नरियरा क्षेत्र में सिंचाई असुविधा के कारण, फसल अच्छी नहीं होने के कारण 1963 में जल संसाधन विभाग द्वारा रोगदा बांध का निर्माण कराया गया था। 131 एकड़ क्षेत्र में फैले बांध से करीब 5 सौ एकड़ खेतों में सिंचाई होती थी और किसानों के लिए यह बांध किसी वरदान से कम नहीं था। बांध की 70 एकड़ से अधिक जमीन किसानों की है और यह भी बात उल्लेखनीय है कि क्षेत्र के किसान लगान पटाते आ रहे हैं।
इधर नरियरा समेत क्षेत्र के आधा दर्जन गांवों की जमीन पर स्थापित किए जा रहे 36 सौ मेगावाट के पावर प्लांट को राज्य सरकार द्वारा रोगदा बांध सौंप दिया गया। इसके एवज में शासन को महज 7 करोड़ मुआवजा दिए जाने की बात सामने आई है। क्षेत्र के ग्रामीणों ने बांध को पाटकर पावर प्लांट बनाए जाने की ष्श्किायत जिला प्रशासन तथा राज्य शासन के अफसरों को की थी, लेकिन साल बीतते गए, परंतु किसी तरह की कार्रवाई नहीं हो सकी और देखते ही देखते बांध का अस्तित्व खत्म हो गया। ग्रामीणों ने बांध के पाटे जाने से आवागमन की समस्या से भी अवगत कराया था। उनका कहना था कि बांध के पार से क्षेत्र के नरियरा, रोगदा, मुरलीडीह समेत अन्य गांवों के लोगों का आवागमन होता था। अब बांध को पाटे जाने से तथा सड़क का हस्तांतरण हो जाने से क्षेत्र के ग्रामीणों को 10 किमी अतिरिक्त दूूरी तय करनी पड़ रही है। यहां यह भी गौर करने वाली बात है कि जब बांध को पावर प्लांट को कथित तौर पर बेचे जाने का मामला सामने आया तो ग्रामीणों ने षिकायत की, तब जल संसाधन विभाग के अफसरों ने राज्य षासन को पत्र भेजकर समस्या से अवगत कराया था, लेकिन उस दौरान क्यों कोई कार्रवाई नहीं हुई ? या फिर अफसरों ने किसी तरह कार्रवाई करना, मुनासिब नहीं समझा ? ऐसे तमाम सवाल हैं, जिसका जवाब, जब पांच सदस्यीय समिति की जांच रिपोर्ट आएगी तो खुलासा होगा। निष्चित ही यह इतना बड़ा मामला है कि लोगों की निगाह इस रिपोर्ट पर लगी रहेगी।
दूसरी ओर विपक्षी विधायकों ने विधानसभा में यह आरोप लगाया है कि अफसर, सरकार को भ्रामक जानकारी दे रहे हैं, जिसके चलते स्थिति स्पश्ट नहीं हो पा रही है। विपक्ष ने विधानसभा में बांध बेचने की अनुमति निरस्त करने तथा मामले में संलिप्त अफसरों को बर्खास्त करने की मांग की है। अब देखने वाली बात होगी कि जांच में किन बातों का खुलासा होगा और उसके बाद दोशी अफसरों पर किस तरह की कार्रवाई की जाएगी ?
क्या होगा कोसाबाड़ी का ?
