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"ਸੋਚਦਾ ਹਾਂ ਮਹਕ ਦੀ ਲਿੱਪੀ 'ਚ ਤੇਰਾ ਨਾਂ ਲਿਖਾਂ"*
ਚੇਤਰਾਂ ਦੀ ਧੁਪ,ਤਪੇ ਹਾੜਾਂ ਦੀ ਠੰਡੀ ਛਾਂ ਲਿਖਾਂ


ਜੀ ਪਵਾਂ ਤੇਰੀ ਅਦਾ ਦੇ ਮਹਕਦੇ ਦੀਦਾਰ ਲਈ
ਤੇਰੀ ਭੋਲੀ ਸਾਦਗੀ ਤੇ 'ਹਾਏ ਮੈਂ ਮਰ ਜਾਂ' ਲਿਖਾਂ


ਸੁਹਣੀਆਂ ਥਾਹਾਂ ਜਗਤ ਵਿਚ ਹਨ ਪਰੇ ਤੋਂ ਵੀ ਪਰੇ
ਜਿੱਥੇ ਤੂੰ ਵਸਦਾ ਏਂ ਉਸ ਹੀ ਨੂੰ ਸੁਹਾਣੀ ਥਾਂ ਲਿਖਾਂ


ਤੇਰੇ ਲਈ ਅਰਪਣ ਕਲਮ ,ਤੇਰੇ ਹੀ ਰੰਗ ਵਿਚ ਬੋਲਦੀ
ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਗੀਤਾਂ ਦਾ ਮੁੱਦਾ ਫਿਰ ਜਿਵੇਂ ਚਾਹਵਾਂ ਲਿਖਾਂ


ਤੂੰ ਮੇਰੇ ਕਲ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ,ਤਕਦੀਰ ਬਣਦੀ ਹੋ ਚਲੇਂ
ਅਪਣੇ ਹਥ ਦੀ ਲੇਖਣੀ ਵਿਚ ,ਵਸ ਚਲੇ ਏਦਾਂ ਲਿਖਾਂ


ਕੀ ਕਿਸੇ ਨੁੰ ਅਪਣੀਆਂ ਅੱਗਾਂ 'ਚ ਪੰਨੇ ਫੂਕ ਲਏ
ਜੇਠ ਬਲਦੇ ਰਾਹ ਤੇ ਹੋ ਪਾਏ ਤੇ ਠੰਢੀ ਛਾਂ ਲਿਖਾਂ


ਦਿਲ ਮੇਰੇ ਦੀ ਗੱਲ ਤੇ ਹੁਣ ਕਦ ਦੀ ਪੁਰਾਣੀ ਹੋ ਗਈ
ਗ਼ਮ ਚੁਫੇਰਿਆਂ ਦੇ ਕੁਝ , ਵਕਤਾਂ ਦੀਆਂ ਪੀੜਾਂ ਲਿਖਾਂ


*Dr. Jagtaar di line

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Replies to This Discussion

ਬਹੁਤ ਹੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਗਜ਼ਲ ਸਾਂਝੀ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ੁਕਰੀਆ !
ਹਰਦੀਪ

shukriya, dr.saahiba

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