कंक्रीट के शहर में पत्थर हो गइल अदमी
दिल का ह दिमागों से बंजर हो गइल अदमी
रोपाया के बिछौना पर सोना के रहीत चादर
बस एही हाव हाव में अधमर हो गइल अदमी
होइत जे धुप गुन गुन ठंडी के मारे वाला
बदले में आग बरिसत, दुपहर हो गइल अदमी
पईसा के लत ह बाउर, सबके बझा के रखलस
सम्बन्ध के दुनिया में दफ्तर हो गइल अदमी
ऊपर से लागे जइसे ह जेठ वाला बदरी
भीतर से नूनछाही, सागर हो गइल अदमी
उपकार माँई बाबू के एह कदर भूलाइल
सेवा के डरे उनके, दूबर हो गइल अदमी
हे राम तोहर गंगा काहे ने होई मइली
होखबे करी जब पाप के गठ्ठर हो गइल अदमी
(साभार : डॉ. गोरख प्रसाद मस्ताना जी के भोजपुरी कविता संग्रह " जिनगी पहाड़ हो गइल" प्रकाशक 'इन्द्रप्रस्थ भोजपुरी परिषद्,' नई दिल्ली, डॉ. मस्ताना भोजपुरी आ हिंदी के लब्ध प्रतिष्ठित कवि बानी. मंच पर उहाँ के गायन के जोड़ नइखे., रउरा "भोजपुरी जिन्दगी, भोजपुरी से तिमाही पत्रिका नई दिल्ली के के प्रधान संपादक बानी. आ "पुरवैया" राष्ट्रीय गैर सरकारी संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष बानी, रउरा "कव्यांगन", महाबीर चौक, पुरानी गुदरी बेतिया, प.चंपारण, बिहार में रहेनी)
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आप बहुत बढियां गज़ल कहलीं |आज काल के जीवन क कई गो रंग एमें देखे के मिळत बा |
बधाई कबूलीं |
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