ओपेन बुक्स ऑनलाईन – लखनऊ चैप्टर की पाँचवी जयंती समारोह पर एक संक्षिप्त प्रतिवेदन
समय की पगडंडी पर कभी छोटे, कभी लंबे डग भरता हुआ ओबीओ लखनऊ चैप्टर का नन्हा सा परिवार अदम्य साहस और जुनून के साथ चार वर्ष पूरे कर पाँचवे वर्ष में कदम रख चुका है. 18 मई 2013 के दिन शहर के कतिपय उत्साही नवोदित साहित्यकारों द्वारा इस चैप्टर का शुभारम्भ हुआ था. फिर बहुत से उदीयमान रचनाकार इससे जुड़ते या, कभी व्यक्तिगत कारणों से, बिछुड़ते चले गये. यह अत्यंत आश्वस्तकारी तथ्य है कि लखनऊ शहर के ही नहीं, दूसरे शहरों के प्रतिष्ठित व गण्यमान्य साहित्यकारों का सतत मार्गदर्शन एवं सहयोग हमें अनवरत मिलता रहा. चिंता की हर घड़ी में वरिष्ठ जनों का यही साया अनन्य प्रेरणा बनकर हमें अपने बनाये हुए रास्ते से विचलित होकर पथभ्रष्ट होने से बचाता रहा है.
असंख्य बाधाओं को अतिक्रमण कर ओबीओ लखनऊ चैप्टर ने अपनी पाँचवी जयंती लखनऊ स्थित ऑल इंडिया कैफ़ी आज़मी अकादमी के भव्य सभागार में अत्यंत गरिमा और भावपूर्ण समारोह के माध्यम से मनाई. रविवार 21 मई 2017 के दिन ग्रीष्म के तपते दोपहर में गम्भीर और स्वच्छ साहित्य के प्रेमियों की उपस्थिति में हमारे इस वार्षिक कार्यक्रम ने साहित्यिक आयोजन को एक नया आयाम दिया, नई दिशा दी.
अपराह्न 2 बजे से सायं 7 बजे तक चले इस कार्यक्रम को तीन सत्रों में बाँटा गया. पहले सत्र की अध्यक्षता कानपुर से पधारे सुपरिचित वयोज्येष्ठ कवि व गीतकार श्री कन्हैया लाल गुप्त ‘सलिल’ जी ने की. मुख्य अतिथि थे कवि-शिक्षक और व्यापक रूप से समादृत श्री ओम नीरव जी. वरिष्ठ भूवैज्ञानिक तथा लेखक श्री विजय कुमार जोशी जी ने विशिष्ट अतिथि का आसन अलंकृत किया.
वीणापाणि को पुष्प अर्पित करके दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात परम्परागत ढंग से श्री आलोक रावत के सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना हुई.
पहले सत्र में दो प्रकाशनों का विमोचन और दो पुस्तकों की समीक्षा निर्धारित की गयी थी. इसके अंतर्गत ओबीओ लखनऊ चैप्टर की स्मारिका “सिसृक्षा” के तीसरे अंक (सम्पादक-डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव) तथा कानपुर से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका “अनवरत वाणी” के प्रथम वर्ष-द्वितीय अंक (सम्पादक-श्री कन्हैया लाल गुप्त ‘सलिल’) का विधिवत विमोचन किया गया.
अगली प्रस्तुति श्री विजय कुमार जोशी द्वारा रचित इतिहास भित्तिक उपन्यास “AVADH-BEYOND BRICKS AND MORTAR (हिंदी अनुवाद-“अवध-कुछ कहती हैं दीवारें”) की डॉ स्कंद शुक्ला द्वारा समीक्षा थी. डॉ स्कंद शुक्ला ने पावर पॉयेंट प्रस्तुति के माध्यम से एक समाँ सा बाँध दिया. रचना के माध्यम से रचनाकार को पहचानने की चेष्टा, रचना को जन्म देने के पीछे रचनाकार के उद्देश्य अथवा मजबूरी से रूबरू होने की ललक और रचना के हर छोटे बड़े बिंदु पर प्रखर दृष्टिपात कर उनकी व्याख्या करने के अनुपम अंदाज़ से पुस्तक समीक्षा की विधा में नयी ऊँचाईयों से समीक्षक ने मंत्रमुग्ध श्रोतृ मंडली को परिचित कराया.
इसके बाद डॉ शरदिंदु मुकर्जी द्वारा रचित “पृथ्वी के छोर पर” पुस्तक का परम्परागत शैली में डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव द्वारा समीक्षा की गयी. इसी समीक्षा के साथ पहले सत्र का समापन हुआ.
बिना किसी अंतराल के दूसरा सत्र शुरू हुआ जिसकी अध्यक्षता लखनऊ के जाने-माने साहित्यकार डॉ अनिल मिश्र कर रहे थे. मुख्य अतिथि के रूप में प्रखर आलोचक और लेखक डॉ नलिन रंजन सिंह तथा विशिष्ट अतिथि के आसन को सुशोभित करते हुए चर्चित कथाकार श्री महेंद्र भीष्म मंच पर आसीन थे. इस सत्र में दो व्याख्यान हुए. पहली प्रस्तुति में डॉ स्कंद शुक्ला ने हिंदी के शब्दों की व्याख्या करते हुए उनके व्याकरण सम्मत प्रयोग और भाषा की शुद्धता पर एक व्यापक और अत्यंत रोचक वक्तव्य रखा. उनकी यह प्रस्तुति भी पावर पॉयेंट द्वारा थी जिससे उनके वक्तव्य की गहराई तक जाने में हम सबको सहजता का अनुभव हुआ. विज्ञान और साहित्य के समावेश से एक गम्भीर प्रस्तुति भी कितनी सुगम्य हो सकती है इसका उत्कृष्ट उदाहरण देखने को मिला इस प्रस्तुति में.
