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सदस्य टीम प्रबंधन दिल्ली के गुलाबी मौसम में सम्मिलन सह काव्य-गोष्ठीओपेन बुक्स ऑनलाइन (ओबीओ) के प्रबन्धन द्वारा इसके प्रादुर्भाव काल से ही इसके उद्येश्यों के मुख्य विन्दुओं को सदा से मुखर रखा गया है. साहित्य… Started by Saurabh PandeyLatest Reply |
सदस्य टीम प्रबंधन प्रयाग-क्षेत्र में ओबीओ के तत्त्वावधान में काव्य-गोष्ठी का आयोजनआज की तारीख में नेट पर समाज के हर क्षेत्र में ऐसा बहुत कुछ सकारात्मक हो रहा है जो अधिक नहीं मात्र दसेक वर्ष पूर्व इस तरह की गतिविधियों के ब… Started by Saurabh PandeyLatest Reply |
सदस्य टीम प्रबंधन वाराणसी में ओबीओ सदस्यों की काव्य-गोष्ठी सम्पन्नदिनांक 15 नवम्बर 2011 की संध्या इस मायने में यादगार हो गयी कि वाराणसी के काशी विद्यापीठ के निकट स्थित होटल जाह्नवी इण्टनेशनल में ओबीओ के सद… Started by Saurabh PandeyLatest Reply |
Discussions | Replies | Latest Activity |
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जातीय व्यवस्था की हिलती नींव का दस्तावेज है उपन्यास ‘सुलगते ज्वालामुखी ’:: डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव‘सुलगते ज्वालामुखी’ कवयित्री एवं कथाकार डॉ. अर्चना प्रकाश जी का नवीनतम लघु उपन्यास है, जिसका कथानक मात्र 110 पृष्ठों में सिमटा हुआ है I मैं… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Jan 7, 2021 |
पूर्वराग के रंग कच्चे भी और पक्के भी: डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तवमानव के रूप में हम सभी ने अपने अंतस में शृंगार रस के संयोग और वियोग दोनों स्वरूपों का अनुभव अवश्य किया होगा I इस रस का स्थाई भाव ‘रति’ है I… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Jun 3, 2020 |
अभिसार रति नहीं एक जोखिम या खतरा है //डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तवभिसार का अर्थ लोग प्रायशः प्रणय या काम-क्रीडा समझते हैं I यह सही अर्थ नहीं है I सही अर्थ है अभिसरण करना अर्थत गमन करना /जाना I अर्थ रूढ़ि मे… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | May 23, 2020 |
ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य संध्या माह अप्रैल 2020दिनांक 19.04.2020, रविवार को ओबीओ लखनऊ चैप्टर की साहित्य-संध्या माह अप्रैल 2020 का ऑन लाइन आयोजन हुआ I इसके प्रथम चरण में ओज और आवेश के यु… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | May 20, 2020 |
ओपन बुक्स ऑनलाइन की मासिक गोष्ठी माह मार्च 2010 में आलोक रावत ‘आहत लखनवी ‘ की दो गजलों पर परिचर्चा :: प्रस्तुति- डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तवगजल-एक दर्द मेरा हम क़दम औ हमसफ़र हो जाये तो, क्या करूं मॉं की दुआ भी बे असर हो जाये तो? II1II क्या गिले-शिक़वे करूं तुझसे मेरे मालिक़ बता बस ज़… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Apr 15, 2020 |
पं० चंद्रशेखर पाण्डेय ’चंद्रमणि’ जी की नाट्यधर्मिता :: एक तात्विक विवेचन डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तवभारत में नाटक की परंपरा अत्यधिक प्राचीन है I यद्यपि वर्तमान में उपलब्ध भरत मुनि का नाटयशास्त्र ही सबसे पुराना है जो पाश्चात्य विद्वानों… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Apr 18, 2019 |
मध्यकालीन हिदी साहित्य में होली का कोलाज - डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तवहिन्दी साहित्य में काल विभाजन के अनुसार आदिकाल और आधुनिक काल के बीच का समय मध्ययुग (1318ई०-1843ई०) कहलाता है I इस प्रकार भक्ति एवं रीतिकाल… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Mar 21, 2019 |
लेखन में आत्ममुग्धता की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे-एक परिचर्चा /// प्रस्तुति – डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तवभारतीय संस्कृति में विनम्रता का महत्वपूर्ण स्थान रहा है I अपनी तारीफ सुनकर आज भी विनम्र लोग शील सँकोच से सिकुड़ जाते हैं I पर पाश्चात्य स… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
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Feb 9, 2019 Reply by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
बदलते रहे है हिंदी कविता में संयोग शृंगार के प्रतिमान /// डॉ.गोपाल नारायण श्रीवास्तवकाव्य-शास्त्र के अनुसार वियोग शृंगार के चार प्रकार हैं –पूर्वराग, मान, प्रवास और करुण I इसकी दस दशायें होती हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात यह ह… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
0 | Feb 6, 2019 |
मुल्ला दाउद के ‘चंदायन’ से मुतासिर रहे है जायसी -डॉ, गोपाल नारायन श्रीवास्तव‘पद्मावत’ मूवी के आने पर आज का आत्ममुग्ध भारतीय यह जान सका कि मलिक मुहम्मद ‘जायसी’ नाम का भी कोई कवि भी था, जिसने अवधी लोक-भाषा में ‘पद्माव… Started by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
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Jan 8, 2019 Reply by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव |
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