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अम्बराँ विच चमकदी बिजली, देंदी सौ सौ वाजाँ
हुण आ गया सावन ओ जोगी घर तूं वी घर आजा
इक ताँ अग लगावन बूँदां ते दूजियाँ तेरियां यादाँ
हुण आ गया सावन ओ जोगी घर तूं वी घर आजा

मेनू नींद न आवे, तेरी याद सतावे
मैं होके भरदी, तैनू  तरस  न आवे
झूठे सारे संदेसे  तेरे,  कैंदियाँ  मेरियां बावाँ
कद तक वेखां बैठी बैठी तेरे आन दियां रावां
हुण आ गया सावन .......

मेरी पीड़ न  जाने, गया  देस बेगाने
नैणां नूँ दे गया, ओ ह्न्जुँआँ दे गेणे
गिलियां  रावां ते  मैं चल  के रांझे  नूँ बुलावां
दस जा मैनु किदां मैं अपने दिल नूं समझावाँ
हुण आ गया सावन ……



सुशील सरना

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Replies to This Discussion

बड़ा ही सौंड़ा गीत हे। वधाई।

आदरणीय विजय निकोर जी रचना  उत्ते तुहाडी तारीफ़ दा बोत बोत शुक्रिया 

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"आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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"आ. भाई दिनेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
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