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ओबीओ पर 'अप्रकाशित' वाला नियम उचित है किंतु मेरे विचार से कोपयोगी सामग्री को इसमें कुछ छूट मिलनी चाहिए। जो सामग्री हमारे साहित्‍य की गौरव-गरिमा में अभिवृद्धि करने के उद्देश्‍य से तैयार की गई हो उसकी पाठकों में अधिक से अधिक पहुंच संभव बनाने में सबकी भूमिका है। हमारी यानि ओबीओ मंच की। यहां हमारे मित्रों को भी ऐसी सामग्री सहजता से मिलनी ही चाहिए। प्रसंगवश यहां उल्‍लेख आवश्‍यक है कि मैंने महाकवि जयशंकर प्रसाद के जीवन-युग पर आधारित अपने आगामी उपन्‍यास 'कंथा' का एक अंश अपने ब्‍लॉग पर पोस्‍ट करने का प्रयास किया जिसे ओबीओ एडमिन ने नियमानुसार स्‍वीकार नहीं किया। एडमिन का निर्णय शत-प्रतिश्‍ात नियमानुकूल, मान्‍य-सम्‍मान्‍य और स्‍वीकार्य है। इस संदर्भ में इन पंक्तियों के लेखक का सिर्फ यही विनम्र निवेदन है कि बेशक यह सामग्री वेब पर अन्‍यत्र पहले से उपलब्‍ध है किंतु इसे इस दृष्टिकोण के तहत यहां पोस्‍ट किया गया था कि हमारे ओबीओ-साथियों को भी अपने साहित्‍य की महानतम विभूतियों के जीवन-प्रसंगों से अवगत होने का अवसर मिले। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वह समय है जब हमारी नई पीढि़यों में अपने अतीत के गौरव-प्रसंगों-संदर्भों के प्रति जिज्ञासा तो कम नहीं किंतु एक खास तरह की अफरातफरी व्‍याप्‍त है। हमें इस सदर्भ में समुचित पहल करनी ही चाहिए...

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सुधिजनो के बीच मैं अपना विचार रख रहा हूँ (क्षमा सहित ) अगर हम अपनी प्रकशित रचनाए ही पोस्ट करते रहेंगे तो यहाँ पर पुरानी रचनाओं कि बाढ़ सी आ जायेगी और नई रचनाओं को पनपने का मौका ही नहीं मिलेगा | मेरे ख्याल से नियमों में कोई बदलाव नहीं आना चाहिए |

आप सभी का स्वागत है | मेरे विचार में ओ बी ओ के नियमों में संशोधन कराने के बजाय हमें सर्वसम्मति से बने हुए नियमों का पालन करते हुए रचनाधर्मिता को प्रोत्साहन देना चाहिए !  जय ओ बी ओ !

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Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
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