ग़ज़ल ( यह मासूम हैं सब की आँखों के तारे )
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(फऊलन-फऊलन-फऊलन-फऊलन)
यह मासूम हैं सब की आँखों के तारे |
ख़ुदा को भी बच्चे निहायत हैं प्यारे |
सवेरे लड़ें शाम को साथ खेलें
तखैउल हैं बच्चों के सब से नियारे |
कभी झूट बच्चे ज़ुबाँ से न बोलें
यूँ ही तो न हर कोई इनको दुलारे |
ज़ुबाँ ,ज़ात ,मज़हब को बच्चे न जानें
सुना है तअस्सुब तो इन से ही हारे|
मुसीबत में दुनिया पुकारे खुदा को
मगर माँ को मुश्किल में बच्चा पुकारे |
लगा कर के माथे पे काजल का टीका
नज़र अपने बच्चे की हर माँ उतारे |
करें परवरिश इनकी यह सोच कर ही
बुढ़ापा कटेगा इन्हीं के सहारे |
पढ़ा कर इन्हें नेक इंसाँ बनाओ
ये मासूम हैं कल के रह्बर हमारे |
ठिकाना है फुटपाथ तस्दीक़ जिनका
हैं एसे भी बच्चे मुक़द्दर के मारे |
तखैउल---ख़यालात ,निहायत --बहुत ज़्यादा
नियारे -सब से अलग ,
(मौलिक व अप्रकाशित )
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