( देश के जवानों द्वारा राखी के उपहार स्वरुप दिए गए वचन )
मुल्क अपना सदा यूँ सलामत रहे I
आबरू और अमन की हिफाज़त रहे I
बाँध दो बाजुओं पे बहन हौसला I
देश पर मरने की दिल में हसरत रहे I
ऐ हिमालय ! तेरा सर झुकेगा नहीं, तेरी ललकार पर सर कटा देंगे हम I
जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I
देश भगवान है - देश मजहब मेरा , हम करेंगे वतन की इबादत सदा I
हम जियेंगे -मरेंगे वतन के लिए, याद रखेंगे राहे शहादत सदा I
हिंद की शान में मरना आता हमें, वक़्त आने पे ये फ़न दिखा देंगे हम I
जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I
जाति, भाषा - धरम हो भले ही जुदा, पर अटल एकता एक चट्टान है I
सिक्ख -ईसाई हो हिन्दू - मुसलमां कोई, हिंदी हैं हम - हमारी ये पहचान है I
हिंद के दुश्मनों सुन लो एलान ये, तेरा नामों -निशां तक मिटा देंगे हम I
जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I
टुकड़े - टुकड़े हो जाए हमारा ये तन, पर वतन टुकड़े हो - ये गंवारा नहीं I
अपनी धरती है लाखों - करोड़ों की माँ, जब तलक हम हैं - ये बेसहारा नहीं I
मापतपुरी वतन दिल औ ईमान है, इसकी रक्षा में तन - मन लुटा देंगे हम I
जब तलक दम में दम हमको तेरी कसम, देश पर हँसके जां भी लुटा देंगे हम I
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(श्री मुईन शम्सी जी)
कहने को आज़ाद हैं हम, पर यह कैसी आज़ादी है
चरम पे भ्रष्टाचार है पहुंचा, हिंसा है, बर्बादी है
जनसाधारण की ख़ातिर जो बुनी कभी थी गांधी ने
महंगी होकर धनिकों के तन पर वो सजती खादी है
सींचा था जिस चमन को हिंदू-मुस्लिम ने अपने ख़ूं से
द्वेष के सौदागरों ने उसमें ज़हर की बेल उगा दी है
बात-बात पे लाइन है लगती, या धक्का-मुक्की होती
जहां भी देखो वहां भीड़ है, सवा अरब आबादी है
क्या कारण है, क्यों वो हमको सदा छेड़ता रहता है
पैंसठ और इकहत्तर में जिसको औक़ात बता दी है
लक्ष्मी, लता, रज़िया, इन्दिरा और सरोजिनी के भारत में
गर्भ में कन्या मारी जाती, यह हरकत जल्लादी है
नोन-तेल-लकड़ी की क़ीमत ’शमसी’ बढ़ती ही जाती
कमर-तोड़ महंगाई ने सच कहूं क़यामत ढा दी है ।
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(श्री इमरान खान जी)
(१)
योमे आज़ादी हमें,
ये हसीं तोहफा मिला,
आके सरहद पर गले, प्यार बहनों का मिला।
हैं घरों से दूरियाँ,
पास हैं मजबूरियाँ,
कर रहे संगीन से,
कशमकश अपनी बयाँ।
ज़ख़्मे दिल पर अब हमें,
मरहमो फाहा मिला,
आके सरहद पर गले,
प्यार बहनों का मिला।
हाथ पे राखी बँधी,
घर मुझे आया नज़र,
जोश दोबाला हुआ,
होवे दुश्मन बाख़बर।
नज़रें उठें जो मुल्क पर,
धूल में दूँगा मिला,
आके सरहद पर गले,
प्यार बहनों का मिला।
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(२)
मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,
सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।
पाया तू अवकाश नहीं, मैं लेशमात्र न घबराई,
हाथ न रह जाये सूना, मैं सम्मुख स्वयं राखी लाई।
भाई तेरे ही कारण, करें हैं सब मेरा सम्मान,
तू मेरे दिल की धड़कन, तुझपर मुझको है अभिमान,
मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,
सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।
बाबा सीना तानें हैं, तेरा जब कोई जिक्र करे,
तेरी बातें कर करके, अपनी तो हर रात कटे।
कैसे तू चलना सीखा, सेना का कब हुआ जवान,
तेरे गोलू मोलू से, माँ तेरा करती गुणगान।
मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,
सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।
भाभी की क्या बात करूँ, देवी की तरह रहती हैं,
तेरे विरह की अग्नि को, अधिक वही तो सहती हैं।
दिल में होती हो पीड़ा होठों पर रखती मुस्कान,
ओढ़ें चादर संयम की, सबका रखती पूरा ध्यान।
मेरा भय्या वीर जवान, साहस ही उसकी पहचान,
सीमाओं का रखवाला, उसकी फौलादी है शान।
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(श्री अम्बरीष श्रीवास्तव जी)
(१)
भाई सरहद पर बसे, छूटा है घर-द्वार,
बहनें धर्म निभा रहीं, राखी का त्यौहार.
