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आपकी चौपाइयाँ शिल्प की दृष्टि से ठीक हैं. भाषा की दृष्टि से यत्किंचित परिवर्तन किये हैं. विचार कर जो ठीक लागे उसे रखिए.
समाचार यह फैला ऐसे । आग लगी जंगल में जैसे॥
विश्वरूप तक बात गई जब । परम सुखी हो आये वे तब॥ गयी (पु. गया, स्त्री. गये, बहुवचन)
उनकी कन्याएँ थीं सुन्दर । खोज रहे थे कब से वे वर॥
वर सुयोग्य यह बात जानकर । आये देने निज दुहिता कर॥ दुहिता-कर
रिद्धि, सिद्धि कन्याएँ दो थीं । दोनों ही अति रूपवती थीं॥ (सिर्फ रूपवती या गुणवती भी?)
विश्वरूप तब प्रभु से बोले । जय हो महादेव बम भोले॥
पुत्र आपके अति सुयोग्य हैं । कन्याएँ भी परम योग्य हैं॥ मम
रिद्धि के लिए गणपति का कर । और सिद्धि को कार्तिकेय वर॥ (लिया, लिये)
देकर प्रभु अब तार दीजिए । मुझ पर यह उपकार कीजिए॥
मैंने यह संकल्प लिया है । दुहिताओं को वचन दिया है॥
तव विवाह शिव-सुत से होगा । वचन नहीं यह मिथ्या होगा॥
बोले प्रभु विचार उत्तम है । पुत्र हमारे दोनों सम हैं॥
कार्तिकेय हैं विश्व भ्रमण पर । लौटेगें वो जल्दी ही पर॥ वह
जैसे ही वो आ जायेंगे । हम विवाह यह कर पायेंगे॥ द्वय विवाह हम कर पायेंगे.
कार्तिकेय अवनी का चक्कर । लौटे कुछ ही दिन में लेकर॥
स्नान किया औ’ बोले आकर । जय हो अम्बे जय शिवशंकर॥
शर्त कठिन थी, नहीं असंभव । प्रभु की कृपा करे सब संभव॥
यह सुन बोले महाकाल तब । पुत्र नहीं कुछ हो सकता अब॥
शर्त विजेता गणपति ही हैं । योग्य प्रथम परिणय के भी हैं॥
हम बस सकते हैं इतना कर । दोनों सँग-सँग बन जाओ वर॥
पर पहले गणपति के फेरे । उसके बाद तुम्हारे फेरे॥
यह सुन कार्तिकेय थे चिंतित । खिन्नमना औ’ थे चंचलचित॥
चूहे ने है मोर हराया । ऐसा संभव क्यों हो पाया?
फिर जब बैठे ध्यान लगाया । सब आँखों के आगे आया॥
बोले महादेव, हे सुत, तब । याद करो मेरी वाणी अब॥
मैंने बोला गुनना सुनकर । तुम भागे जल्दी में आकर॥
बिना गुने तुम दौड़ पड़े थे । गणपति फिर भी यहीं खड़े थे॥
बात गुनी तब यह था जाना । मूषक वाहन उनका माना॥
पर यह मूषक की न परिक्षा । ऐसी नहीं हमारी इच्छा॥ यह वाहन की थी न परीक्षा
है विवाह इक जिम्मेदारी । मूर्ति भोग की ना है नारी॥ (इस कथन का यहाँ कोई प्रासंगिकता नहीं है)
तन से दोनों हुए युवा हैं । मगर बुद्धि से कौन युवा है॥
यही जाँच करनी थी हमको । और सिखाना था यह तुमको॥
तन-मन-बुद्धि और प्राणांतर । से जब तक न युवा नारी-नर॥ के प्राण की भी विविध अवस्थाएं बाल, युवा आदि होती है?
तब तक है विवाह अत्यनुचित । नहीं बालक्रीड़ा विवाह नित॥
विश्व भ्रमण कर हो तुम आये । तरह तरह के अनुभव पाये॥
इसीलिए तुम भी सुयोग्य अब । जाने यह अवसर आये कब॥
तैयारी विवाह की कर लो । मन में अपने खुशियाँ भर लो॥
बोले कार्तिकेय तब माता । बात उचित है गणपति भ्राता॥
बुद्धिमान हैं ज्यादा मुझसे । पर मैं भी अग्रज हूँ उनसे॥ लेकिन मैं हूँ अग्रज उनसे, भी का उपयोग भ्रम उपजता है कि कोई अन्य भी अग्रज है.
प्रथम प्राणि वह ग्रहण करेंगे । तो मेरा अपमान करेंगे॥ पाणि = हाथ, प्राणी = जीव
इसीलिए यह लूँगा प्रण मैं । सदा कुमार रहूँगा अब मैं॥ इसीलिये प्राण लेता हूँ मैं.
समाचार जैसे ही पायो । विश्वरूप चिंतित हो आयो॥ पाया / आया
बोल्यो आकर जय शिव-काली । मेरा वचन जा रहा खाली॥ बोले
दुहिताओं को वचन दिया था । मान इन्हें दामाद लिया था॥
अब क्या होगा हे शिव शंकर । सिद्धि मानती शिवसुत को वर॥ दोनों ही चाहें शिव-सुत वर
समाचार यदि उसने पाया । तो मृत्यू को गले लगाया ॥ नहीं अन्य को वरण करेंगी । हो हताश निज प्राण तजेंगी ॥
कुछ करके हे भोले शंकर । प्राण बचाएँ पुत्री का हर॥ करिए / प्राण बचें दुहिताओं के हर.
तभी सोचकर क्षण भर भोले । एक रास्ता तो है बोले॥ ध्यानमग्न हो शंकर भोले, है उपाय यह केवल बोले
दोनों का विवाह शिवसुत से । होगा, पर केवल इक सुत से॥ दोनों ही शिव-सुत पाएंगी / गणपति से ब्याही जायेंगी.
गणपति पाणिग्रहण करेंगे । दोनों की ही माँग भरेंगे॥
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