अगले वक्ता थे डॉ नलिन रंजन सिंह जिनसे हमने आग्रह किया था कि वे हिंदी गद्य लेखन पर अपना वक्तव्य रखें. वक्तव्य रखने से पहले उन्होंने कहा कि हिंदी गद्य लेखन एक बहुत बड़ा क्षेत्र है जिसमें अनेक विधाएँ समाहित हैं. अत: आयोजकों की सम्मति से वे कहानी विधा पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे. फिर शुरू हुआ एक मनोरम सम्भाषण. भारतेंदु के युग से लेकर, 1915 में रचित गुलेरी की अमर कथा ‘उसने कहा था’ के दौर से गुजरते हुए विभिन्न समय के कहानी के प्रारूप और चरित्र पर दृष्टिपात करते हुए डॉ नलिन ने अपने व्यापक विचार रखे. उच्च कोटि की वाक् शक्ति के अधिकारी डॉ नलिन ने अपने शिक्षक होने की सार्थकता को चरितार्थ करते हुए कहानी के कालचक्र को लेकर मर्मज्ञ विश्लेषण किया.
दूसरे सत्र के इन दो विद्वानों के व्याख्यान ने कार्यक्रम को ऐसे उच्च स्तर पर स्थापित कर दिया कि आयोजन के संयोजक मंतव्य करने से नहीं चूके कि ‘सभागार में खाली पड़ी कुर्सियों में जो आकर बैठ सकते थे यह उनका दुर्भाग्य था कि ऐसे आयोजन से वे विमुख रहे’.
पहले और दूसरे सत्र का संचालन ओबीओ लखनऊ चैप्टर के संयोजक और वर्तमान प्रतिवेदक द्वारा स्वयं किया गया. तीसरे सत्र के संचालन के लिए चैप्टर के अभिन्न सदस्य कवि श्री मनोज कुमार शुक्ल ‘मनुज’ को दायित्व दिया गया.
आयोजन का अंतिम और तीसरा सत्र सदा की तरह काव्यपाठ को समर्पित था. इस सत्र की अध्यक्षता की ग़ाज़ियाबाद से आए प्रख्यात गीतकार डॉ धनंजय सिंह जी ने. मुख्य अतिथि थीं मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ से आयीं कवयित्री, अभिनेत्री, कला निर्देशक सुश्री गीतिका वेदिका. विशिष्ट अतिथि का आसन शोभित हुआ कानपुर से पधारी समाज सेविका व कवयित्री सुश्री अन्नपूर्णा बाजपेयी द्वारा. विभिन्न वय, विभिन्न स्तर और क्षमता सम्पन्न लगभग 30 कवि तथा शायरों की प्रस्तुति ने अपनी अलग दुनिया रची. कुछ उदीयमान छात्र रचनाकारों की उत्साह-व्यंजक प्रस्तुति के साथ आभा खरे, आभा चंद्रा जैसे प्रतिभावान रचनाकारों को सुनने का अवसर मिला. वहीं भूपेंद्र सिंह के ग़ज़ल, डॉ गोपाल नारायण के गीत, संध्या सिंह के दोहे तथा गीत ने खुशियाँ बिखेरीं. युवा कवियों का एक बड़ा दल सभागार में उपस्थित था. जनवादी कविद्वय तरुण निशांत और ज्ञान प्रकाश ने अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप सशक्त रचनाएँ प्रस्तुत कर सबको मोहित किया. सत्र के शेष भाग में छंद-रस के आचार्य ओम नीरव जी के मधुर गीत ने एक मनोहारी हलचल पैदा कर दी तो नलिन रंजन जी के अत्यंत मार्मिक गीत ने सबको स्तब्ध कर दिया. अनिल मिश्र जी अपनी रचना को हमेशा दर्शन के उस उच्च स्तर तक ले जाते हैं जहाँ श्रोता को आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है. आज भी इसका व्यतिक्रम नहीं हुआ. अंत में गीतिका वेदिका की, दिल को छू लेने वाली रचना और धनंजय सिंह जी के मधुर स्वर में गाये रस से सराबोर गीत के साथ ही सत्र और कार्यक्रम का समापन हुआ.
कार्यक्रम के अंत में डॉ धनंजय सिंह जी ने सुझाव दिया कि काव्यपाठ की अवधि को कम करके कविता पर कार्यशाला का आयोजन किया जाना चाहिए. आज के दूसरे सत्र की सफलता की ओर इंगित करते हुए उन्होंने इसकी आवश्यक्ता पर बल दिया जिससे सभी सुधीजन एकमत हुए.
हम लोग समय की सीमा लांघ गये थे अत: सभी की अनुमति लेकर संयोजक ने तीनों सत्र के अध्यक्ष (जिन्हें हम कार्यक्रम के दौरान सुन चुके थे) के सम्भाषण की औपचारिकता से विरत रहकर सुश्री आभा खरे को धन्यवाद ज्ञापन के लिए बुलाया.
समारोह की समाप्ति जलपान के साथ हुई जिसके दौरान उपस्थित विद्वान और श्रोतागण के बीच दिन के कार्यक्रम की उच्च कोटि के आयोजन पर विशद विमर्श के साथ सहमति देखने को मिली.
ओबीओ लखनऊ चैप्टर अब एक नये युग में प्रवेश कर रहा है.
प्रस्तुति : शरदिंदु मुकर्जी
साहित्यिक सहयोग : कुंती मुकर्जी