राखी का त्यौहार, वचन हम देते बहना,
सदा रखेंगें लाज, झुके हैं सादर नयना.
अम्बरीष, है धन्य, बहन सरहद पर आई,
अर्पित उस पर प्राण, यहाँ कर देते भाई..
(२)
दुखी सरहद पे भाई हैं बहन मजबूर है घर में,
नहीं त्यौहार में छुट्टी सगे सब दूर हैं घर में.
धरम की आ गयीं बहनें जो हमको बाँधने राखी-
खुशी आँखों से बहती है, खुदा का नूर है घर में..
(३)
हम बहनें हिंदुस्तान की हैं भारत हमको जां से प्यारा,
भाई सब सरहद पर अपने, अपनापन उनमें है सारा.
जब राखी बाँधें हम उनको, दुःख दर्द देश का दूर तभी-
यह बंधन ही अवलंबन है रिपु का कर दे वारा-न्यारा..
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(श्रीमती शन्नो अग्रवाल जी)
(१)
देश की लाज बचाना
निरख रही तुम्हें भारत माता है फिर से आस लगाये
हम सब बहनें मिलकर तुमको तिलक लगाने आये l
यहाँ देने आये आशीष तुम्हें भारत की आन बचाओ
सीमा पर लड़ने आये हो अब ये राखी हमसे बंधवाओ l
दुश्मन के आगे मस्तक अपना कभी न झुकने देना
गंगा-यमुना के पवित्र आँचल पर दाग न लगने देना l
निकल रही हैं रोम-रोम से हम सबकी ही आज दुआयें
रक्षा करती रहे ये राखी रखकर तुमसे सब दूर बलायें l
घर वापस आना सभी सुरक्षित लेकर विजय-पताका
जीत की हो मलयज सुगंध और उर में आनंद समाता ल
(२)
रक्षा-बंधन वीरों का
इस देश की हम शान हैं
इस पर ही हम कुर्बान हैं l
हमको न है कोई भरम
इंसानियत बस है धरम
इस देश के सपूत हम
करेंगे नेक हम करम l
इस देश की हम शान हैं
इस पर ही हम कुर्बान हैं l
राखी की रखते आन हम
बहनों का हैं अभिमान हम
खतरों से ना अनजान हम
इस देश पर बलिदान हम l
इस देश की हम शान हैं
इस पर ही हम कुर्बान हैं l
भारत के हैं चिराग हम
इस देश की आवाज़ हम
दुश्मन को दें जबाब हम
हम वीर हैं जांबाज हम l
इस देश की हम शान हैं
इस पर ही हम कुर्बान हैं l
सदा सीमा पे कर्मशील हम
रक्षा की बनें कील हम
हर अन्याय पे दलील हम
हैं न्याय की तामील हम l
इस देश की हम शान हैं
इस पर ही हम कुर्बान हैं l
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(डॉ हरदीप कौर संधू जी)
..............ग़ज़ल ................
देखिये अब धरा पे कैसा समां है छा गया
निज देश का गौरव बना ये पर्व है आ गया
एक ओर है कांधा वही भार जिसपे देश का
सीना है फौलाद का जो हर रण को भा गया
देख रहा अब देश जिनको स्नेह से है यहाँ
पाकर भगिनों की दृष्टि वो नूर रंगत पा गया
भरकर वो प्रेमभाव बढ रही हैं यूँ कलाई
कह रहीं ले बाँध राखी मन तो हुलसा गया
सज रही है वर्दी भईया देख तेरे तन पे
रंग-बिरंगी राखिओं से चार चाँद लगा गया
मान है तुम सब से जैसे निज देश औ धरा का
लाज रखना बस हमेशा पल का जो चला गया
जलती रहे ये रोशनी बढता चले ये पल
रुके न पग ये तेरे भईया जो तू बढ़ा गया
तोड़ दें हम जाति-बंधनआज बंधन बाँध दे
दिखा दें वो स्नेह जो हर दिल में समा गया
बाँध और बंधवा के राखी ले रक्षा की सपथ
'मान' तू 'आन' हम बहन हैं "रवि" से रचा गया
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(२).
गीत....................
