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दिनेश कुमार's Discussions (883)

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"बहुत उम्दा आदरणीय, मतला ता आखिर बेहतरीन शेर पिरोये हैं आपने ग़ज़ल की माला में। वाह वाह…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"मोहतरम जनाब अशफ़ाक़ गुलशन साहिब। बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिल से वाह वाह वाह। चौथे मिसरे में…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"वाह वाह वाह। क्या ग़ज़ल हुई है!! बदन पे अपने अज़ाब-ओ-सवाब पहने हुए मिलेंगे हश्र में सा…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"नमस्कार आदरणीय समर साहब। खिलता" की जगह "खिलते" के प्रयोग की आपकी सलाह बिलकुल दुरुस्त…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"नमस्कार आदरणीय समर साहब। खिलता" की जगह "खिलते" के प्रयोग की आपकी सलाह बिलकुल दुरुस्त…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"बढ़िया ग़ज़ल के लिए दिली दाद पेश करता हूँ आ राजेश साहिबा जी। वाह वाह"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
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"बढ़िया ग़ज़ल के लिए दिली दाद पेश करता हूँ आ राजेश साहिबा जी। वाह वाह"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"अँधेरे क्यों न छुपायेंगे अपना मुँह आखि़र निकलने ही को है दिन आफ़ताब पहने हुए । वाह वा…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
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"अँधेरे क्यों न छुपायेंगे अपना मुँह आखि़र निकलने ही को है दिन आफ़ताब पहने हुए । वाह वा…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

"अच्छी ग़ज़ल के लिए दिल से दाद आ. सतविंदर भाई। वाह वाह चौथे और 11वें मिसरे की बह्र शायद…"

दिनेश कुमार replied Oct 29, 2016 to "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-76

383 Oct 29, 2016
Reply by Samar kabeer

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