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हुंण मैं की करां ....... 


रुड़ जाणी नूं ले के सौंदा
मेरी कदर न जाने
आसे पासे लौकी देंदे
सौतन दे मैनूं ताने
बावाँ विच वी हो के ओ ताँ
मेनू न पछाणे
ओनू लावे होठां नाल
ते मेरी कदर जाने
की करां मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां
हाय वे मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां …

रोज रात नूं पी के करदा
मेरियां कालियां रातां
बोतल ओदी लाडो हो गयी
मैनु गालां दियां सौगातां
अंदर जाके जिस्म नूं पीन्दी
किदां ओनू मैं समझावां
धक्के देवे हर वेले मैनु
जद कोल मैं ओदे जावां
की करां मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां
हाय वे मेरे रब्बा
दस मैं की करां …

न्याणे करदे पापा पापा
मैं पई वेखां रावां
थाली विच पई रोटी सुकदी
मैं कुंडी किदां लावां
अखां विच मैं हंजू भरके
ओदी खैर मनावां
मन्नत मंगां ऐ बाबे अगे
ओनूं सुख दियां मिलण छंवां
की करां मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां
हाय वे मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां …

पीण वाले दे घर नूं वेखो
मिट्टी विच मिल जांदा
बच्चे रोंदे, वोटी रोंदी,
हथ विच कुज न आंदा
रोल के सारे घर नूं खुद ओ
आप वी ओ रुल जांदा
हथ जोड़ के बिनती मेरी
सुन वे मेरे रांझा
तोड़ दे बोतल जोड़ ले तिनके
अपने घर विच आके
जुल्मी है ऐ वक्त बड़ा
कित्थे ऐवें गुजर न जावे
तेरियां बावाँ तेनूं बुलावन
एनां विच समा जा
तूं आँवें ते सौं रब दी
मैं ओथे मत्था टेकां
शुक्र बाबे दा करके
फेर कदी न ऐ कवांगी
की करां मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां
हाय वे मेरे रब्बा
हुंण मैं की करां …

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

मेरे मित्र सुशील जी,

थुवाडी ए नज़्म कितनी रोंदी मांवा दी, उनां दी रुहाँ दी, तड़प नूँ सामणें ला रयी ए।

//हुंण मैं की करां 

हाय वे मेरे रब्बा 
हुंण मैं की करां …//

ए शब्द सरल ने, पर कितने असरदार ने, मैं कै नईं सकदा ! 

बोतल दे खुमार दे कारण कितने बच्चे, कितनी माँवा, कितने घर रुल गए नें .... उफ़ ।

मेरी दिल्ली वधाई।

आदरणीय निकोर जी  पंजाबी रचना दे तुहाडे सोणे विचारां दा दिलों शुक्रिया। रचना तुहानू चंगी लगी , रचना एस लई तुहाडी शुक्रगुज़ार है। 

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