बहर-
212/212/212/212
हम है राही मुहब्बत बताया न कर
प्यार हैरत सें ऐसे जताया न कर
आँख बह जाने दे देख बस तू ह्रदय
भीग जाये जो दामन सुखाया न कर
जिंदगी की राह पर साथ आ हमसफ़र
पास रह के तू दूरी बनाया न कर
क़त्ल करना है तो क़त्ल कर दे मुझे
धार चाकू दिखा कर डराया न कर
जानता हूँ तू वैद्यो के घर से जुडी
दोस्ती में मेरी जखम खाया न कर
प्यार मजहब कभी भी नही देखता
यार मजहब की भाषा सिखाया न कर
सोंच मत हाँथ दे बे फिकर हम सफ़र
लुत्फ़ तू जिंदगी का घटाया न कर
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आदरनीय आमोद भाई . ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा हुआ है , आपको हार्दिक बधाइयाँ -
1- मतले मे आपने , बताया और जताया ले कर काफिया अताया तय कर लिया है , और बाक़ी शे र मे आपने केवल आया निभाया है , तो अभी फिल हाल आपके बाक़ी शे र काफिया के लिहाज़ से खारिज हो रहे हैं ।
2- जिंदगी की राह पर साथ आ हमसफ़र -- ये मिसरा बे बहर है , देख लीजिये गा
3- ज़खम को ज़ख्म कर लीजियेगा , नही तो ये मिसरा भी बेबहर लगेगा ।
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