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(श्री गणेश बागी जी)रक्षाबंधन
प्यार का
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(श्री आशुतोष पाण्डेय जी)
(१)
कहीं दूर कोई शोर है
शायद कोई सिसकियाँ भर रो रहा है
एक निस्तब्ध सन्नाटे में
ये शोर कहीं कुछ कह रहा है
बहुत खोजा, ना मिला
आखिर कौन क्यों रो रहा है?
कोई बंदिशों में है या फिर
खून के आंसू रो रहा है
दुनिया तो है चल निकली
लेकिन कहीं कुछ खो रहा है
एक दिन जब
इस निस्तब्ध सन्नाटे को चीर
एक आवाज आयी
अब जी नहीं सकता
तो देखा सैनिक की वर्दी में
एक जवान खून से
लथपथ गिरा है
पूछा क्या हुआ?
बोला गोली खाई
अफ़सोस नहीं
लेकिन लाज ना
रख सका राखी का
किस मुह से लौट कर जाऊं
और बहिना को ये बताऊँ
मेरे देश को
देश के रहनुमाओं
ने बेच डाला.
मैं देखता रहा
इसकी आबरू को लुटते
दुश्मनों को तो भगा दिया
लेकिन लड़ ना सका
देश के गद्दारों से
मैंने बिकते देखा है
अस्मत को देश की
जो बनते हैं भाग्य विधाता
उनको देश की सीमाओं
को बेचते देखा है
गोली खाई न जाने कितनों ने
मैंने तो इन्हें कफ़न और कौफीन
का भी सौदा करते देखा है
फिर भी चला ना
पाया गोली इन पर ये दर्द है
जब राखी बंधवाई थी
तो कहा था
देश को आजाद कर लौटूंगा
नहीं लौटा तो अफ़सोस ना करना
मर भी जाऊं ये मत कहना
मर गया, कह देना
थोड़ा मिट्टी का
कर्ज अदा कर गया
लेकिन आज जब
कुछ नहीं कर पाया
एक भी गद्दार को
मौत की नींद नहीं
सुला पाया.
किस मुंह से लौट कर जाऊं
क्या जाकर ये बताऊँ कि
अपने ही देश के सौदागरों
के हाथ देश नीलाम कर आया
मत कहना मेरे
होने वाले बच्चे को भी
कि उसका बाप मजबूर था
नहीं निभा पाया फ़र्ज राखी का
और खुद के होने का
इन शब्दों के साथ
वो सन्नाटा
और गहरा हो गया
वो सिपाही सदा के लिए सो गया
एक सवाल हमारे लिए
छोड़ गया
क्या निभाते हैं हम
मर्यादा राखी की?
हर बार कोई सिपाही
इतना मजबूर
क्यों होता है?
क्यों होता है?
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(२)
ये सूनी कलाई ले कहाँ जाऊं
***************
ये सूनी कलाई
ले कहाँ जाऊं,
हिमाल के भाल
पर संकट आया है
ये जिंदगानी
ले कहाँ जाऊं .
कौशल नहीं है
रण का,
गुलामी में
माँ को छोड़
कहाँ जाऊं.
*********
बिना आजादी
न लौट के आऊं
आज पुकार
आयी है.
माँ ने आवाज
लगाई है
एक सर है
जो दे दूंगा.
अगर गुलामी में
बच भी गया
क्या मुहं दिखाऊं?
*********
कसम है ना
ये धागा कच्चा
नहीं होगा.
तेरा भाई
गोली सीने
में खायेगा
खुद मर जाए चाहे
हिमाल का भाल
ना झुकाएगा
कसम है
ये धागा कच्चा
तो नहीं होगा?
**********
अब दे दे
तू आशीष
की शीश दे सकूं,
जान ले दुश्मन की
दूर दुश्मन को
दर से कर सकूं.
जीत कर आऊं
या शहीद कहलाऊं.
बस तू ये बता
ये सूनी कलाई
ले कहाँ जाऊं.
********************************************
(श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ जी)
(१)
रखिया के लाज रखिह भाई हो सिपहिया ,
रक्षा की बंधन में
बांध रही है बहना ।
धागो की डोर में लिपटी
प्यार की अनुपम गहना।
फौजी भी फर्ज निभाये,
भाई के संग बहना ।
देश की रीत-प्रीत में
हर घडी हँसते रहना।
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(डॉ बृजेश त्रिपाठी जी)
वीर जवानों के हाथों में बहनों प्यार से बांधो राखी
देख रही है बड़े लाड़ से भारत माता बन कर साखी
मुंह मीठा करवा दे ना तू आज जवानों का ऐ बहना
चलें ज़रा ये जोश में आकर सारे देश का है ये कहना
घर को जाने कहाँ छोड़कर निकल पड़े ये वीर जवान
माता इनकी अब भारत माँ, घर है पूरा हिंदुस्तान
बहन खोज लेतीं खुद इनको, पूरा देश बना परिवार
राखी नहीं ये बांध रहीं हैं देखो अपने मन का प्यार
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(श्री संजय मिश्र हबीब जी)
(१)
भाई यह नेह का बंधन है
मेरे उर का स्पंदन है
गौरव स्थापित कर माँ का
तू आया है, अभिनन्दन है.