पामगढ़ क्षेत्र के ग्राम डोंगाकोहरौद में केएसके महानदी पावर प्लांट द्वारा 300 एकड़ क्षेत्र में एक बांध बनाया जा रहा है। डोंगाकोहरौद में 11 बरस पहले 80 एकड़ क्षेत्र में कोसाबाड़ी बनाई गई थी। आज यहां हजारों की संख्या में साजा व अर्जुन के पेड़ लहलहा रहे हैं और कोसाबाड़ी से महिला समूह को प्रतिमाह 40 से 50 हजार रूपये की आमदनी हो रही है। जैसे ही समूह की महिलाओं को बांध निर्माण की जानकारी मिली, उन्होंने मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर समस्या से अवगत कराया और कोसाबाड़ी को किसी तरह बचाने की गुहार लगाई। हालांकि, इस मामले में अब तक कोई पहल नहीं हो सकी है और यही कारण है कि महिलाओं की चिंता बढ़ गई है। इधर बांध न बनाए जाने की शिकायत के बाद अफसर यह बातें कह रहे हैं कि डोंगाकोहरौद की कोसाबाड़ी को जिस जगह पर बननी चाहिए थी, वह नहीं बनी है। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर 11 बरस बाद इस बात का खुलासा क्यों किया जा रहा है ? इससे पहले अधिकारी-कर्मचारी क्यों चुप रहे ? कई बड़े अफसरों ने भी कोसाबाड़ी पहुंचकर मुआयना करते हुए तारीफ की थी, उस दौरान क्यों किसी ने इस बात से अवगत नहीं कराया कि कोसाबाड़ी, एलाट जगह के बजाय दूसरी जगह बन गई है ? अब जब मामला केएसके महानदी पावर प्लांट से जुड़ गया है तो तमाम तरह से लीपापोती का प्रयास किया जा रहा है। एक बात और है, जब कोसाबाड़ी, गलत जगह पर बनी बताया जा रहा है तो क्या उन अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाएगी, जिन्होंने ऐसा कृत्य किया ?
डोंगाकोहरौद की कोसाबाड़ी को प्रभावित न करने संबंधी रेषम विभाग के अधिकारियों ने भी राज्य शासन को पत्र लिखा है और कोसाबाड़ी से महिलाओं को होने वाली आय से अवगत कराया गया है। ऐसे में देखने वाली बात होगी कि किस तरह कोसाबाड़ी के अस्तित्व को बचाया जाएगा ? वैसे भी केन्द्र सरकार की योजना के तहत बनी कोसाबाड़ी को किसी भी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जा सकता, लेकिन प्रषासन द्वारा गलत जगह में कोसाबाड़ी बनने की बात कहकर मामले से पल्ला झाड़ने की कोषिष की जा रही है।
इस मामले में कलेक्टर ब्रजेष चंद्र मिश्र ने चर्चा में कहा कि कोसाबाड़ी में पेड़ की स्थिति के बारे में जानकारी ली जाएगी। यदि पौधे बड़े हो गए हैं तो कोसाबाड़ी को बचाने का हर संभव प्रयास किया जाएगा।
सड़कें व नहर भी चपेट में
डोंगाकोहरौद में बनने वाले बांध के कारण दो पीएमजीएसवाई की सड़कें तथा एक माइनर नहर प्रभावित हो रही हैं। साथ कोसाबाड़ी के अस्तित्व पर भी संकट के बादल गहराने लगे हैं। ग्रामीणों ने इसकी षिकायत दर्ज कराई है और कहा गया है कि इससे आवागमन की समस्या होगी। नहर प्रभावित होने से क्षेत्र के कई गांवों में सिंचाई की विकट स्थिति उत्पन्न होगी। किसानों को भी इस बात की चिंता सताने लगी है कि उनकी फसलों में सिंचाई कैसे होगी ? इधर मामले में पामगढ़ के एसडीएम बी.सी. एक्का का कहना है कि ग्रामीणों की शिकायत मिली है। मामले में जांच की जा रही है और मौका-मुआयना से ही स्थिति स्पश्ट हो सकती है। मामले में नियमानुसार कार्रवाई व पहल की जाएगी।
औने-पौने दाम पर जमीन खरीदी का आरोप
नरियरा समेत आधा दर्जन क्षेत्र में स्थापित किए जा रहे केएसके महानदी पावर प्लांट प्रबंधन पर किसानों की जमीन औने-पौने दाम में खरीदी किए जाने का आरोप है। इस बात को लेकर किसानों ने पिछले दिनों डेढ़ माह से अधिक समय तक भूख हड़ताल व धरना-प्रदर्शन किया था। हालांकि बाद में करीब 17 लाख रूपये प्रति एकड़ मुआवजा देने, समझौता किया गया। अभी भी किसानों की समस्या कम नहीं हुई है और इस तरह की आग धधक रही है। पिछले बरस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कार्यकर्ताओं ने आदिवासियों की जमीन औने-पौने दाम पर खरीदे जाने को लेकर आंदोलन भी किया था, लेकिन इस मामले में न तो प्रशासन ने सुध ली और न ही राज्य शासन ने। इन परिस्थितियों में किसानों के समक्ष मन मसोसने के सिवाय कुछ नहीं बचा।
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