For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अनुष्का एक आलसी लड़की थी | लाख समझाने पर भी वह टस से मस नहीं होती थी | सुबह देर से उठना ,अपने कमरे में ही चाय दूध पीना , नाश्ता करना , और फिर सब बर्तन वहीँ रख देना | कमरे की न तो वह सफाई करती और सामान भी सब अस्तव्यस्त रखती थी |

उसकी माँ और भाभी उसके कमरे को सही कर देते थे , पर धीरे धीरे उन्होंने भी बंद कर दिया | माँ कहती सफाई करने को तो वह कह देती , " माँ , मुझे सफाई नहीं करनी है | मेरा कमरा ऐसा ही मुझे अच्छा लगता है | "

उसकी माँ नाराज़ हो कर कहती , " इतना आलस भी किस काम का ?"

उसकी भाभी भी उसका मजाक बनाती , " छोटी दीदी , आप तो सच में माहान हो , गंदे कमरे में रहने के लिए हिम्मत चाहिए जो की आप में है | "

भाभी की बातों का अर्थ वह नहीं समझ पाती थी | हंस देती थी वह |

पर उसकी माँ को चिंता होती थी , ऐसा भी क्या आलस !

अनुष्का का आलस स्कूल के लिए भी था , साड़ी कापियां अधूरी , स्कूल का कार्य भी समय पर न करती थी | धीरे धीरे उसके काम को बोज़ बढ़ता जा रहा था , पर अनुष्का सुधर ने का नाम ही नहीं ले रही थी | टीचर जब डांट देती तो वह अपने किसी सहेली से कॉपी मांग लेती थी , पर धीरे धीरे सभी ने उसका साथ देना छोड़ दिया था | टीचर्स भी उसको नापसंद करने लगी थी |

उसकी सखियाँ उसको टाल देती थी | अब कोई भी उससे बात करना तक पसंद नहीं करता था | अब वह एकदम अकेली हो गयी थी | इस अकेलेपन ने उसके दुखों को और बढ़ा दिया था |

उसकी सारी ही कापियां अधूरी होने की वजह से अब उसको न तो पढाई समझ में आती थी , न ही उसको कोई मदद करने को तैयार होता था | अब उसको स्कूल जाना भी पसंद नहीं आता था , रोज़ कुछ न कुछ बहाने बना लेती थी , कभी सर दर्द , कभी पेट दर्द का ताकि स्कूल न जाना पड़े |

अनुष्का से सभी दुखी थे | अक्सर पिताजी से भी डांट खाती रहती थी | वे कहते इस का स्कूल जाना ही बंद करवा देना चाहिए |

यह सुनकर अनुष्का और भी दुखी हो गयी , वह अपनी माँ को देखती रहती थी , घर में सब से पहले उठ जाती थी और सबसे आखिर में सोती थी | भाभी भी खूब काम करती थी |

अनुष्का अब घर में रहने लगी थी, उसने जैसे चुप्पी सी साध ली थी , कमरे में ही अकेली बैठी रहती थी | माँ के समझाने पर भी वह समझ नहीं पा रही थी की उसको क्या करना चाहिए | उसके कमरे में एक खिड़की थी , उस खिड़की के सामने एक बड़ा सा जिसपर पक्षी कलरव करते थे , उसको देख कर वह बड़ी खुश होती थी |

स्कूल में इम्तिहान निकट आ रहे थे , अनुष्का का हाल बुरा था , परीक्षा में बैठी तो सही पर लिखती क्या जब कुछ याद ही नहीं किया था , वहां परीक्षा पेपर को देखकर उसका सर घुमने लगा , अक्षर नाचने लगे , वह कुछ भी नहीं लिख पाई | परीक्षा देने के बाद जब वह घर आती चुप चाप अपने कमरे में चली जाती |

घर वाले उसकी मनस्थिति को समझ रहे थे , सो ढाढ़स बाँध रहे थे | उसके पिताजी ने कहा , " कोई बात नहीं , इस बार तो जैसे तैसे परीक्षा दे दो अगली बार देख लेंगे और गर नहीं पढना तो घर में माँ का हाथ ही बंटा लेना | |

अनुष्का अंदर ही अंदर टूट गयी थी | उसको पता था इस बार का परीक्षा फल कैसा होगा ! और हुआ भी यही , परीक्षा में असफल ही रही |

उसकी सखियाँ भी उससे दूर हो गयीं थी | घर में अकेले ही अपने में सिमट कर रह गयी थी | उसको पश्चाताप हो रहा था पर आलास की वजह से उसको अपने लिए कोई राह नहीं दिख रही थी | हार मान ली थी उसने शायद |

उसके आलस की वजह से ही उसका नुक्सान हुआ था | अब माँ ने उससे काम करवाने की ठान ली थी , वे उससे छोटे मोटे काम करवा ही लेती थी, मन मारकर वह काम कर देती पर दिल से नहीं करती थी |
,
उसको लगने लगा था कि अब उससे कुछ न हो पायेगा , कभी तो वह कह देती , " मुझसे क्यों करवाते हो काम जब पता है मुझसे नहीं हो पाता | "

अक्सर वह अपने कमरे की खिड़की से बाहर देखा करती थी , सामने के पेड़ पर उसने देखा एक नन्ही सी चिड़िया अपने लिए एक घोंसला बना रही थी | एक एक करके दूर दूर से तिनका लाती और घोंसला बनाती , फिर फुर्रर्रर्र से उड़ जाती , कभी डाल पर बैठ जाती थक हार कर पर थोड़ी ही देर बाद फिर काम पर लग जाती | धीरे धीरे ही सही कुछ दिनों तक उसने यही क्रम किया और एक दिन उसका घोंसला तैयार हो गया | उसने अपने पंख फैला कर नृत्य कर अपनी ख़ुशी को ज़हीर की |

छोटी सी जान को इस तरह से मेहनत करते देख , उसके अंदर एक नयी उर्जा का प्रवेश हुआ , उसने अपनी इच्छा शक्ति जगाई और अपने कमरे की सफाई करनी शुरू कर दी , धीरे धीरे वह अपनी माँ का हाथ भी बंटाने लगी , समय पर पढने लगी , खुद के नोट्स लिखने लगी ,नियमित उठने लगी और स्कूल भी जाने लगी , अब वह पहले वाली अनुष्का न थी , धीरे धीरे ही सही पर उसके इस परिवर्तन की वजह से उसमे सुधार हुआ |

और इस सुधार का नतीजा भी अच्छा ही आया , अब वह सबकी मनपसंद अनुष्का बन चुकी थी | कल की आलसी अनुष्का अब एक एक समझदार लड़की बन चुकी थी | इस बार भी परीक्षा हुई , पर इस बार अक्षर सुंदर लग रहे थे, परीक्षा फल भी जान सकते हो कैसा रहा होगा |

वो कहते हैं न ' मेहनत का फल हमेशा मीठा ही होता है |"

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 4493

Replies to This Discussion

सभी पाठकों को सादर धन्यवाद |

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service