तेरे कांधों यह बोझ डला,
तेरे पैरों यह मुल्क चला,
तू है करके सोते हैं सब,
तू है तो दूर समस्त बला
तू मुस्तकबिल देश का है
तेरा हम करते वंदन हैं.
मैं जानूं. नेह का बंधन है
महके जैसे कि चन्दन है
प्यारी बहना मैं आज कहूँ
मेरा भी यह स्पंदन है
बहना तेरा प्यारा मुखडा,
मानो चन्दा का है टुकड़ा
हर कठिनाई में संबल है
यह दूर करे सारा दुखडा
तेरी भोली सी यही हंसी
हर बियाबान में नंदन है.
(२)
मेरे भैया
राखी का वचन निभाना
कच्चे धागे मे बाँध रही हूँ
अपनी हर आस साध रही हूँ
देश की आन सौंप रही हूँ
आज तुझे है फ़र्ज़ निभाना
बहन की राखी का मान रखना
मेरे सर को ना झुकने देना
आज वक्त ये आया है
माँ ने तुझे बुलाया है
अपनी जान गंवा देना
मगर माँ की आन बचा लेना
मेरी राखी का कर्ज़ अदा कर देना
मगर भैया मेरे
तू ना कभी हिमालय का
सिर झुकने देना
मेरी हर राखी का बस
मोल यही है
मेरे भावो की बस
उपज यही है
मै भी दुआ करूँगी
उम्र मेरी भी तुझे लग जाये
तू सलामत रह जाये
और देश की आन भी बच जाये
तेरा सिर भी फ़क्र से उठ जाये
और मै भी पुकार उठूँ
आज मेरे भाई ने
राखी का मोल अदा किया
देश को दुल्हन बना दिया
बहना
सिर ना तेरा झुकने दूँगा
राखी के हर धागे का
मोल अदा करूँगा
माँ की आन की खातिर
खुद को भी कुर्बान करूँगा
पर एक वचन मै भी चाहता हूँ
गर शहीद मै हो जाऊँ
तू ना आँसू बहा देना
सिर्फ़ इतना तू कर देना
झण्डे का सिर ना झुकने देना
इक भाइयों की फ़ौज बना देना
हर भाई मे तू मुझे ही देखना
पर कलाई ना सूनी रहने देना
उनमे भी यही जज़्बा फ़ूँक देना
कुछ ऐसे तू भी मेरी बहना
कुछ वतन का फ़र्ज़ निभा देना
कुछ वतन का फ़र्ज़ निभा देना
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(श्री बृज भूषण चौबे जी)
सर पे टोपी बदन पर वर्दी
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बहुत खूब वंदना जी !
बहुत कोशिश की कि लिख पाऊँ मै भी एक कविता मगर आजकल माता-पिता घर आये हुए हैं उनके पास रहने का लोभ कम नही कर पाई। कुछ भी नही लिख पाई बहुत दिनों से । आज एक साथ एक ही विषय पर इतनी सारी कवितायें देख कर बहुत अच्छा लग रहा है। बहुत ही खूबसूरत मंच है यह। सभी लेखकों को बहुत-बहुत बधाई।
सुनीता जी आपका स्वागत है !
There is always a next time - सुनीता जी ! अगले आयोजनों में आपकी रचनायों का इंतज़ार रहेगा !
किसे पता था इस जीवन में ऐसा भी दिन आयेगा,
मेरे जैसा अज्ञानी भी नाम यहाँ लिखवायेगा।
एक समय था अंग्रेज़ी बाबू को ही ज्ञाता कहते थे,
जो यहां न हिंदी लिख पाए वो अनपढ़ कहलायेगा।
ये आपकी लगन और मेहनत है इमरान भाई जिसके लिए दोबारा आपको मुबारकबाद देता हूँ !
yograj bhai ...bahut sundar....sari rachnayen ek jagah par sangraheet dekh kar man khush ho gaya ...badhai bhai
धन्यवाद डॉ त्रिपाठी जी !
सारी कवितायें... लगातार...
वाह पढ़कर वही आनंद दोबारा मिला...
एक खुबसूरत संग्रह बन गया है योगराज भईया यह...
आपका सादर आभार और हार्दिक बधाई....
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2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
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